धनतेरस का त्यौहार

         


कार्तिक वदी तेरस को धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन घर में धन लाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि धनतेरस के दिन घर में लाया हुआ धन अक्षय रहता है व वर्षपर्यंत बढ़ता ही रहता है। हर व्यक्ति बाजार जाकर सोना, चाँदी, बर्तन, वाहन, कपड़ा, फर्नीचर आदि विभिन्न प्रकार की वस्तुऐं प्रसन्नतापूर्वक खरीद कर लाते है। धनतेरस की खरीददारी अक्सर पति-पत्नी दोनों मिलकर करते है। धनतेरस के दिन खरीदा हुआ धन घर में लाकर उसकी पूजा की जाती है।

        धनवंतरी भगवान का समुद्र मंथन से अवतरण भी आज के दिन ही हुआ था। अतः धनवंतरी के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में उनकी जंयती मनाई जाती है। धनतेरस को हमारे देश में आयुर्वेद जगत से जुडे़ हुये वैद्य, रसायनशालाओं एवं आयुर्वेदिक चिकित्सालयों के साथ-साथ आयुर्वेद के विद्यार्थीयों द्वारा भी धनतेरस त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।

        मुझे याद है मेरे गाँव में भी पचास-साठ वर्ष पूर्व धनतेरस को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था। धनतेरस के दिन महिलायें प्रातः तीन बजे उठ जाती थी। स्नान आदि करके नये-नये वस्त्र एवं आभूषण धारण करती थी। आपस में झुण्ड बनाकर कई टोलियाँ दीपक, रोली, कुमकुम, चावल, सुपारी आदि द्वारा पूजन सामग्री की थाली सजाकर गाँव के मुख्य तालाब की और ईश्वर के भजनों का कीर्तन करते हुये जाती थी। सभी टोलियाँ तालाब के किनारे पहुँचकर विधिवत तालाब की पूजा करती थी। सूक्ष्म पूजा के बाद तालाब के किनारे की मिट्टी के ढ़ेले तगारी में रखती थी। तालाब की आज्ञा लेकर वे उस मिट्टी को सिर के ऊपर लेकर पुनः गीत गाती हुई अपने-अपने घरों की और चल देती थी। घर आकर उस मिट्टी की ढ़ेली को घर में सुरक्षित जगह पर इस ढंग से रखती थी कि वर्ष पर्यन्त वह मिट्टी सुरक्षित रहे। अगले वर्ष धनतेरस को पुनः मिट्टी रूपी धन को इसी विधि से घर पर लाया जाता था। यह परिपाटी सदियों से प्रत्येक गाँव में चली आ रही है।

        आओ अब हम तालाब की मिट्टी का विज्ञान समझते है। प्रत्येक तालाब में पानी की आवक बनी रहें इस हेतु बहुत बड़ा भूभाग जिस केचमेंट को ओरण या गॉड फोरेस्ट के नाम से छोड़ा जाता था जिसमें विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे, झाडियाँ, लतायें, औषधीयाँ, घासफूस आदि प्राकृतिक रूप से बहुतायत में उगती है। पशुधन एवं वन्यजीव इसमें विचरण करते रहते है। इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार का अतिक्रमण निषेध रहता है। वर्षाकाल में पानी के साथ-साथ कार्बन से भरपूर मिट्टी सूक्ष्म जीवाणु, पेड़-पौधां के पत्ते, पशुओं के गोबर के अंश आदि पानी के साथ मिलकर बहते हुये तालाब की तलहटी में क्ले के रूप में जमा होते रहते है। इस क्ले में पोषकतत्त्वों के साथ-साथ चिकनाई भी अधिक होती है, जो पानी को जमीन के अन्दर जाने से अर्थात् सीपेज होने से रोकती है। इसी पवित्र क्ले की कुछ ढेलियाँ तगारी भरकर महिलायें धनतेरस को लक्ष्मी के रूप में अपने घर लाती है। यही तालाब की क्ले वास्तविक लक्ष्मी होती है। जिससे सारी सृष्टि के भरण-पोषण के लिये सारी फसलें पैदा होती है। इसी रिवाज के साथ प्रातः सूर्योदय से पूर्व धनतेरस मनाई जाती है।

        इसके अतिरिक्त ऐसा धन खरीदा जाता था, जिसमें कभी डिप्रीसियेशन नहीं होता हो। उस समय सोना, चाँदी के साथ-साथ तांबा और पीतल के बर्तन खरीदे जाते थे। मुझे याद है पचास साल पहले एक रूपये में जितने पीतल के बर्तन आते हांगे, इतने वर्षों तक इस्तेमाल करने के बाद यदि वे भंगार में भी आज बेचे जायें तो आज उनके तीन सौ रूपये मिलते है। उस समय का एक रूपया चाँदी का आज हजार रूपये का होता है। दूसरी तरफ आज जो स्टील के बर्तन धन के रूप में खरीदकर लाये जाते है। उनका कितना डेप्रिशेशन होता है। यह आप स्वयं सोच लें। जो वाहन आज आप खरीद रहे है, उसकी दस वर्ष बाद क्या कीमत रह जानी है। जो प्लॉस्टीक के आधुनिक फर्नीचर या अन्य घरेलू सामान खरीद रहे है, उनकी पाँच साल बाद क्या कीमत रह जानी है। क्या यही वास्तव में धन है? अतः धनतेरस के दिन ऐसा धन खरीदें जिसका एप्रिशियेशन ही हो अर्थात् अक्षय हो।

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