हवन का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व

 


मैं बचपन में ढाणी में रहता था। हम आठ भाई-बहन थे। मेरी माताजी चूल्हे पर बाजरी के सोगरे बनाती थी। घर में तीन-चार गायें भी थी। एक दिन छोड़कर एक दिन बिलोना किया जाता था। गाय का घी घर में हर समय उपलब्ध रहता था। बाजरी हाथ की चक्की से रोज सवेरे पीस कर आटा बनाया जाता था। सोगरा बनाते समय पहला सोगरा गाय के लिए रखा जाता था। दूसरा सोगरा कुत्तों के लिए रखते थे। तीसरा सोगरे का टुकड़ा घी और गुड़ मिलाकर चूल्हे की अग्नि में भोग लगाया जाता था। प्रतिदिन चूल्हे में भोग लगाना हवन अथवा यज्ञ का ही सुख स्वरूप होता था।

               उसके अतिरिक्त सवेरे जब मैं दीपक और अगरबत्ती भगवान को करता था। उस समय मिट्ठी के धूपये में चूल्हे से कण्ड़ो के खीरे रख कर उस पर गाय के घी से जोत करते थे। उसमें बत्तीसा धूप और गुगल धूप भी आहुति के रूप में ड़ालते थे। प्रतिदिन पूजा के समय इस प्रकार का सुक्ष्म हवन किया जाता था।

         सनातन परम्परा में हवन अथवा यज्ञ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। सभी मांगलिक कार्यो में हवन अवश्य किया जाता है। गृह-प्रवेश, विवाह-उत्सव, तथा विभिन्न मांगलिक कार्यो में शुद्धिकरण के लिए हवन आयोजित किया जाता है। हवन के द्वारा देवताओं को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न सामाग्री की आहुतियाँ दी जाती है। आम या खेजडी की लकडी, अरण्य उपले समीधा के रूप में काम में लिये जाते है। हवन में अग्नि देव की स्थापना करने के बाद जो हवन सामाग्री आहुति के लिये प्रयोग में लायी जाती है। उसमें काले तिल, जौ, खाण्ड़, गाय का घी के अतिरिक्त विभिन्न सुगन्धित पद्धार्थ जैसे गुगल, अगर, तगर, बत्तीसा धूप, काम में लिया जाता है। अलग-अलग उद्देश्य की पूर्ति के लिए जो  अलग-अलग यज्ञ किये जाते है। उनमें विभिन्न सामाग्रीया जैसे मलूपा,खीर, सप्तधान्य, गुड़ आदि विभिन्न पद्धार्थो की आहुतियाँ दी जाती है। साथ ही विभिन्न प्रकार के मंत्रोउच्चारण भी किया जाता है।

                हवन का न केवल आध्यात्मिक महत्व है। बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। विज्ञान के अनुसार जो वस्तु हम यज्ञ में आहुति के रूप में प्रदान करते है। वह हजारों गुना वायु के रूप में बनकर पुनः वातावरण में प्रवाहित होती रहती है। उदाहरण के लिए एक सेर घी की आहूति यज्ञ में अर्पित करने से उससे जो गैस निर्मित होती है। वह हजारों गुना लाभ देती है। शोधकत्ताओं का मत है कि हवन में घी और गुड़ के जलने ऑक्सीजन का निर्माण होता है। हवन का धुंआ वायुमण्ड़ल को शुद्ध बनाता है। जिससे करीब 94 प्रतिशत हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते है।

                फांस के टेरे नामक वैज्ञानिक ने हवन पर गहन शोध करके बताया कि जो सुविधा आहुति के रूप में जलती है। उससे फार्मिक एनहाइडाइड नामक गैस उत्पन्न होती है। जिससे वातावरण से खतरनाक जीवाणु नष्ट हो जाते है। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने हवन पर रिसर्च करके बताया कि हवन से निकलने वाले धूंए से वातावरण में मौजूद कई प्रकार के विषाणु नष्ट होते है। तथा जिस जगह हवन किया जाता है। वहाँ के वातावरण में 24 घंटे तक शु़द्धता बनी रहती है।

         मनुष्य के शरीर से गंदगी हमेशा निकलकर वायुमंडल को दूषित बनाती रहती है। यज्ञ का धुंआ उसे शुद्ध करता है। यज्ञ का धुंआ आकाश में जाकर बादलों में मिलता है। इससे बादलों में प्राण शक्ति का संचार होता है। और नियमित वर्षा होती है। यज्ञ का धुंआ वायुमंडल में फैलने से शंख रोग, कीटाणु नष्ट होते है। यह धुंआ मनुष्यों के साथ-साथ पशु-पक्षियों, जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों के स्वास्थ्य की भी रक्षा होती है। अलग-अलग रोगों के  उपचार के लिए अलग-अलग प्रकार के यज्ञ किये जाते है। जिसे यज्ञ चिकित्सा कहते है।

        यज्ञ में जिन मंत्रो का उच्चारण किया जाता है। उनकी शक्ति अंसख्य गुणी अधिक होकर फैलती है। यज्ञ की ऊष्मा मनुष्य के अन्तकरणः पर देवत्य की छाप डालती है। प्राचीनकाल में जहाँ-जहाँ बडे़ यज्ञ हुयें वही पर तीर्थ बन गये। यज्ञ करनें से आत्मा पर चढे़ हुये मैल शुद्ध हो जाते है। यज्ञ में उपस्थित ऊष्णता और प्रकाश हमारे जीवन में स्फूर्ति, आशा और विवेकशीलता को बढ़ाते है। यज्ञ की ज्योति सदा ऊपर की ओर उठती है। किसी भी परिस्थिति में उसका मुहँ नीचे नहीं हो पाता हमें भी विषम परिस्थितियाँ आने पर भी अधोगामी नहीं होना चाहिए। हवन से थोड़ी-सी सामाग्री भी सुक्ष्म वायुरूप बनकर समस्त जड़ चेतन प्राणियों को बिना किसी भेदभाव के लाभ पहुंचाती है।

                अलग-अलग उद्देश्यों और परिणाम के लिए अलग-अलग यज्ञ सम्पन्न करायें जाते है। जिनका वैज्ञानिक महत्व भी होता है। जैसे-वर्षा का अभाव दूर करने के लिए व विश्व शान्ति के लिए विष्णु यज्ञ, भक्ति-भावना बढ़ाने के लिए रूद्र यज्ञ, बीमारियों को रोकने के लिए मृत्युंजय यज्ञ और युद्ध के समय जनता में जोश भरने के लिए चण्ड़ी यज्ञ कराये जाते है। यज्ञ का दूसरा नाम अग्नि पूजा है। यज्ञ करने से आस-पास का वातावरण सकारात्मक बनता है। स्वास्थ्य एवं समृद्धि के लिए भी यज्ञ किया जाता है। सुक्ष्म है अग्नि पूजा, उससे बड़ा है हवन और उससे बड़ा यज्ञ कहलाता है।

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