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Showing posts from November, 2023

ग्रीन बिल्डिंग की आवश्यकता

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  इन दिनों भारत में ग्रीन बिल्डिंग का प्रचलन बढ़ गया है। निरंतर जलवायु परिवर्तन से उभरती हुई चुनौतियों को देखते हुए ग्रीन बिल्डिंग आवश्यक हो गया है। ग्रीन बिल्डिंग में बिजली और पानी का खर्च बहुत कम हो जाता है तथा हवा और रोशनी प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक रूप से मिलती है। इससे बीमारियों से मुक्ति मिलेगी और इलाज आदि का खर्च अपने आप घट जायेगा।                 सरकार भी ग्रीन बिल्डिंग के कॉनसेप्ट को बढ़ावा दे रही है। कस्बों और शहरों में ग्रीन बिल्डिंग बनाने को ज्यादा बढ़ावा दिया जा रहा है। ग्रीन बिल्डिंग के विकास में चीन का प्रथम स्थान है , कनाडा का दूसरा स्थान है तथा भारत तीसरे स्थान पर है। भारत में ग्रीन बिल्डिंग के क्षेत्र में तीव्र गति से विकास हो रहा है। आशा है कि अगले कुछ वर्षों में चीन और कनाडा को पछाड़कर भारत नंबर वन बन जायेगा।           ग्रीन बिल्डिंग के विकास के लिए भारत में इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल बहुत तेजी से काम कर रही है। काउंसिल का उद्देश्य यह है कि ऐसी ग्रीन बिल्डिंग की डिजाइनें विकसित की जाये जिसमें पानी और बिजली का कम खर्च हो , प्राकृतिक संसाधनों का ज्यादा से ज्यादा इ

हवन का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व

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  मैं बचपन में ढाणी में रहता था। हम आठ भाई-बहन थे। मेरी माताजी चूल्हे पर बाजरी के सोगरे बनाती थी। घर में तीन-चार गायें भी थी। एक दिन छोड़कर एक दिन बिलोना किया जाता था। गाय का घी घर में हर समय उपलब्ध रहता था। बाजरी हाथ की चक्की से रोज सवेरे पीस कर आटा बनाया जाता था। सोगरा बनाते समय पहला सोगरा गाय के लिए रखा जाता था। दूसरा सोगरा कुत्तों के लिए रखते थे। तीसरा सोगरे का टुकड़ा घी और गुड़ मिलाकर चूल्हे की अग्नि में भोग लगाया जाता था। प्रतिदिन चूल्हे में भोग लगाना हवन अथवा यज्ञ का ही सुख स्वरूप होता था।                उसके अतिरिक्त सवेरे जब मैं दीपक और अगरबत्ती भगवान को करता था। उस समय मिट्ठी के धूपये में चूल्हे से कण्ड़ो के खीरे रख कर उस पर गाय के घी से जोत करते थे। उसमें बत्तीसा धूप और गुगल धूप भी आहुति के रूप में ड़ालते थे। प्रतिदिन पूजा के समय इस प्रकार का सुक्ष्म हवन किया जाता था।             सनातन परम्परा में हवन अथवा यज्ञ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। सभी मांगलिक कार्यो में हवन अवश्य किया जाता है। गृह-प्रवेश , विवाह-उत्सव , तथा विभिन्न मांगलिक कार्यो में शुद्धिकरण के लिए हवन आयोजित कि

धनतेरस का त्यौहार

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            कार्तिक वदी तेरस को धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन घर में धन लाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि धनतेरस के दिन घर में लाया हुआ धन अक्षय रहता है व वर्षपर्यंत बढ़ता ही रहता है। हर व्यक्ति बाजार जाकर सोना , चाँदी , बर्तन , वाहन , कपड़ा , फर्नीचर आदि विभिन्न प्रकार की वस्तुऐं प्रसन्नतापूर्वक खरीद कर लाते है। धनतेरस की खरीददारी अक्सर पति-पत्नी दोनों मिलकर करते है। धनतेरस के दिन खरीदा हुआ धन घर में लाकर उसकी पूजा की जाती है।           धनवंतरी भगवान का समुद्र मंथन से अवतरण भी आज के दिन ही हुआ था। अतः धनवंतरी के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में उनकी जंयती मनाई जाती है। धनतेरस को हमारे देश में आयुर्वेद जगत से जुडे़ हुये वैद्य , रसायनशालाओं एवं आयुर्वेदिक चिकित्सालयों के साथ-साथ आयुर्वेद के विद्यार्थीयों द्वारा भी धनतेरस त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।           मुझे याद है मेरे गाँव में भी पचास-साठ वर्ष पूर्व धनतेरस को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था। धनतेरस के दिन महिलायें प्रातः तीन बजे उठ जाती थी। स्नान आदि करके नये-नये वस्त्र एवं आभूषण धारण करती थी। आपस में झुण्ड बनाकर कई टोलिया

पूरा परिवार साथ बैठकर डिनर करें

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                           कोलम्बिया यूर्निवसिटी में नेशनल सेंटर ऑन एडिक्शन की 2012 की रिपोर्ट में यह पाया गया है कि जो बच्चे परिवार के साथ डिनर करते है उनमें डिप्रेशन का जोखिम कम होता है। भोजन और संस्कृति की सीनियर लेक्चरार एनीबू्रबेकर के अनुसार साथ में भोजन करना एक प्रकार से सामाजिक गोंद का काम करता है। डाइनिंग टेबल पर या साथ में भोजन करना एक दूसरे को सुनने , जुड़ने और अपने सुख-दुःख बांटने का अच्छा स्थान व समय होता है। बडे़-बड़े व्यापारिक सौदे आजकल डाइनिंग टेबल पर फाइनल होते है।                आजकल की भागदौड़ की जिंदगी में अपने कामों की वजह से एक घर में रहते हुये भी परिवार के सदस्यों को आपस में मिलजुल कर साथ बैठने का समय ही नहीं मिलता है। तो साथ बैठकर भोजन करना तो बहुत दूर की बात है। साथ बैठकर भोजन करना आजकल पारिवारिक सदस्यों के लिये अत्यंत दुर्लभ हो गया है।           गाँवों में अधिकतर संयुक्त परिवार होते है। ब्यालू (रात्रि भोजन) परिवार के सभी सदस्य मिलजुल कर ही करते है। महिलायें भोजन की सब सामग्री बनाकर एक जगह एकत्रित कर लेती थी। परिवार के सभी सदस्य दरी बिछाकर व्यवस्थित रूप से भोज

गर्भवती माताओं की गलती का बच्चे भुगत रहे है परिणाम

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                      स्पेन से प्रकाशित होने वाले एनवायर्नमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स जर्नल में एक चौंकाने वाली रिसर्च छपी है। 2003 से 2008 तक 6 वर्ष तक 1900 से अधिक महिलाओं और बच्चों के नमूने इकक्ट्ठे किये गये तथा बच्चों का 9 साल की उम्र तक बीएमआई नापा गया। उसमें यह पाया गया कि गर्भवती माताओं ने गर्भावस्था के समय प्लास्टिक के बर्तनों में खाना खाया या नानस्टिक बर्तनों का प्रयोग किया इन परिस्थितियों में माँ से अजन्में बच्चों में ऐसे केमिकल पाये गये जिससे बच्चों का जन्म से ही वजन बढ़ने लग गया और वे मोटापे का शिकार हो गये।           खेतों में इस्तेमाल होने वाले फंगीसाइड और पेस्टीसाइड में भी इसी प्रकार के खतरनाक केमिकल पाये जाते है जो गर्भवती माताओं और नवजात शिशु के शरीर में पाये गये। गभर्वती माता द्वारा प्रयोग में लाये गये सिंथेटिक सौंदर्य प्रसाधनों का भी प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है। जन्म से पूर्व ही शिशु में कई प्रकार की बीमारियों का खतरा पैदा हो जाता है।           भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में सोलह संस्कारों का वर्णन विस्तार से दिया हुआ है। गर्भाधान संस्कार , पुंसवन संस्का

बच्चे मन के सच्चे

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                     शिशु के मस्तिष्क का विकास गर्भावस्था के समय से ही शुरू हो जाता है। गर्भवती माता के स्वास्थ्य , खानपान और घर के वातावरण का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पड़ता है। शिशु के जन्म के बाद उसका मस्तिष्क बहुत तेजी से विकसित होता है। जीवन में सीखने की क्षमता शिशु के आठ वर्ष की आयु तक ज्यादा निर्भर करती है। गर्भस्थ शिशु पर माता की हर एक्टिविटी का प्रभाव पड़ता है। सनातन धर्म में गर्भवती माताओं के लिये विभिन्न प्रकार की गाईडलाइन बनायी गयी है। ऐसा कहा जाता है कि वीर अभिमन्यु ने चक्रव्यूह तोड़ने का युद्ध कौशल अपनी माता के पेट से ही सीख लिया था।                     तंत्रिका विज्ञान (न्यूरोसांइस) का मानना है कि बच्चे के शुरूआती वर्षो में मिलने वाला अच्छा वातावरण , उचित खानपान , खिलौने और स्नेहपूर्ण शब्दों का सकारात्त्मक असर पड़ता है। बच्चे को गले लगाना , प्यार भरी बातें करना , शारीरिक और मानसिक भरपूर आराम देना तथा अच्छी-अच्छी चीजें दिखाना , बच्चे के भावनात्त्मक , सामाजिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित है। बचपन की देखरेख ही हमारे बच्चे का भविष्य बनाती है।                छोटे बच्चों के साथ मा

गंगाजल की पवित्रता का वैज्ञानिक मत

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                            भारत में गंगाजल को अति पवित्र माना गया है। सनातन धर्म के सभी धार्मिक ग्रंथों में गंगाजी की महिमा का विस्तार से वर्णन है। यह माना जाता है कि उसमें किसी प्रकार का बैक्टीरिया नहीं पनपता है। हिंदू धर्म में प्रकृति को माता की तरह सम्मान दिया जाता है। गंगाजी को भी गंगा मैया ही कहते है। हर पूजा पाठ में गंगाजल आवश्यक है।                इतिहास में यह लिखा गया है कि अकबर स्वंय गंगाजल का ही सेवन करता था और आने वाले मेहमानों को भी गंगाजल ही पिलाता था। अंग्रेज जब कलकत्ता से जहाज द्वारा वापस इंग्लैण्ड जाते थे तो अपने साथ गंगाजल ले जाते थे क्योंकि वह लम्बे समय तक सड़ता नहीं था। लेकिन लंदन से आते समय जो पानी अपने देश से लाते थे वह रास्ते में ही सड़ जाता था। गंगाजल की पवित्रता का कई वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया।                नेशनल बॉटेनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट , लखनऊ के तत्कालीन निदेशक डॉक्टर चन्द्रशेखर नौटियाल ने अनुसंधान से प्रमाणित किया कि गंगाजी के पानी में बीमारी पैदा करने वाले इकोलाई बैक्टीरिया को मारने की अद्भुत क्षमता है। डॉक्टर नौटियाल ने रिसर्च में आगे बताया कि उन्

गुजरात में प्रथम प्राकृतिक कृषि विश्वविद्यालय

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                      खेती में रासायनिक खाद एवं रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के द्वारा उत्पादित जो भोजन हम करते है उसके परिणामतः विभिन्न प्रकार की शारीरिक और मानसिक बीमारियाँ मनुष्यों में व पालतू पशुओं में तीव्रगति से बढ़ रही है। अधिक उत्पादन के लोभ में सरकार और किसान दोनों ने मिलकर जैविक खेती की, जो हमारी परंपरागत खेती थी, उसको बर्बाद कर दिया है।           पिछले 20-25 वर्षो से बिना केमिकल के खेती करने की लोगों में जागृति आई व मांग बढ़ रही है जिसे ऑर्गेनिक फार्मिंग , जैविक खेती , प्राकृतिक खेती आदि कई नामों से पुकारा जाता है। जैविक खेती को सीखने के लिये पर्याप्त साहित्य उपलब्ध नहीं था। आधा अधूरा ज्ञान लोगों को सफल नहीं होने दे रहा था। विश्वस्तर पर और हमारे देश भारत में भी जैविक खेती का रूझान बढ़ने से वैज्ञानिकों की सोच में परिवर्तन आया। शोध संस्थानों के द्वारा ऑर्गेनिक फार्मिंग के विभिन्न पहलुओं पर निरंतर शोध कार्य किया जा रहा है और उसे किसानों तक पहुँचाया जा रहा है। लेकिन अभी भी अप्राकृ्तिक खेती को बढ़ावा देने के लिये जो निवेश किया जा रहा है उसकी अपेक्षा प्राकृतिक खेती के प्रच

शुभ-लाभ

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                           वैदिक शास्त्रों के अनुसार शंकर भगवान के पुत्र गणेश जी का विवाह प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्रियाँ रिद्धी और सिद्धी नाम की कन्याओं से हुआ था। ऐसा माना जाता है कि सिद्धि से शुभ और रिद्धी से लाभ नामक दो पुत्र हुये। घर में शुभ-लाभ का चिन्ह् लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है। दिपावली के अवसर पर , अन्य किसी शुभ अवसर पर , नये मकान या नये प्रतिष्ठान के शुभारंभ पर यहाँ तक कि पशुशालाओं में भी शुभ-लाभ लिखने से घर में सुख समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। शुभ-लाभ के साथ-साथ ऊँ और स्वास्तिक भी सनातन धर्म के चिन्हों को अंकित करना सुख सम्पति का भण्डार भरपूर रहता है।                हिन्दू धर्म में भगवान गणेशजी को सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता कहते है। भगवान गणेशजी समृद्धि , बुद्धि , सफलता देने वाले और जीवन की सभी बाधाओं को दूर करने वाले देवता माने जाते है। भगवान गणेशजी स्वंय रिद्धि-सिद्धी के दाता और शुभ-लाभ के प्रदाता है। गणेशजी के प्रसन्न होने पर भक्तों की बाधा , संकट , रोगदोष और दरिद्रता दूर करते है। ज्योतिष के अनुसार चौघड़िया या मुर्हूत देखते समय अमृत के अतिरिक्त लाभ और श

ऑनलाइन गेम से बचे

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                      मनुष्य का मनोविज्ञान ऐसा होता है कि कुछ बड़ा पाने के लिए किसी भी हद तक जोखिम लेने को तत्पर रहते है। आजकल बच्चों में ऑनलाइन गेम खेलने की आदत से काफी परिवार बर्बाद हो चुके है। परिवार में किसी का बेटा , किसी का पति , किसी का भाई इस ऑनलाइन गेम की वजह से दुनिया से विदा हो गये है। आये दिन अखबारों में व सोशल मीडिया पर इस प्रकार की खबरें आती रहती है। जो ऑनलाइन गेम से बर्बाद हो रहे है। केवल भारत ही नहीं पूरे विश्व में ऐसी घटनाएँ हो रही है।                 अधिकतर 16 वर्ष से लेकर 30 वर्ष तक के बच्चे इसमें ज्यादा बर्बाद हो रहे है। केवल पुरूष ही नहीं , महिलाएँ भी इस बुराई में कम नहीं है। आंकड़ों के अनुसार जहाँ पुरूष प्रति सप्ताह दस घण्टे ऑनलाइन खर्च करते है वहाँ महिलायें लगभग 11 घण्टे प्रति सप्ताह बर्बाद कर रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2022 में लगभग 42 करोड़ व्यक्ति ऑनलाइन गेम खेलते थे , लेकिन 2023 में इसकी संख्या बढ़कर 44 करोड़ से अधिक होने की संभावना है , जो आठ प्रतिशत की बढ़ोतरी है। भारत में लगभग 9 करोड़ कंज्यूमर्स ने पैसे खर्च करके गेमर्स ऐप खरीदे है।        

निंद्रा रानी

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                      मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिये भरपूर नींद लेना अत्यंत आवश्यक है। जिन लोगों को पर्याप्त नींद नहीं आती उनको कई बीमारियाँ घेर लेती है। प्रतिदिन कम से कम 7-9 घण्टे तक नींद लेना आवश्यक है। कम नींद की वजह से हार्ट अटैक का भी खतरा बढ़ जाता है।           हृदय रोग विशेषज्ञों का मानना है कि गहरी नींद पूरी नहीं होना भी हार्ट अटैक का कारण बनता है। रक्तचाप , सीने में दर्द , अनियमित धड़कन , कॉलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ना आदि समस्याऐं कम नींद के कारण होती है। कम नींद लेने वाले व्यक्तियों में मानसिक तनाव रहता है। निंद्रा की कमी के कारण ही हार्ट अटैक , मोटापा , किडनी रोग , डायबिटीज और दिमाग को नुकसान आदि बीमारियाँ हो जाती है।           अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी ने प्रकाशित किया कि कम नींद लेने से हार्ट अटैक आने की संभावना 32 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। अनिंद्रा की बीमारी मनुष्यों में आजकल तीव्रगति से बढ़ रही है। संतुलित खानपान की कमी , नियमित श्रम की कमी और मानसिक सोच में बदलाव के कारण नींद की कमी हो रही है। पारिवारिक सदस्यों के आपसी तालमेल और प्रत्येक की दिनचर्या में विभिन्नता होने

संयुक्त परिवार में सबका भला

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                      संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 15 मई को प्र्रतिवर्ष इंटरनेशनल डे ऑफ फेमिलीज अर्थात् संयुक्त परिवार दिवस मनाया जाता है। परिवार ही किसी व्यक्ति की पहचान होता है। उसके बिना हर व्यक्ति अधूरा माना जाता है। व्यक्ति जीवन में कितनी तरक्की कर लें यदि परिवार का साथ और अपनों का अपनापन नहीं मिलें तो उन्हें बहुत तनाव , दुःख , उदासी और अकेलेपन का जीवन बिताना पड़ता है। भारतीय संस्कृति में संयुक्त परिवार अनादिकाल से चला आ रहा है। धीरे-धीरे संयुक्त परिवारों की संख्या कम होती जा रही है और एकल परिवार बढ़ रहे है। जिसके दुष्परिणाम सब झेल रहे है। संयुक्त परिवार में रहने , इस भावना को समझाने और परिवारों को टूटने से बचाने के लिये ही हर वर्ष संयुक्त परिवार दिवस मनाया जाता है।                     जिन बच्चों के माँ-बाप दोनों नौकरी करते है उनके बच्चे संयुक्त परिवार में ही दादा-दादी और चाचा-चाची के साथ रहकर सही तरीके से पल सकते है। अतः कामकाजी कपल्स के लिये तो संयुक्त परिवार ही उत्तम है। संयुक्त परिवार में सोशल सिक्यूरिटी रहती है। किसी भी आर्थिक या शारीरिक मुश्किल के समय संयुक्त परिवार का महत्त्