गुजरात में प्रथम प्राकृतिक कृषि विश्वविद्यालय

               


 खेती में रासायनिक खाद एवं रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के द्वारा उत्पादित जो भोजन हम करते है उसके परिणामतः विभिन्न प्रकार की शारीरिक और मानसिक बीमारियाँ मनुष्यों में व पालतू पशुओं में तीव्रगति से बढ़ रही है। अधिक उत्पादन के लोभ में सरकार और किसान दोनों ने मिलकर जैविक खेती की, जो हमारी परंपरागत खेती थी, उसको बर्बाद कर दिया है।

        पिछले 20-25 वर्षो से बिना केमिकल के खेती करने की लोगों में जागृति आई व मांग बढ़ रही है जिसे ऑर्गेनिक फार्मिंग, जैविक खेती, प्राकृतिक खेती आदि कई नामों से पुकारा जाता है। जैविक खेती को सीखने के लिये पर्याप्त साहित्य उपलब्ध नहीं था। आधा अधूरा ज्ञान लोगों को सफल नहीं होने दे रहा था। विश्वस्तर पर और हमारे देश भारत में भी जैविक खेती का रूझान बढ़ने से वैज्ञानिकों की सोच में परिवर्तन आया। शोध संस्थानों के द्वारा ऑर्गेनिक फार्मिंग के विभिन्न पहलुओं पर निरंतर शोध कार्य किया जा रहा है और उसे किसानों तक पहुँचाया जा रहा है। लेकिन अभी भी अप्राकृ्तिक खेती को बढ़ावा देने के लिये जो निवेश किया जा रहा है उसकी अपेक्षा प्राकृतिक खेती के प्रचार-प्रसार के लिये किया जाने वाला खर्च ऊँट के मुँह में जीरा है।

            कई शोध संस्थान एवं हर राज्य में जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिये कई संघठन तीव्रगति से कार्य तो कर रहे है लेकिन इस ज्ञान को खेत तक पहुँचने में लंबा समय लग रहा है। जिसके परिणाम अत्यंत धीमी गति से आ रहे है।

        गुजरात राज्य के कृषि मंत्री राघव जी पटेल ने विश्व में सबसे पहली प्राकृतिक खेती की विश्व विद्यालय की स्थापना करने की घोषणा की है तथा गुजरात के ही डांग जिले को पूर्ण जैविक जिला घोषित किया है। उन्हांने बताया कि विगत चार वर्ष में आठ लाख से अधिक किसानों ने जैविक खेती करके विभिन्न फसलों का उत्पादन बढ़ाया है और उनके प्रोड्क्ट को उपभोक्ताओं तक विक्रय किया गया है। गुजरात में पैदा होने वाली बहुत सी फसलो का बड़ी मात्रा में निर्यात किया जा रहा है। जैविक खेती के विकास के साथ-साथ फूड प्रोसेसिंग इकाईयों का विस्तार हो रहा है। जिससे किसानां की आय में बढ़ोतरी हो रही है और उनका जीवन स्तर ऊपर उठ रहा है।

        भारतवर्ष में केन्द्र सरकार की संस्था एपीडा के मार्गदर्शन से हर राज्य में ऑर्गेनिक सर्टिफाईंग ऐजेन्सीज काम कर रही है। जो अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार किसानों को जैविक खेती का प्रमाण-पत्र देती है। इसके साथ-साथ विभिन्न प्राईवेट संस्थाएँ भी पूरे देश में ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन का काम कर रही है। प्राइवेट बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन का शुल्क अभी भी काफी महँगा है। जिसे वहन करना अकेले किसान के लिये मुश्किल काम है। इसके लिये गु्रप सर्टिफिकेशन की योजनाएँ भी बनी हुई है। कुछ किसानों का समूह बनाकर आपसी तालमेल से ऑर्गेनिक खेती करने के काम को आगे बढ़ाने के लिये इस प्रकार का प्रमाणीकरण कराना चाहिये। कुछ गाँव स्तर, ब्लॉक स्तर, तहसील स्तर और जिला स्तर के ऑर्गेनिक संगठन बनाकर ऑर्गेनिक खेती को तेजी से आगे बढ़ाया जा सकता है।

        समूह में ऑर्गेनिक फार्मिंग करने के लिये तथा उसको लाभप्रद बनाने के लिये भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा कई प्रकार की लाभदायक योजनायें बनाई गई है। जिसमें जैविक खेती के साथ-साथ जैविक फूड प्रोसेसिंग इण्डस्ट्रीज लगाकर कृषि उत्पादनों का मूल्य संवर्धन करके व कंज्यूमर प्रोड्क्ट बनाकर रिटेल और हॉलसेल मार्केटिंग किसानों का समूह कर सकता है। हमारे देश में कई जगह कम्पनियाँ जैविक किसानों को अपने साथ जोड़कर ऐसे काम कर रही है। जिनकी संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। जैविक खेती ही हमारे भविष्य की खेती है। किसान अधिक जागरूक होगा तो सरकार भी इस क्षेत्र को बढ़ाने के लिये अधिक निवेश करेगी।

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