गर्भवती माताओं की गलती का बच्चे भुगत रहे है परिणाम

               


 स्पेन से प्रकाशित होने वाले एनवायर्नमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स जर्नल में एक चौंकाने वाली रिसर्च छपी है। 2003 से 2008 तक 6 वर्ष तक 1900 से अधिक महिलाओं और बच्चों के नमूने इकक्ट्ठे किये गये तथा बच्चों का 9 साल की उम्र तक बीएमआई नापा गया। उसमें यह पाया गया कि गर्भवती माताओं ने गर्भावस्था के समय प्लास्टिक के बर्तनों में खाना खाया या नानस्टिक बर्तनों का प्रयोग किया इन परिस्थितियों में माँ से अजन्में बच्चों में ऐसे केमिकल पाये गये जिससे बच्चों का जन्म से ही वजन बढ़ने लग गया और वे मोटापे का शिकार हो गये।

        खेतों में इस्तेमाल होने वाले फंगीसाइड और पेस्टीसाइड में भी इसी प्रकार के खतरनाक केमिकल पाये जाते है जो गर्भवती माताओं और नवजात शिशु के शरीर में पाये गये। गभर्वती माता द्वारा प्रयोग में लाये गये सिंथेटिक सौंदर्य प्रसाधनों का भी प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है। जन्म से पूर्व ही शिशु में कई प्रकार की बीमारियों का खतरा पैदा हो जाता है।

        भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में सोलह संस्कारों का वर्णन विस्तार से दिया हुआ है। गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार, सीमन्तोन्नयन संस्कार एवं जातकर्म संस्कार। ये चार संस्कार गर्भाधान से लेकर बच्चे के जन्म तक पालन किये जाते है। तीसरा संस्कार जिसको सीमन्तोन्नयन संस्कार कहते है, यह संस्कार गर्भधारण के छठे या आठवें महीने में किया जाता है। इस समय गर्भवती माताओं को खानपान, रहन-सहन एवं बोलचाल का विशेष ध्यान रखा जाता है। मेडिकल साइंस के अनुसार भी इन महीनों में स्त्री को विशेष सावधानी रखने की सलाह दी जाती है। यह सलाह भू्रण विकास में सहायक होती है। स्वास्थ्यप्रद भोजन कराना, खुले वातावरण में रहना व हल्का काम करते रहना, सुविधायुक्त ढीले सूती कपड़े पहनना, भरपूर नींद लेना, हर समय प्रसन्नचित रहना, धीरे बोलना आदि विभिन्न बातें स्त्री को सिखाई जाती है। विशेषकर भोजन की शुद्धता व गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखा जाता है। गर्भावस्था में कांसे के बर्तन में भोजन कराना श्रेष्ठ माना गया है। तांबे के घडे़ में पीने का पानी रखा जाता है तथा तांबे के लोटे से ही जल पिलाया जाता है। जल की स्वच्छता का भी विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है। शिशु के जन्म के बाद उसे चाँदी या सोने के चम्मच से ही शहद चटाई जाती है। उसके बाद ही स्तनपान कराया जाता है। इससे बालक की आयु और बुद्धि का विकास होता है। भोजन में हर प्रकार की स्वच्छता का पूर्णरूप से ध्यान रखा जाता है। किसी भी प्रकार की गलती का दुष्प्रभाव स्त्री और गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य पर होता है।

        एक घटना यूरोप में घटित हुई। वर्णन यह है कि एक चालीस वर्ष के व्यक्ति के पूरे शरीर में लाल-लाल चिक्कते उभरने शुरू हुये जो दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे थे। कई प्रकार के इलाज करने पर भी ठीक नहीं हो रहे थे। डॉक्टरों ने इसका कारण जानने के लिये विभिन्न जाँचें की। बहुत दिनों बाद कई प्रकार की शारीरिक और मानसिक जाँचें करने के बाद यह परिणाम निकला की यह व्यक्ति जब अपनी माता के गर्भ में था उस समय इसकी माँ धूम्रपान करती थी। उसी धूम्रपान का असर नाजुक गर्भस्थ शिशु पर हुआ जो अब चालीस वर्षों बाद बीमारी के रूप में उभर कर सामने आया है। गर्भवती माताओं द्वारा की गई हर गलती का दुष्परिणाम शिशु को ही भुगतना पड़ता है। इस प्रकार की कई बीमारियाँ होती है जिनका मूल कारण अभी भी वैज्ञानिक ढूंढ रहे है।

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