माँ की ममता
खेत में एक गाय ने बच्चे को जन्म दिया। दो-तीन कुत्त्ते नवजात बच्चे की तरफ आने की कोशिश कर रहे थे। गाय ने उन कुत्त्तो को भगा दिया। एक आदमी बछडे़ की मदद करने के लिए उस तरफ बढ़ा गाय ने उस आदमी को भी नजदीक नहीं आने दिया। उसने सोचा कि यह भी मेरे बछड़े के लिए नुकसानदायक हो सकता हैं। गाय में भी अपने नवजात बछड़े के प्रति इतना प्यार होता हैं। इतना ही नहीं कुत्त्ता, सुअर आदि पशुओं के साथ-साथ वन्यजीव भी अपने नवजात शिशु के बचाव के लिए हिसंक हो जाते हैं। जंगली जानवर जैसेः-सियार, रीछ आदि तो इस अवस्था में यदि किसी मनुष्य या अन्य जानवर को भूल से भी अपने बच्चों की तरफ आते देखते हैं, तो उनकी ओर झपट पड़ते हैं।
पिछले दिनों अखबार में खबर छपी कि झाड़ियों में एक नवजात शिशु कपडे़ में
लपेटा हुआ मिला। कोई महिला उसे फेंक गयी थी। इसी प्रकार एक दिन नालें में एक नवजात
शिशु का शव मिला। इस प्रकार की अनेक घटनाएँ प्रतिदिन अखबारों में प्रकाशित होती रहती
हैं। पता नहीं स्त्रियाँ इतनी क्रूर क्यों हो गई? एक तरफ जानवरों में
तो अपने बच्चों के प्रति इतना प्यार होता हैं कि यदि उनकों खतरा महसूस होते ही वे दुश्मन
को अधिकतम चोट पहुँचाने की कोशिश करते हैं, दूसरी तरफ जब हम
नालों में और झाड़ियों में मनुष्य के नवजात शिशुओं को पाया देखतें हैं तो ग्लानि महसूस
होती हैं।
सामाजिक एवम् पारिवारिक व्यवस्था में कहीं न कहीं छोटी-मोटी चूक हो रही
हैं। विवाहित या अविवाहित स्त्रियाँ अपने बच्चे को अवांछनीय समझती हैं और उसे जन्म
देते ही गुप्त रूप से नष्ट करने का प्रयास करती हैं। यह एक भयंकर बुराई हैं। इस प्रकार
नवजात शिशु की हत्या करना घोर नरक का भागीदार बनना हैं। अवांछनीय शिशु को मारते समय
माता की मनःस्थिति कैसी होती होगी?, इसकी कल्पना करना भी मुश्किल हैं। क्या
हम जानवरों से भी नीचे गिर गये हैं? समाजशास्त्रियों व पारिवारिक बुर्जुगों
के चिंतन करने का समय आ गया हैं कि इस सामाजिक बुराई से कैसे छुटकारा पाया जायें?
पाप
तो एक स्त्री कर रही हैं, लेकिन उस स्त्री को इस स्थ्ति तक पहुँचाने
में परिवार एवं समाज के लोग भी जिम्मेवार हैं। पुरूष प्रधान समाज में क्या पुरूषों
की जिम्मेवारी नहीं हैं? नारी को इतने नीचे स्तर तक गिराने में पुरूष
का भी हाथ होता हैं। सबको अपने-अपने गिरेबान में झांक कर देखना होगा। केवल एक स्त्री
को दोष देना उचित नहीं हैं। इस प्रकार की घटनाओं का गंभीरता से चिंतन करके यह प्रयास
करें कि ऐसी घटनायें समाज में नहीं हो।
सामाजिक प्रथाएँ ही इसकी पूर्णत ज़िम्मेदार हैं, बिन ब्याही माँ व उसका परिवार समाज में भयंकर बुराई व अपमान के डर से उस बच्चे का त्याग करना ही समस्या का हल समझता हैं, यही भय लड़कियों को त्यागने का कारण है, समाज में शादी विवाह दहेज के भार के अतिरिक्त दामाद व उसके परिवार को अपने से उच्चतर समझना होता है, कहीं ऊँच नीच होने पर भी बदनामी व सारा दोष लड़की व लड़की के परिवार को ही झेलना पड़ता है ।
ReplyDeleteVery heart touching.
ReplyDeleteNice topic sir.....
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