बाल विवाह : एक सामाजिक बुराई

  



राजस्थान एवं मध्य प्रदेश के कई ग्रामीण जिलों मे अभी भी बाल विवाह का प्रचलन है। अधिकतर बैसाख मास मे इनका आयोजन देखने को मिलता है।  अशिक्षित वर्ग मे विशेषकर दलित एवं पिछड़ी जातियों मे इसका रिवाज़ अभी भी बना हुआ है। अधिकतर बाल विवाह अपने आस पास के गावों मे ही होता है। बारात लेकर बहुत दूर तक नहीं जाते है। 

बाल विवाह मे ढोल-थाली बजाई जाती है और महिलाये खूब नाचती है एवं गीतों की तो भरमार रहती है।  नए-नए कपडे महिलाये पहनती है और उसमे अधिकतर चटक-मटक रंगो की बहार होती है।  ग्रामीण अंचल मे गहरे रंगो के वस्त्र ही पहने जाते है। 

छोटे से दूल्हे को वैसे ही सजाया जाता है जैसे वयस्क दूल्हे की सजावट होती है।  जैसे :- खूबसूरत पगड़ी (साफा ) उसके ऊपर कलंगी , तुर्रे , मोड़  , हाथ मे तलवार , कंधे मे लटकती हुई कटार , गले मे विभीन्न प्रकार के मोतियों की मालाए , कमरपट्टा , हाथ मे काकन-डोरा , कानों मे खूबसूरत लुंग के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के गहनों से दूल्हे को सजाया जाता है। दूल्हे के लिए विशेष पोशाक तैयार करवाई जाती है। गुलाबी रंग की रेशमी कमीज और शेरवानी , धोती या चूड़ीदार पायजामा , गुलाबी रंग के मोज़े और कसीदे वाली मोजड़ी पहनाई जाती है।  दूल्हे के हाथ मे हर समय रुमाल रहता है जिसे वह अधिकतर मुँह पर लगाए रखता है।  दूल्हे को तैयार करने के पहले हल्दी , आटे घी का उपटन लगाकर गुनगुने पानी से नहलाया जाता है।  कपडे पहनाकर इत्र एवं फुलेल लगाना भी जरुरी होता है। 

ठीक इसी प्रकार छोटी सी दुल्हन को भी सजाया जाता है और उसको हर समय घूँघट मे रखा जाता है।  कई बार तो दुल्हन इतनी छोटी होती है की उसकी माँ गोदी मे लेकर ही फेरे खिलाती है।  दूल्हा जब बारात लेकर विवाह के लिए लड़की के घर जाता है , उस समय उसके साथ सहायक के  रूप मे उसका मामा , फूफा या जीजा रहते है , दूल्हे का सहायक अपने हाथ मे एक डिब्बी रखता है जिसमे सुपारी , इलाइची , चूरन की गोली आदि मुख शुद्धि की सामग्री रहती है। ससुराल मे जाने पर इसी डीबी से सबकी मनुहार की जाती है।  ठीक इसी प्रकार दुल्हन के साथ भी एक सखी रहती है।  दुल्हन अगर छोटी होती है तो , दुल्हन की माँ को ही सखी बनना पड़ता है क्योंकि उसे बार-बार माँ का स्तनपान कराना पड़ता है।  यदि दुल्हन थोड़ी सी बड़ी हो तो उसकी भुआ , मौसी या भाभी को दुल्हन के साथ , उसके ससुराल कुछ दिन के लिए जाना पड़ता है। लड़की के ससुराल मे विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम एक-दो दिन मे संपन्न कराकर दुल्हन को वापस उसके पियर भेज देते है।  लड़का-लड़की जब व्यसक होते है तब उनका विधिवत गौना कराया जाता है। इस प्रकार बाल विवाह मे भी सभी औप्तरिकताए पूरी की जाती है जो बड़ो के विवाह मे की जाती है।  

बाल विवाह एक सामाजिक बुराई है , केवल कानून बनाकर इसको रोकना संभव नहीं है।  समज मे बाल विवाह को रोकने के लिए जान-जागृति की महती आवश्यकता है।  राजस्थान और मध्य प्रदेश मे कई सामाजिक संघठन एवं स्वयं सेवी संस्थाएं , बाल विवाह को रोकने के कार्यक्रम करते है जो सराहनीय है।  

 

Comments

  1. "This blog post is incredibly informative and well-written. I appreciate how the author broke down complex concepts into easily understandable language. It's evident that a lot of research and effort went into creating this content. Great job!"

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  2. Nice and impressive sir💐🙏

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  3. Good information

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  4. विभिन्न वर्गों की पंचायतों एवं जन अभियान से ही इस कुरीति का उन्मूलन हो सकता है.

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  5. This article really very informative Thank You Sa for Sharing 😊🙏
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    #jodhpur #rajasthan

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  6. Very nice thoughts.... People should read this type of blogs, which help the society to come out of these rituals....🙏

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  7. अति सराहनीय

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  8. सराहनीय

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  9. Marriage can be organize when a person capable to understand & realize his or her duties about each other , families, society and nation ! Every body must avoid the Child Marriage !!

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  10. Most Inspiring message to avoid the Child Marriage !

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