पूरा परिवार साथ बैठकर डिनर करें

                 


    कोलम्बिया यूर्निवसिटी में नेशनल सेंटर ऑन एडिक्शन की 2012 की रिपोर्ट में यह पाया गया है कि जो बच्चे परिवार के साथ डिनर करते है उनमें डिप्रेशन का जोखिम कम होता है। भोजन और संस्कृति की सीनियर लेक्चरार एनीबू्रबेकर के अनुसार साथ में भोजन करना एक प्रकार से सामाजिक गोंद का काम करता है। डाइनिंग टेबल पर या साथ में भोजन करना एक दूसरे को सुनने, जुड़ने और अपने सुख-दुःख बांटने का अच्छा स्थान व समय होता है। बडे़-बड़े व्यापारिक सौदे आजकल डाइनिंग टेबल पर फाइनल होते है।

            आजकल की भागदौड़ की जिंदगी में अपने कामों की वजह से एक घर में रहते हुये भी परिवार के सदस्यों को आपस में मिलजुल कर साथ बैठने का समय ही नहीं मिलता है। तो साथ बैठकर भोजन करना तो बहुत दूर की बात है। साथ बैठकर भोजन करना आजकल पारिवारिक सदस्यों के लिये अत्यंत दुर्लभ हो गया है।

        गाँवों में अधिकतर संयुक्त परिवार होते है। ब्यालू (रात्रि भोजन) परिवार के सभी सदस्य मिलजुल कर ही करते है। महिलायें भोजन की सब सामग्री बनाकर एक जगह एकत्रित कर लेती थी। परिवार के सभी सदस्य दरी बिछाकर व्यवस्थित रूप से भोजन करने के लिये हाथ-पैर धोकर बैठ जाते थे। घर का मुखिया एक नजर में ही पता लगा लेता था कि कौनसा सदस्य उपस्थित नहीं है? यदि कोई सदस्य भोजन के समय उपस्थित नहीं होता था तो उसका पता लगाया जाता था। यदि अनुपस्थित सदस्य कहीं बाहर गया हुआ है तो ठीक है अपितु घर में या घर के आसपास कहीं है तो उसको बुलाकर ही भोजन का कार्यक्रम शुरू होता था।

        कई परिवारों में एक ही थाली में कई सदस्य साथ बैठकर भोजन करते थे। पानी पीने के लिये गिलास की अपेक्षा लोटे का प्रयोग होता था। इससे जल का अपव्यय नहीं होता था। साथ ही अधिक बर्तन झूठे भी नहीं होते थे। अतः बर्तन मांजने में श्रम, समय और पानी कम से कम खर्च होता था। पानी और ऊर्जा की बचत परिवार में हर कदम पर की जाती थी। बचपन से ही सभी सदस्य मितव्यता का गुरूमंत्र सीख जाते थे।

        कोई सदस्य यदि बीमार होता था तो उसके लिये उपयुक्त हल्का भोजन जैसेः-दाल चावल खिचड़ी, दलिया आदि बनाकर उसे उसके स्थान पर ही भोजन कराया जाता था। संयुक्त परिवार में बीमार की सेवा सभी प्रकार से अच्छे ढंग से होती थी। छोटे बच्चों को बड़े लोग अपने साथ बैठाकर उनको भोजन कराते थे तथा भोजन करने के मैनर्स बच्चों को सिखाते रहते थे। इससे बच्चे भरपूर भोजन कर पाते थे व अच्छे संस्कार भी सीख जाते थे।

        आजकल अधिकतर एकल परिवार ही हो गये है। पति-पत्नी दोनों ही कामकाजी हो गये है। इन परिस्थितियों में भोजन किसी के लिये भी मुख्य रूप से महत्त्वपूर्ण नहीं रह गया है। परिवार के बच्चों के लिये भी रेडीमेड भोजन मंगाकर रख दिया जाता है। पति-पत्नी को जब भी ऑफिस में लंच होता है, वहाँ स्थित कैंटीन से भोजन मंगाकर कर लेते है। कई बार इच्छा होने पर ऑनलाइन भोजन का आर्डर देकर मनचाहा भोजन मंगवा लेते है। अलग-अलग भोजन करने से पारिवारिक सामंजस्य समाप्त सा हो गया है। सभी सदस्यों में अकेलापन व्याप्त हो गया है और प्रत्येक का मस्तिष्क इतना तनावग्रस्त हो गया है कि कई बार वह अत्यंत दुविधा का अनुभव करता है। साथ बैठने एवं दिनभर की चर्चा के द्वारा आपसी विचारों का आदान-प्रदान सब के मन को हल्का कर देता है। सब सदस्य प्रसन्नचित व प्रफुलित अनुभव करते है। रात को अच्छी गहरी नींद आती है और प्रातः जल्दी उठने में आलस्य नहीं आता है। स्वस्थ एवं सुखी रहने का यह एक मूलमंत्र है।

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