बच्चे मन के सच्चे

              


  शिशु के मस्तिष्क का विकास गर्भावस्था के समय से ही शुरू हो जाता है। गर्भवती माता के स्वास्थ्य, खानपान और घर के वातावरण का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पड़ता है। शिशु के जन्म के बाद उसका मस्तिष्क बहुत तेजी से विकसित होता है। जीवन में सीखने की क्षमता शिशु के आठ वर्ष की आयु तक ज्यादा निर्भर करती है। गर्भस्थ शिशु पर माता की हर एक्टिविटी का प्रभाव पड़ता है। सनातन धर्म में गर्भवती माताओं के लिये विभिन्न प्रकार की गाईडलाइन बनायी गयी है। ऐसा कहा जाता है कि वीर अभिमन्यु ने चक्रव्यूह तोड़ने का युद्ध कौशल अपनी माता के पेट से ही सीख लिया था।

                    तंत्रिका विज्ञान (न्यूरोसांइस) का मानना है कि बच्चे के शुरूआती वर्षो में मिलने वाला अच्छा वातावरण, उचित खानपान, खिलौने और स्नेहपूर्ण शब्दों का सकारात्त्मक असर पड़ता है। बच्चे को गले लगाना, प्यार भरी बातें करना, शारीरिक और मानसिक भरपूर आराम देना तथा अच्छी-अच्छी चीजें दिखाना, बच्चे के भावनात्त्मक, सामाजिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित है। बचपन की देखरेख ही हमारे बच्चे का भविष्य बनाती है।

            छोटे बच्चों के साथ माता-पिता को बहुत ही सावधानी से बर्ताव करना चाहिये। अपने बच्चों को पर्याप्त समय दें। ऐसा नहीं करने पर आपके और बच्चे की दूरी बढ़ जायेगी। फलतः अण्डरस्टेडिंग समाप्त होगी। कई माता-पिता अपने बच्चों को उपदेश के रूप में आदेशात्मक भाषा में कुछ चीजें करने व कुछ चीजें नहीं करने का कहते रहते है। इसका ज्यादा असर बच्चे पर नहीं पड़ता है, जब तक कि आप स्वंय उस रास्ते पर नहीं चलेंगे। कई बार बच्चा गलती करता है और अपने अभिभावकों को स्वंय आकर बता देता है। ऐसी परिस्थिति में बच्चे को उस गलती के लिये डांटते रहना अच्छी बात नहीं है। उस बच्चे ने अपनी गलती को आपके सामने बताने की हिम्मत जुटाई है अतः उसे धन्यवाद करना चाहिये।

        कई माता-पिता यह समझते है कि बच्चे का टाईम-टेबल और अन्य नियम हमें बनाकर देने चाहिये। कोई भी चीज बच्चे को तर्क संगत समझाना आवश्यक है। बच्चे के ऊपर जबरदस्ती नहीं थोंप सकते है क्योंकि जरूरी है उसके क्या कारण है? अगर बच्चे को समझा देंगे तो बच्चे को उसके अनुसार चलने में आसानी रहेगी। नियम बनाते समय बच्चों की बात को भी अवश्य सुनें।

        बच्चे के शरारत करने पर कई मातायें उसे धमकी देती रहती है कि आने दे तेरे पापा को, शाम को बहुत पिटवाऊंगी। ऐसी धमकी बच्चे को और अधिक शरारतें करने के लिये उकसाती है। ऐसा करके माता, बच्चे के सामने अपना महत्त्व कम करके पिता को खतरनाक साबित करने का प्रयास करती है। सारी समझाईस प्यार व दुलार से ही करें तो बच्चे पर ज्यादा सकारात्त्मक प्रभाव पडे़गा।

                    बच्चों की बात को सुनना बहुत जरूरी है। बच्चा जो बोलता है उसको अनसुना नहीं करना चाहिये। बच्चे की हर चीज में रूचि लें। यदि आप चाहते है कि बच्चा आपकी बात सुनें तो यह जरूरी है कि पहले आप उसकी बात सुनें। अक्सर कहा जाता है कि ज्यादा प्यार करने से बच्चे बिगड़ जाते है। यह सही है। उसकी हर छोटी बड़ी मांग को क्षण में ही पूरा नहीं करना चाहिये। माता-पिता के लिये प्यार दुलार दिखाना उतना ही जरूरी है जितना सही मूल्यों को सीखाना। माना जाता है कि अपने बच्चों के साथ दोस्त बनकर रहना चाहिये लेकिन यह भी नहीं भूलें कि आप पेरेंट्स भी है। मित्र हर गलतियों को नजर अंदाज करते रहते है लेकिन पेरेंट्स बच्चों की गलतियाँ और उनके गलत फैसलों को रोकता है। बच्चे को रोकने-टोकने से कुछ समय के लिये वह नाराज भले ही हो जाये लेकिन उचित यही है कि कुछ पलों की नाराजगी झेल लेनी चाहिये।

        अपने बच्चे की तुलना हर समय दूसरे बच्चों से करना एक बहुत बड़ा अपराध होता है। यह मान के चलों कि हर बच्चा अपने आप में खास होता है। आप बच्चे को किसी दूसरे की अपेक्षा कमतर बताते है तो आपके बच्चे में धीरे-धीरे हीन भावना पैदा होगी तथा उसका आत्माविश्वास कमजोर होने लगेगा। अतः यह जरूरी है कि बच्चा अपनी जिंदगी में जो बनना चाहता है उसे बनने दें, जिस फील्ड में उसकी रूचि हो उसे करने दें। बच्चों को बहुत अधिक कड़ी सजा हर समय नहीं देनी चाहिये। किसी भी परिस्थिति में उसके साथ मारपीट नहीं करें। बच्चों को पीटने से वे हिंसक और आक्रामक हो जाते है। वह दूसरे बच्चों के साथ मारपीट करना शुरू कर देता है। अतः बच्चों को सबक सिखाने के लिये अन्य तरीकां का इस्तेमाल करें। आप बच्चे को कितना भी डांटे या धमकी दे दें, उन्हें कभी भी अपनी गलती समझ में नहीं आयेगी। अच्छा तरीका यही है उसे समझाने के लिये व्यावहारिक तरीके अपनायें।

        बच्चे के पालन-पोषण में उसकी उम्र का भी सदैव ध्यान रखें। उम्र बढ़ने के साथ-साथ आपको उसके साथ किये जाने वाले व्यवहार में भी परिवर्तन लाना होगा। उसकी जरूरतों का भी ध्यान रखें, उन्हें कुछ आजादी भी दें। यह इतना आसान नहीं है फिर भी समय की मांग है। हर माता-पिता को सलाह देने के लिये अन्य पेरेन्ट्स हमेशा उतावले रहते है लेकिन आपको यह निर्णय करना है कि हमारे घर परिवार की परिस्थितियों के साथ क्या आवश्यक है? और क्या नहीं। आपको बच्चे के लिये जो सही हो वही करना चाहिये।

        इस प्रकार छोटे बच्चों की देखभाल में संतुलित दिमाग के साथ व्यवहार करने पर ही आप एक अच्छे माता-पिता बन सकेंगे। बचपन की नींव पर ही आपके बच्चे के जीवन की इमारत खड़ी होती है। अतः इस बात का सदैव ध्यान रखें कि नींव में कहीं किसी प्रकार की कमी न रह जाये। बच्चे के प्रारंभिक जीवन के समय माता-पिता द्वारा की गई गलती का पछतावा जिंदगी भर करना पड़ता है। अतः अच्छे माता-पिता बनेंगे तभी बच्चे भी सपूत बनेंगे।

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