शुभ-लाभ

               


     वैदिक शास्त्रों के अनुसार शंकर भगवान के पुत्र गणेश जी का विवाह प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्रियाँ रिद्धी और सिद्धी नाम की कन्याओं से हुआ था। ऐसा माना जाता है कि सिद्धि से शुभ और रिद्धी से लाभ नामक दो पुत्र हुये। घर में शुभ-लाभ का चिन्ह् लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है। दिपावली के अवसर पर, अन्य किसी शुभ अवसर पर, नये मकान या नये प्रतिष्ठान के शुभारंभ पर यहाँ तक कि पशुशालाओं में भी शुभ-लाभ लिखने से घर में सुख समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। शुभ-लाभ के साथ-साथ ऊँ और स्वास्तिक भी सनातन धर्म के चिन्हों को अंकित करना सुख सम्पति का भण्डार भरपूर रहता है।

            हिन्दू धर्म में भगवान गणेशजी को सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता कहते है। भगवान गणेशजी समृद्धि, बुद्धि, सफलता देने वाले और जीवन की सभी बाधाओं को दूर करने वाले देवता माने जाते है। भगवान गणेशजी स्वंय रिद्धि-सिद्धी के दाता और शुभ-लाभ के प्रदाता है। गणेशजी के प्रसन्न होने पर भक्तों की बाधा, संकट, रोगदोष और दरिद्रता दूर करते है। ज्योतिष के अनुसार चौघड़िया या मुर्हूत देखते समय अमृत के अतिरिक्त लाभ और शुभ के चौघड़िये को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। रिद्धि शब्द का भावार्थ बुद्धि है जिसे हिन्दी में ‘‘शुभ‘‘ कहते है और सिद्धी शब्द का अर्थ आध्यात्मिक शक्ति पूर्णता यानि ‘‘लाभ‘‘ होता है।

        स्वास्तिक भी गणेशजी का ही स्वरूप है। शुभ और मांगलिक कार्यो में शुभ-लाभ के साथ-साथ स्वास्तिक की भी स्थापना अनिवार्य है। घर के मुख्य दरवाजे पर स्वास्तिक का चिन्ह् मुख्य द्वार के ऊपर मध्य में शुभ बाएँ तरफ और लाभ दाहिनी तरफ लिखते है। घर के बाहर शुभ-लाभ लिखने का तात्पर्य यह है कि घर में सुख समृद्धि सदैव बनी रहे और घर की आय व धन हमेशा बढ़ता रहे तथा लाभ प्राप्त होता रहे। इसके साथ ही महत्त्वपूर्ण यह है कि घर में किसी प्रकार का अनैतिक धन नहीं आये और सदैव सकारात्त्मकता बनी रहे।

        स्वास्तिक के साथ-साथ शुभ-लाभ लिखने से घर, दुकान या फैक्ट्री के वास्तुदोष दूर हो जाते है। यदि आपके घर में या व्यावसायिक स्थल पर किसी प्रकार का कोई वास्तुदोष है तो उसकी नकारात्त्मक ऊर्जा को समाप्त करने के लिये पूर्व, उत्तर-पूर्व या उत्तर दिशा में शुभ-लाभ सहित स्वास्तिक का चिन्ह् बनाना चाहिये। इसकी जगह आप अष्ट धातु या तांबे का स्वास्तिक भी लगा सकते है।

        कर्मकाण्ड के जानकार सिंदूर को चमेली के तेल में घोलकर इससे शुभ-लाभ व स्वास्तिक चिन्ह् अंकित करते है। कई जगह पर इसको गाय के घी में घोलकर भी बनाते है। ऐसा माना जाता है कि जिस घर के दरवाजे पर शुभ-लाभ और स्वास्तिक चिन्ह्ति किया जाता है, उस परिवार में सभी सदस्यों के बीच प्रेमभाव बना रहता है, सुख समृद्धि की कभी कमी नहीं होती, किसी प्रकार की आर्थिक या मानसिक परेशानी नहीं होती, सदैव सकारात्त्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है, किसी कि नजर व टोकार भी नहीं लगती है। परिवार के मुखिया का मनोबल ऊँचा रहता है व आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है। अतः हर शुभ अवसर पर अपने निवास स्थान एवं व्यावसायिक स्थान पर स्वास्तिक सहित शुभ-लाभ को विधिवत लिखना लाभदायक होता है।

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