लिव-इन-रिलेशनशिप : एक खतरनाक साजिश

     केरल हाईकोर्ट ने कहा कि कानून लिव-इन-रिलेशनशिप को शादी के रूप में मान्यता नहीं देता हैं। विवाह एक सामाजिक संस्था हैं, जिसे कानूनी मान्यता प्राप्त हैं। विवाह समाज में सामाजिक और नैतिक आदर्शां को दर्शाता हैं। हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई करते हुए की। याचिका कर्ता एक हिन्दू एक ईसाई है, जिन्होनें 2006 में पति-पत्नी के रूप में साथ-साथ रहने का फैसला किया था। दम्पति के एक बच्चा भी हैं।

    भारत में लिव-इन-रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता नहीं हैं। वयस्क युवक युवतियां बिना शादी किये पति-पत्नि की तरह साथ-साथ रहते हैं। यह सामाजिक बुराई पश्चिमी देशों से भारत में आयी तथा तीव्र गति से समाज में बढ़ रही हैं। समाज में इस बुराई के साथ-साथ अन्य कई बुराईयां भी पनप रही हैं। लिव-इन-रिलेशन में उनके शारीरिक संबध तो रोज स्थापित होते हैं, दोनो वयस्क होने के कारण आपस में शारीरिक सम्बन्ध होते ही हैं परिणाम स्वरूप बच्चा भी पैदा हो जाता हैं। कुछ समय बाद लिव-इन-रिलेशनशिप समाप्त हो जाती हैं। इसकों तो कानूनी मान्यता हैं ही कोई सामाजिक मान्यता हैं। एक भयंकर परिस्थिति का जन्म होता हैं। उस बच्चें का क्या भविष्य होगा? उसके माता-पिता की क्या आइडेन्टीटी होगी? उस बच्चें को माता-पिता की सम्पति में कोई अधिकार नहीं होता हैं। उस बच्चें का कोई सामाजिक अस्तित्व नहीं होता हैं। इस सामाजिक बुराई के खतरनाक परिणाम आने शुरू हो गये हैं। समाज को स्वस्थ रखना है तो इस बुराई को बढ़ने से रोकना चाहिये। हमारी सामाजिक संरचना को तोड़ने की यह एक खतरनाक साजिश विदेशियों की चल रही हैं, इससे सावधानी सतर्क रहने की आवश्यकता हैं।

Comments

  1. लिव इन रिलेशनशिप कोई रिसता ही नहीं, यह केवल सहमति से शारीरिक भूख मिटाने का साधन है जो स्वीकार्य नहीं होना चाहिए । इसके परिणाम केवल कष्ट देने वाले होते हैं चाहे हत्या हो या संतति ।

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  2. It is one type of precrime to encourage crime against women

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