सिसकती राजस्थान की मरूगंगा-लूणी नदी
लूणी नदी राजस्थान की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। यह पश्चिमी राजस्थान की भागीरथी से कम नहीं है। लूणी नदी की सहायक नदियाँ सुकड़ी, मीठड़ी, खारी, बांडी, जवाई, जोजरी, गूइया आदि नदियाँ जगह-जगह पर आकर मिलती है। बालोतरा तक लगभग सभी नदियाँ इसमें मिल जाती है। उसके बाद केवल लूणी नदी के नाम से विख्यात बहुत बड़ी नदी के रूप में कच्छ के रण में जाकर समाप्त हो जाती है। लूणी नदी का उद्भव अजमेर की नाग पहाड़ियों से होता है।
पाली, जोधपुर, बालोतरा, जसोल आदि शहरों के
औद्योगिक नगरों में कपड़े की रंगाई-छपाई के हजारों बडे़-बडे़ कारखाने है। इन
कारखानों का रसायनयुक्त प्रदूषित जल प्रतिदिन इन नदियों में लाखों लीटर छोड़ा जाता
है। एक समय था जब ये नदियाँ अपने किनारें बसे गाँवों की जीवन रेखा थी। हालांकि यह
सब बरसाती नदियाँ थी लेकिन सबमें मीठा पानी होली तक बहता रहता था। नदी का पानी
प्रतिवर्ष इतना रिचार्ज होता था कि सभी नदियों के दोनां किनारों पर बने हुए लाखों
कुओं से लाखों हेक्टेयर भूमि सिंचाई की जाती थी। इन नदियों के किनारें सिंचित
फसलों में गेहूँ, सरसों, जीरा, ईसबगोल, जौ आदि फसलें बड़े पैमाने
पर होती थी। पानी और खेतों की मिट्टी की उर्वरकता इतनी अच्छी थी कि उन खेतों में
हरी सब्जियाँ वर्ष पर्यन्त बहुतायत से होती थी। लोगों का जीवन स्तर सम्पन्न था।
विगत कई वर्षो से कपड़े की
रंगाई-छपाई की फैक्ट्रियों का प्रदूषित जल इन नदियों मे प्रवाहित होता गया।
परिणामतः सभी नदियाँ जहरीली हो गई। नदियों के किनारे बने हुए कुओं का पानी भी
जहरीला हो गया। उस प्रदूषित पानी से सिंचाई करने पर सिंचिंत भूमि भी घातक रसायनों
से प्रदूषित हो गई। उसमें होने वाली फसलों में भी कई हेवी मेटल और खतरनाक रसायन आ
गये, जो मनुष्य की
फूडचैन में पहुंच गये। इस जहरीले पानी को पीने से पशुधन भी बीमार हो गये। दूधारू
पशुओं का दूध भी जहर बन गया। वन्य जीवों एवं पशु-पक्षियों के स्वास्थ्य पर भी बुरा
असर पड़ा। आजकल तो नदी के किनारे-किनारे खेतों की यह दुर्दशा हो गई हैं कि उनमें
घास का तिनका भी उगना बंद हो गया। किसानों की आजीविका का एकमात्र साधन खेती बर्बाद
हो गई।
इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए समय-समय पर
किसान अपनी क्षमता के अनुसार आंदोलन करते रहे है। कई स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता
इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए आगे आये इतना ही नहीं जोधपुर के पूर्व महाराजा
गजेसिंह ने भी एक बार इसमें सक्रिय सहयोग दिया था। पाली में जाकर किसानों के साथ
मिलकर इसमें भाग लिया था। फिर भी इसका कोई परिणाम नहीं निकला। टेक्सटाईल उद्योगपति, अफसरशाही और राजनेता इस
आंदोलन को आगे बढ़ने ही नहीं देते। अतः इन नदियों की हालत आज गंदे नाले की तरह हो
गई है। वर्ष पर्यन्त प्रदूषित जल इनमें बहता रहता है। पाली से चालीस किलोमीटर दूर
बांडी नदी पर नेहड़ा बांध बना हुआ है। वह भी केमिकल के पानी से भरा रहता है।
खेत की जमीन, कुओं का पानी, प्राकृतिक जल स्त्रोत आदि
को नष्ट करना बहुत बड़ा अपराध है। इन नदियों के कारण पाली से लेकर कच्छ तक और
जोधपुर से लेकर बालोतरा तक खरबों रूपयों का नुकसान हो चुका है। इसकी भरपाई करना
असंम्भव तो नहीं है, लेकिन दुष्कर
जरूर है। इतना बड़ा संगठित रूप से अपराध करने वाले लोगों को क्या कोई सजा देने वाला
नहीं है? किसी व्यक्ति को
मामूली चोट पहुंचाने पर भी उसे सजा मिलती है, एक वन्य जीव को क्षति पहुंचाने पर भी उसे सजा दी जाती है, लेकिन यह जो दुष्कृत्य
किया गया है एवं जघन्य अपराध किया गया है, उसकी सजा आज तक किसी को नहीं मिली। सभी उत्तरदायी लोग मुहँ
बंद करके, आँख बंद करके और
कान बंद करके बैठे है।
लाखों हेक्टेयर जमीन बंजर
हो गयी है। लाखों कुओं का पानी न पीने के काम आ सकता है, न सिंचाई के काम आ सकता
है, हजारों लोगों को हर वर्ष
मौंत और बीमारी के मुहँ में धकेला जा रहा है। पशुधन विभिन्न प्रकार की बीमारियों
से ग्रसित होकर मर रहे है। वन्य जीव एवं पशु-पक्षी बीमार होकर मर रहे है। परिणामतः
सारा ईकोसिस्टम और जैव-विविधता इस क्षेत्र की समाप्त होती जा रही है। इतने बड़े
जघन्य अपराध को देखते हुए भी हाथ पर हाथ धरकर बैठना बहुत बड़ा पाप है। जागरूक लोगों
को इस विकराल समस्या से मुक्त करने के लिए सजग और सक्रिय होना पडे़गा।
Good awareness
ReplyDeleteजब बाड़ ही खेत को खा जाती तब रखवाला कौन करेगा यह हालात है आज इस नदियों की हालात यह ओर कुछ यहाँ रहेंगे फिर इस प्रदूषित भु भाग को छोड़कर कही चाले जायेंगे
ReplyDeleteजब बाड़ ही खेत को खा जाती तब रखवाला कौन करेगा यह हालात है आज इस नदियों की हालात यह ओर कुछ यहाँ रहेंगे फिर इस प्रदूषित भु भाग को छोड़कर कही चाले जायेंगे
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