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Showing posts from June, 2023

गांवों मे सुधरता शिक्षा का स्तर

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  अखबार मे समाचार पढ़कर अत्यन्त खुशी हुई कि जोधपुर जिले के छोटे से गांव कालीजाल का रहने वाला और उसी गांव की सरकारी स्कूल मे पढ़ा हुआ लड़के का चयन भारतीय अंतरिक्ष संघठन मे वैज्ञानिक के पद पर प्रथम प्रयास मे ही हो गया। इसी तरह इसी जिले के छोटे से गांव लूनी से भी दो लड़के एम्स मे डॉक्टर बने और एक लड़का आईआईटी बॉम्बे मे सेलेक्ट हुआ। आश्चर्य की बात यह है कि इन चारों बच्चों के माता पिता खेती करते है और इनकी शैक्षणिक योग्यता बिल्कुल नहीं है और चारों लड़कों की पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूलो मे ही हुई। इस प्रकार के कई बच्चे आजकल सरकारी स्कूल मे पढे हुए और पूर्णतया ग्रामीण परिवेश मे पले हुए का सेलेक्शन उच्च पदों पर हो रहा है। यह एक अनोखा बदलाव आ रहा है। एक समय था जब कलकता और मद्रास के लड़के ज्यादातर उच्च पदों पर सेलेक्ट होते थे। उनके परिवार मे शिक्षा का वातावरण होता था। आगे बढ़ने और पढ़ने के लिए उन्हे परिवार मे समुचित अवसर मिलता था। ज्यादातर ऐसा भी देखा गया है कि ऊंचे पदों पर बेठे हुए अधिकारियों के बच्चों का सेलेक्शन उसी अनुरूप होता था। डॉक्टर , इंजीनियर , आईएएस जैसे पदों पर बेठे लोगों के बच्चे सेलेक्ट होत

सहजन: एक जादुई पेड़

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  सहजन एक अतिमहत्वपूर्ण पेड़ है। इसको ड्रम स्टिक , सहजना , मोरिंगा आदि नामों से जाना जाता है। इस पेड़ के पत्ते , फूल और फलिया उपयोग मे लाई जाती है। इसके पत्तों को पालक की तरह दाल मे डालकर खाया जाता है। इसके पत्तों की स्वादिष्ट एवं पोषक  तत्वों से भरपूर चटनी बनती है। इसकी फलियों को ड्रम स्टिक कहते हैं। इन फलियों को सांभर और दाल मे डालकर खाया जाता है। इसके फूलों की कढ़ी बनाकर खाई जाती है। इस प्रकार इस पेड़ के सभी भाग भोजन सामग्री मे उपयोग होते हैं।                  सहजन की फलियाँ खाने से पेट से संबंधित कई बीमारिया ठीक हो जाती है। विशेषकर पेट का अल्सर ठीक होता है। ब्लड शुगर एवं मोटापे की समस्या इसका प्रयोग करने से दूर होती हैं। हजारों वर्षों से इसका प्रयोग भोजन के रूप मे किया जाता हैं। इसकी पत्तियों मे बहुत सारे विटामिन्स  और मिनेरल्स पाए जाते हैं। दोनों तरह के कुपोषण इसका प्रयोग करने से मिटते हैं।   सहजन मे भरपूर ऐन्टीआक्सिडन्ट कम्पाउन्ड पाए जाते हैं। विटामिन सी , बीटा-केरोटीन भी पाए जाते हैं। इसका प्रयोग करने से डाइअबीटीज़ और हृदय रोग से बच सकते हैं। यह झुरीयों को कम करता हैं , एडीमा

सूर्यनमस्कार

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  सूर्यनमस्कार सभी योगासनों का समिश्रण है। सूर्यनमस्कार के 12 चरण होते है। इन 12 चरणों को विधिपूर्वक करने से शरीर के सभी प्रमुख अंगों के व्यायाम हो जाते है। प्रत्येक चरण का नाम होता है जैसे :- प्रणामासन , हसतउत्तनासन , पादहस्तासन , अश्व संचालनासन , दंडासन , अष्टांग नमस्कार , भुजंगासन , अधोमुख शवासन , अश्व संचालनासन , पादहस्तासन , हसतउत्तनासन , प्रणामासन। सूर्यनमस्कार को 5 से 10 मिनट तक करना पर्याप्त है। इसको सूर्य के सामने किया जाना ज्यादा लाभदायक होता है। यह शरीर के साथ साथ दिमाग को भी स्वास्थ्य रखता है। सूर्यनमस्कार को स्टेप बाइ स्टेप ही करना चाहिए। सूर्यनस्कर के प्रत्येक चरण को करते समय टाइमिंग , श्वांस की गति और विभिन्न अंगों की स्थिति का पूरा ध्यान रखना चाहिए। प्रत्येक मुद्रा मे अलग अलग अंगों का व्यायाम होता है। सूर्यनमस्कार करने से शरीर के सभी प्रमुख अंगों का व्यायाम हो जाता है जैसे रीढ़ की हड्डी , गर्दन , सिर , पीठ , भुजाये , हथेलियाँ , घुटने , जांघे , कोहनी , आँखे , कंधे , सीना आदि।         सूर्यनमस्कार करने से कई बीमारियों का इलाज होता है। सूर्यनमस्कार सभी योगासनों मे सर्

सरल योगासन

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  मैं सातवी कक्षा मे पढ़ता था । उस समय मेरा अधिकतर समय मेरे अध्यापक श्री सुरेश कुमार जी सुमन के यहा व्यतीत होता था। श्री सुमन जी को पुस्तके पढ़ने का बहुत शोक था। उनके जीवन का मेरे ऊपर भी प्रभाव पड़ा। मैं भी तरह तरह की पुस्तके मँगाकर पढ़ता था। योगासन से संबंधित पुस्तके डॉ लक्ष्मी नारायण शर्मा (दिल्ली) , डॉ विठ्ठल दास मोदी (गोरखपुर) , डॉ धर्मचन्द सरावगी (कलकता) एवं डॉ खुशी राम दिलखुश (लखनऊ) की लिखी हुई पुस्तके बड़े चाव से पढ़ता था। इन सचित्र पुस्तकों को पढ़कर मैंने सरल योगासन सीखे। जैसे ताडासन , भुजंगासन , धनुरासन , मयूरासन , वज्रासन , पद्मासन , सर्वांगासन , त्रिकोणासन , शवासन आदि अनेक प्रकार के सरल योगासन सुबह शाम करता था ।             21  जून विश्व योग दिवस होता है। विद्यार्थी जीवन मे किए गए आसन आज बुढ़ापे मे भी कर सकते है। आसन करने के नियम ,   अवस्थाएं एवं सावधानियों का वर्णन इन पुस्तकों मे सचित्र किया गया था। जो आसन बचपन मे उपयोगी थे वे आसन आज बुढ़ापे मे भी उतने ही उपयोगी है। सरल योगासन से शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम समुचित रूप से हो जाता है जैसे:- गर्दन ,   आंखे ,   जीभ ,  घुटने , पीठ ,

यथा नाम तथा गुणाः

  श्रीमदभागवत  मे एक कथा अजामिल नामक राक्षस की आती है । उस राक्षस के बेटे का नाम नारायण था । अजामिल राक्षस होने के नाते सभी गलत काम जैसे चोरी , डकेती  , व्यभिचार आदि कुकर्म किया करता था । मृत्यु के समय उसे यमराज के दूत नरक मे  ले जाने के लिए आए । खूंखार यमदूतों को देखकर अजामिल भयभीत हो गया । उसने अपने बेटे को जोर जोर से आवाज लगाई । वह  बोला  नारायण आओ नारायण आओ । उसने तो अपने बेटे को मदद के लिए बुलाया था लेकिन भगवान विष्णु ने सोचा कि यह नारायण नारायण कहकर मुझे पुकार रहा है । अतः भगवान ने अपने दूतों को अजामिल के पास उसे स्वर्ग मे लाने के लिए भेज दिया । विष्णु भगवान के दूतों और यमराज के दूतों के वार्तालाभ का वर्णन भागवत मे विस्तार पूर्वक किया गया है । अंत समय मे जो व्यक्ति भगवान नारायण का नाम लेलेता है वह नरक मे कभी नहीं जा सकता । भगवान उसे अवश्य ही स्वर्ग मे स्थान प्रदान करते है ।             भागवत के इसी प्रसंग से प्रेरित होकर लोग अपने पुत्रों एवं पुत्रियों के नाम ईश्वर के पर्यायवाची रखता है जैसे विष्णु , नारायण , सत्यनारायण , बद्रीनारायण , केदारनाथ , श्यामसुंदर , कन्हैया लाल , मुरलीधर

अर्थशौचः

  इन्फोसिस लिमिटेड एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है । नन्दन निलेकणी इस कंपनी के सह संस्थापक है । इन्होंने आईआईटी बॉम्बे मे 1973 मे प्रवेश लिया था । आईआईटी से जुड़े हुए 50 वर्ष होने के उपलक्ष मे नन्दन निलेकणी ने 315 करोड़ रुपए का दान आईआईटी बॉम्बे को दिया । इस दान राशि से आईआईटी बॉम्बे विश्वस्तरीय बुनियादी ढ़ाचा खड़ा करने , इंजीनियरिंग व टेक्नॉलजी के क्षेत्र मे अनुसंधान को प्रोत्साहित करने व नए स्टार्टअप को पोषित करने मे खर्च होगा । आईआईटी के किसी भी पूर्व छात्र द्वारा दी गई यह अधिकतम दान राशि है ।      निलेकणी आईआईटी बॉम्बे को अपने जीवन की आधारशिला मानते है । इसके पहले भी निलेकणी ने 85 करोड़ रुपए का दान इस संस्थान को दिया था । अब उनके द्वारा दिए गए दान की कुलराशि 400 करोड़ रुपए हो गई है । डॉक्टर निलेकणी द्वारा दिया गया यह दान लाखों उद्योगपतियों को प्रेरणा दे रहा है ।          अपनी कमाई का कुछ अंश दान मे देना एक अच्छी परंपरा है । श्री रतन टाटा एवं श्री अजीम प्रेमजी भारतीय दान दातायो मे अग्रणी उद्योगपति है । भारत के उद्योगपति बिरला  ,  सिंघानिया  ,  डालमिया  ,  बांगड आदि  मारवाड़ी औद्योगिक घराने भ

सत्यम् वदः , प्रियम् वदः , अल्पम् वदः

  इन्फोसिस के सह संस्थापक श्री नारायण मूर्ति की धर्म पत्नी ने एक इंटरव्यू में ये खुलासा किया कि मेरा स्वभाव और मेरे पति का स्वभाव बिल्कुल उल्टा है। मैं हमेशा हँसती रहती हूँ और वे कभी नहीं हंसते। मैं हमेशा बोलती रहती हूँ और वे दिन में मुश्किल से चार पांच वाक्य बोलते हैं। डॉक्टर नारायणमूर्ति बहुत कम बोलते हैं। उनकी पत्नी सुधा मूर्ति स्वयं एक लेखिका एवं समाजसेवी हैं। इतने बड़े व्यक्तित्व के धनी डॉक्टर नारायणमूर्ति इतना कम बोलते हैं, इनसे शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। हमेशा ज्यादा से ज्यादा सुनना चाहिए और कम से कम बोलना चाहिए। ज़्यादा से ज़्यादा रेडियो सुनना , अखबार पढ़ना, विद्वान लोगों की बातों को सुनना और कम से कम बोलना मनुष्य का अच्छा गुण होता है। जितना कम बोलोगे , अथवा मौन रहेंगे उतनी ही आपकी शक्ति संचित रहेंगी। आप के बारे में लोगों की धारणाएं जैसी बनती है, ये आपकी वाणी को सुन कर तय की जाती है। कम से कम बोले, अधिकाधिक सुनें, यही जीवन का मंत्र होना चाहिए। जो व्यक्ति दिन भर अपना समय अधिक से अधिक बोलने में व्यतीत करता है, लोग उनकी बातों को भी अनसुना कर देते हैं। जो जितना कम बोलता है, लोग उसकी बातो

पढ़ने के साथ साथ पढ़ाना भी चाहिए

  मैंने 10 वीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की थी। उस समय के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। मैं पढ़ने में बहुत तेज था। सारी स्कूल में मेरी तारीफ होती थी। हमारे गांव मैं एक प्राइमरी स्कूल भी थी। उस समय स्कूल में कई महिला टीचर्स छोटे बच्चो को पढ़ाती थी। वे केवल आठवीं तक पढ़ी लिखी थी। शिक्षा विभाग ने यह आदेश पारित किया कि जो अध्यापक दसवी पास नहीं होंगे उनका इंक्रीमेंट रोक दिया जाएगा। उस प्राइमरी स्कूल मैं तीन महिला अध्यापक केवल आठवीं पास थी। उनको उसी वर्ष 10 वीं की परीक्षा पास करनी थी। वे कई सीनियर टीचर्स के पास अपनी समस्याएं लेकर गई, लेकिन अलग अलग टीचर्स के पास जाकर सभी विषय पढ़ना संभव नहीं था। यह उनके लिए एक परेशानी थी। हिंदी के सीनियर टीचर श्री नेमीचनदजी निर्मल ने उन महिला टीचर्स को सलाह दी कि आप तीनो नारायण दास के पास चले जाओ। उसने इसी वर्ष प्रथम श्रेणी से मैट्रिक की परीक्षा पास की है। वह आपको दसवी के सारे सब्जेक्ट बड़े अच्छे तरीके से पढ़ा देगा। उसे अभी पैसों की भी जरूरत है। आप थोड़ा सा पैसा उसे फीस के तौर पर देंगे तो बहुत कम पैसे में आपको वह पढ़ा देगा। वे तीनों मिलकर यह प्रस्ताव लेकर म

बनता बिगड़ता बचपन

       मैं गाड़ी लेकर एक गली से निकल रहा था कि गली के बच्चों ने जानबूझकर मेरी कार पर पत्थर फेकें। मेरी गाड़ी का शीशा टूट गया। बच्चें बहुत खुश हुए। मैनें कार रोकी , बच्चें खिलखिलातें हुए भाग गये और मेरी आँखों से ओझल हो गये। मैं लाचार था। कुछ कर नहीं सकता था। गाड़ी स्टार्ट करके आगे बढ़ गया। इस प्रकार की घटनायें बालकों द्वारा अक्सर की जाती हैं।     चलती रेलगाड़ी को पत्थर मारना कई जगह देखा जाता हैं। गुब्बारां में पानी भरके अनजान राहगीरो के ऊपर फोड़ कर भी बच्चों को हँसते हुए देखा गया हैं। कई घरों में बच्चों का व्यवहार बड़ा ही अशोभनीय होता हैं , इसे देखकर अतिथि तो आश्चर्य करते ही हैं , बच्चों के माता-पिता का भी सिर शर्म से झुक जाता हैं। घर को गंदा रखना , अपने खेलने और पढ़ने की सामाग्री बिखेरते रहना , घर में जोर-जोर से बोलना , अंगूठा चूसना , नाखून खाना , बड़ो की बात को अनसुना करना , अपने कपड़ो को गंदा रखना , अपने से बड़ों का अभिवादन नहीं करना , आये हुए मेहमानों से शालीनता से नहीं बोलना , आदि अनेक बुराइयाँ बच्चों मे देखी जाती हैं। इस प्रकार के अवगुण बच्चों में नही होने चाहिए।     अपने बच्चों को बचपन

माँ की ममता

       खेत में एक गाय ने बच्चे को जन्म दिया। दो-तीन कुत्त्ते नवजात बच्चे की तरफ आने की कोशिश कर रहे थे। गाय ने उन कुत्त्तो को भगा दिया। एक आदमी बछडे़ की मदद करने के लिए उस तरफ बढ़ा गाय ने उस आदमी को भी नजदीक नहीं आने दिया। उसने सोचा कि यह भी मेरे बछड़े के लिए नुकसानदायक हो सकता हैं। गाय में भी अपने नवजात बछड़े के प्रति इतना प्यार होता हैं। इतना ही नहीं कुत्त्ता , सुअर आदि पशुओं के साथ-साथ वन्यजीव भी अपने नवजात शिशु के बचाव के लिए हिसंक हो जाते हैं। जंगली जानवर जैसेः-सियार , रीछ आदि तो इस अवस्था में यदि किसी मनुष्य या अन्य जानवर को भूल से भी अपने बच्चों की तरफ आते देखते हैं , तो उनकी ओर झपट पड़ते हैं।      पिछले दिनों अखबार में खबर छपी कि झाड़ियों में एक नवजात शिशु कपडे़ में लपेटा हुआ मिला। कोई महिला उसे फेंक गयी थी। इसी प्रकार एक दिन नालें में एक नवजात शिशु का शव मिला। इस प्रकार की अनेक घटनाएँ प्रतिदिन अखबारों में प्रकाशित होती रहती हैं। पता नहीं स्त्रियाँ इतनी क्रूर क्यों हो गई ? एक तरफ जानवरों में तो अपने बच्चों के प्रति इतना प्यार होता हैं कि यदि उनकों खतरा महसूस होते ही वे दुश्मन को अ

लिव-इन-रिलेशनशिप : एक खतरनाक साजिश

      केरल हाईकोर्ट ने कहा कि कानून लिव - इन - रिलेशनशिप को शादी के रूप में मान्यता नहीं देता हैं। विवाह एक सामाजिक संस्था हैं , जिसे कानूनी मान्यता प्राप्त हैं। विवाह समाज में सामाजिक और नैतिक आदर्शां को दर्शाता हैं। हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई करते हुए की। याचिका कर्ता एक हिन्दू व एक ईसाई है , जिन्होनें 2006 में पति - पत्नी के रूप में साथ - साथ रहने का फैसला किया था। दम्पति के एक बच्चा भी हैं।     भारत में लिव - इन - रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता नहीं हैं। वयस्क युवक व युवतियां बिना शादी किये पति - पत्नि की तरह साथ - साथ रहते हैं। यह सामाजिक बुराई पश्चिमी देशों से भारत में आयी तथा तीव्र गति से समाज में बढ़ रही हैं। समाज में इस बुराई के साथ - साथ अन्य कई बुराईयां भी पनप रही हैं। लिव - इन - रिलेशन में उनके शारीरिक संबध तो रोज स्थापित होते हैं , दोनो वयस्क होने के कारण आपस में शारीरिक सम्बन्ध होते ही हैं परिणाम स्वरूप बच्चा भी प

अर्न्तजातीय विवाह : एक खतरनाक रिवाज

      इंग्लेण्ड का एक सच्चा किस्सा अखबार में पढ़ा। एक 65 वर्ष के पुरूष ने 25 वर्ष की युवती से शादी करने का प्रस्ताव रखा। युवती को भी इस व्यक्ति से आशक्ति हो गयी और दोनां ने पति - पत्नी की तरह रहने का निश्चय किया। काफी समय साथ रहने के बाद उस बुर्जुग व्यक्ति ने उस युवती की नस्ल , खानदान , आदि की सूचनायें इकटृठा करना शुरू की। आखिर पुरानी बातें खोजते - खोजते उस व्यक्ति को उसकी सारी हकीकत मालूम हुई। उसको यह पता चल गया कि वह युवती जो इतने समय पत्नी के रूप में उसके साथ रह रही हैं वह उसकी सगी पोती हैं। सारी बातें वह अपनी पोती से भी कन्फर्म करता रहता था। दोनां को बड़ी ग्लानी हुई। लेकिन बुर्जुग बहुत समझदार था। उसने अपनी पोती से कहा कि अब हम दादा - पोती की तरह साथ रहेंगें। क्योंकि वह बुर्जुग बहुत ही धनवान था इसी कारण उस युवती ने उसका हाथ थामा था। युवती ने सोचा था कि इनको तो कितना जीना हैं। बाद में सारी सम्पति पर मेरा अकेली का ही अधिका

ऑन लाइन गेम्स

  ऑन लाइन गेम्स बच्चों के लिये खतरनाक जहर का काम कर रहा हैं। इनको खेलते रहने से बच्चे मानसिक रूप से बीमार , चिड़चिड़े , शारीरिक रूप से कमजोर होते जा रहे हैं। इतना ही नहीं आखों की रोशनी कम हो रही हैं। बच्चों मे अवसाद , एकान्त प्रियता पैदा होती है तथा पढ़ाई में रूचि नहीं रहती हैं। परिवार से अलग - थलग पड़ जाता हैं। कई गेम्स खेलने से आर्थिक हानि भी होती हैं। पता नहीं कितने रूपये बच्चे खो चुके हैं। जवानी का अमूल्य समय गंवा कर इन ऑन लाइन गेम्स के एडिक्ट हो गये हैं।      अब तो पेरेन्टस के साथ - साथ भारत सरकार को भी चिन्ता हो गयी हैं। इन ऑन लाइन गेम्स को रोकने के लिये सरकार गाइडलाइन भी बना रही हैं। ऑन लाइन गेम्स का भारत में बहुत बड़ा बाजार आई टी कम्पनियों को लग रहा हैं। एक सर्वे के अनुसार भारत में ऑनलाइन गेमिंग मार्केट 2022 में 135 अरब रू . का था। 2012 में यह मात्र 5.3 अरब रू . का ही था। अनुमान हैं कि 2025 तक यह व्यापार 231 अरब रूपयें का