जल संरक्षण की जीवंत परिपाटी
पश्चिमी राजस्थान में वर्षा के जल को संग्रहीत करना बहुत पुरानी परिपाटी है। हर गाँव में चाहे वह छोटा हो या बड़ा एक मुख्य तालाब हुआ करता है। इसके अलावा अलग-अलग जगह पर छोटे-छोटे तालाब भी बनवाये हुये थे। जिनको नाड़ी या नाड़ा कहते है। इन जल स्रोतों को जीवन्त एवं शुद्ध रखने के लिये कई सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रम तालाब के किनारे पर आयोजित करने की परंपराएँ सतत् चलती रहती है। इन परंपराओं की शुरूआत कब से हुई यह कह नहीं सकते लेकिन रेगिस्तान के हर शहर कस्बा, गांव व ढाणीयों में जलस्रोतों को पवित्र एवं जीवंत रखने के लिए विभिन्न रीति रीवाज होते रहते है। इन रीवाजों का निश्चित समय भी होता है।
हर गाँव में विष्णु भगवान, कृष्ण भगवान का मंदिर
होता है। जिसे स्थानीय भाषा में ठाकुरजी का मंदिर कहते है। गाँव के ही वैष्णव
संप्रदाय के पुजारी ठाकुरजी के मंदिर की पूजा, सफाई एवं देखरेख करते है। इन पुजारियों के भरण पोषण के लिए
गाँव वाले अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार अनाज आदि दिया करते है। भादवा सुदी एकादशी
को दिन के तीसरे प्रहर में ठाकुरजी के विग्रह को ढोल नगाड़ों के साथ सभी गाँव वाले
मिलकर, पालकी सजाकर
मंदिर के बाहर लाते है और महिलायें मंगल गीत गाती हुई ठाकुरजी के विग्रह को गाँव
के मुख्य तालाब पर ले जाकर गाजे बाजे के साथ स्नान करवाते है। स्नान कराकर उनकी
पूजा अर्चना करके वापस ठाकुरजी को मंदिर में लाकर विराजमान करते है। तालाब पर सभी
पुरूष और महिलायें मिलकर ठाकुरजी से प्रार्थना करते है कि हमारे गाँव के तालाब
प्रतिवर्ष लबालब भरे रहें। तालाब ही एकमात्र जलस्रोत था जो मनुष्यों और पशु
पक्षियों के पीने की आवश्यकता पूरी करता था। तालाब के केचमेंट एरिया को आगोर कहते
है। आगोर को स्वच्छ रखना हर गाँववासी का कर्त्तव्य होता था। इस दिन को देवझूलनी
एकादशी भी कहते है। जिसे सभी गाँवों और शहरों में उत्साह के साथ मनाया जाता है।
मानसून इस समय विदाई ले
चुका होता है। खेतों में फसलें पककर तैयार हो चुकी होती है। सारे तालाब और नाड़े
भरे हुये रहते है। पशुधन के लिये गोचर और ओरण में पर्याप्त हरी घास होती है।
पक्षियों के चुगने के लिए कई तरह के बीज खेतों में पक जाते है। इस प्रकार भादवा का
महिना मनुष्यों, पशुधन और
पक्षियों के लिये बड़ा ही आनंददायक होता है। भादवा सुदी एकादशी के दिन ही पश्चिमी
राजस्थान में जलसंरक्षण का एक उत्सव मनाया जाता है जिसे समुंद्र मंथन के नाम से
जाना जाता है। हर नवविवाहिता जो विवाहित होकर अपने ससुराल में आती है उसे अपने
गाँव के जलस्रोतों के रखरखाव की बातें बताई जाती है। पूरे वैशाख महीने में सभी
वधुऐं फावड़ा और तगारी लेकर तालाब पर जाती है। तालाब को खोदकर उसकी मिट्टी तालाब के
बाहर उसकी पाल पर डाली जाती है। यह प्रक्रिया पूरे एक महीने तक चलती है। यह
कारसेवा हर गाँव में होती थी जो आज भी जीवंत है। वह अपने पीहर में सूचना भेजती है
कि मैनें एक महीने तक तालाब को खोदने का श्रमदान किया है।
वर्षा पर निर्भर तालाब
वर्षा जल से भर जाता है। भादवा सुदी एकादशी के दिन समुंद्र मंथन का उत्सव होता है।
नववधू का भाई अपनी बहन के लिये कपड़े आदि उपहार लाता है। बहन एक मटका जिसको
चित्रकारी से सजाया होता है उसको लेकर तालाब पर जाती है। भाई लाया हुआ उपहार बहन
को सौंप देता है। आजकल तो भाई अपनी बहन के सभी ससुराल वालों के लिये कपड़े व उपहार
लाता है। रात्रि को बहन अपने भाई के लिये प्रीतिभोज का आयोजन करती है। जिसमें सभी
रिश्तेदारों और मित्रों को आमंत्रित किया जाता है। दूसरे दिन बहन अपने भाई को भी
उपहार देती है। साथ ही अपने भतीजे और भतीजी के लिये भी उपहार भेजती है। वर्षों पुरानी
यह परंपरा आज भी कायम है। समुंद्र महोत्सव जल संरक्षण का अनूठा उदाहरण है। अपने
गाँव के पेयजल के स्रोत को हर नई बहु के द्वारा रख रखाव किया जाता है। इस परिपाटी
में भाई अपनी बहन को जल स्रोत की सुरक्षा का वचन देकर धोबे से जल पिलाता है। सभी
गाँव की औरतें गीत गाती हुई तालाब की परिक्रमा करती है। परिक्रमा चार बार की जाती
है। इस प्रकार समुंद्र मंथन की यह कथा पूरे पश्चिमी राजस्थान में भादवा सुदी
एकादशी को की जाती है।
पेयजल स्रोतों के रख रखाव
के लिये कई परंपराएँ भी चलती है। जिसमें एक मुख्य परंपरा यह होती है कि किसी के
बच्चा होने पर उसकी माँ बच्चा होने के कुछ दिन के बाद कुआँ पूजन के लिये जाती है।
मौहल्लें की सारी औरतें इस बच्चे की माँ को लेकर पूजन सामग्री साथ लेकर गाजे बाजे
के साथ गीत गाती हुई अपने घर से गाँव के मुख्य कुएँ पर जाकर उसकी पूजा अर्चना करती
है। यह प्रथा पूरे राजस्थान में आदिकाल से चली आ रही है जो आज भी विद्यमान है।
पेयजल रेगिस्तान में अमृत से ज्यादा महत्त्व रखता है। अतः पेयजल के स्रोतों को
सुरक्षित रखना, पवित्र रखना और
नियमित देखभाल करना सभी गाँव वालों का कर्त्तव्य होता है। आजकल कई जगह यह उत्सव तो
मनाये जाते है लेकिन जल स्रोतों की उपेक्षा की जा रही है। आवश्यकता है इसे
पुर्नजीवित करने की।
Very nice article
ReplyDeleteExcellent it's the life line of this region now it is required for all .
ReplyDeleteVery nice 👍
ReplyDeleteSarahniy lekhan new generation ko jal sarankshan ke liye prernaa milegi thanks 🙏
ReplyDeleteसादर प्रणाम
ReplyDeleteस्वच्छ पेयजल की वर्तमान भयावह स्थिति सरकार और आम जनता दोनों के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए । इस दिशा में अगर त्वरित कदम उठाते हुए सार्थक पहल की जाए तो स्थिति बहुत हद तक नियंत्रण में रखी जा सकती है, अन्यथा अगले कुछ वर्ष हम सबके लिए चुनौतिपूर्ण साबित होंगे।
Very well presented.
ReplyDeleteIt is need of the day.
High time to reserve our water reservoir.
ReplyDeleteAlways feeling motivated reading such bolgs
Perfectly written.
ReplyDeletePerfectly written. Culture of Rajasthan has very deep insight.
ReplyDelete👍✍️
ReplyDelete👍✍️
ReplyDeleteReally Helpful!
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