पढ़ने के साथ साथ पढ़ाना भी चाहिए

 मैंने 10 वीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की थी। उस समय के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। मैं पढ़ने में बहुत तेज था। सारी स्कूल में मेरी तारीफ होती थी। हमारे गांव मैं एक प्राइमरी स्कूल भी थी। उस समय स्कूल में कई महिला टीचर्स छोटे बच्चो को पढ़ाती थी। वे केवल आठवीं तक पढ़ी लिखी थी। शिक्षा विभाग ने यह आदेश पारित किया कि जो अध्यापक दसवी पास नहीं होंगे उनका इंक्रीमेंट रोक दिया जाएगा। उस प्राइमरी स्कूल मैं तीन महिला अध्यापक केवल आठवीं पास थी। उनको उसी वर्ष 10 वीं की परीक्षा पास करनी थी। वे कई सीनियर टीचर्स के पास अपनी समस्याएं लेकर गई, लेकिन अलग अलग टीचर्स के पास जाकर सभी विषय पढ़ना संभव नहीं था। यह उनके लिए एक परेशानी थी।

हिंदी के सीनियर टीचर श्री नेमीचनदजी निर्मल ने उन महिला टीचर्स को सलाह दी कि आप तीनो नारायण दास के पास चले जाओ। उसने इसी वर्ष प्रथम श्रेणी से मैट्रिक की परीक्षा पास की है। वह आपको दसवी के सारे सब्जेक्ट बड़े अच्छे तरीके से पढ़ा देगा। उसे अभी पैसों की भी जरूरत है। आप थोड़ा सा पैसा उसे फीस के तौर पर देंगे तो बहुत कम पैसे में आपको वह पढ़ा देगा। वे तीनों मिलकर यह प्रस्ताव लेकर मेरी माँ के पास गई। माँ ने कहा वह जरूर पढ़ा देगा। उन्होंने मुझे 10 रूपया प्रति टीचर प्रति महीने के हिसाब से देने का प्रस्ताव रखा। बदले में मुझे प्रति दिन दो घंटा उन्हें पढ़ाना था। मेरे लिए यह एक अच्छा ऑफर था। मुझे 30 महीना मिलने लगा। मैंने उनको अच्छे ढंग से पढ़ाना शुरू किया। हर दो महीने बाद जो पढ़ाता था उसकी परीक्षा भी लेता था।

जिन टीचर्स को मैं पढ़ाता था उनमें से एक का नाम था जसवंती बहन जी। उनके एक लड़का था। उसका नाम रजनीकांत था। वह मेरा क्लासमेट था। तीनों टीचर्स रजनीकांत के घर पर पढ़ने के लिए इकट्ठी होती थी। उसके घर मे बड़ा आंगन था। वहां बैठ कर अच्छे ढंग से पढ़ाई हो जाती थी। उस समय हमारे गांव में बिजली नहीं हुआ करती थी। एक लालटेन थी। जिसमे तीनो टीचर्स बारी बारी से अपने घर से मिट्टी का तेल  लाकर डालती थी और उस लालटेन की रौशनी में पढ़ाई की जाती थी। उन दिनों हमारे गांव में पंडित चिरंजी लाल जी दवे, जो मशहूर कथा वाचक थे, उन्होंने रामायण की कथा शुरू की। दो घंटा ट्यूशन पढ़ा कर रामायण की कथा सुनना रोज का कार्यक्रम था।

 दिसंबर महीने तक पूरा कोर्स मैंने पढ़ा दिया और दो बार उनकी परीक्षा भी ली। तीनों अध्यापिकाएं प्रथम श्रेणी से पास हो रही थी। उसके बाद मैंने उनसे कहा कि आप अब स्वयं पढ़ो। आप सभी मैट्रिक पास हो जाओगी। और यही हुआ। वे सब बोर्ड की परीक्षा मे उत्तीर्ण हो गयी। यह बात बताने के पीछे मेरी यह धारणा है कि विद्यार्थी को पढ़ने की साथ साथ पढ़ाते भी रहना चाहिए। जिससे उसकी विषय में पकड़ मजबूत होती है।

 हर माता पिता को चाहिए कि उसका बच्चा जिस श्रेणी में पढ़ रहा हो, उसे एक श्रेणी कम के बच्चों को घंटा दो घंटा समय देकर पढ़ाते रहना चाहिए।  इससे अपने बच्चों का ज्ञान बढ़ता है। सभी माँ बाप को चाहिए कि अपने बच्चे को यह कहें कि दूसरों को भी थोड़ा थोड़ा पढ़ाते रहे। ऐसा करने से उसकी खुद की पढ़ाई का स्तर बढ़ेगा। जो उसने पिछली कक्षा में पढ़ा है, उसका पुनः रिवीजन हो जाएगा और बचपन में पढ़ा हुआ कभी भूल नहीं सकता। छोटे बच्चे को पढ़ाना अपने समय का दुरुपयोग नहीं अपितु सदुपयोग है। अतः अपने से छोटी क्लास के बच्चो को पढ़ाते रहना चाहिए।

 

Comments

  1. Even though I had worked with several well-known scientists, but i never find as like your passion in others. Your thoughts and outlook are full of novelty which not found others....

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  2. Wow, this is one of most motivating I have ever come across. Being a student I feel very motivated. Thank you for this blog.

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