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Showing posts from October, 2023

उत्तम खेती (पार्ट-2)

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  पिछले लेख में ऊँचे-ऊँचे पदों से और बहुत अच्छे वेतन को छोड़कर खेती को अपना करियर बनाया। कुछ लोगों के पास पुश्तैनी जमीन होती है। कुछ लोग जमीन को लीज पर लेकर भी खेती कर रहे है। इस लेख में ऐसे ही कुछ एन्टरप्रेन्यौर खेती में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे है। 1. उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के पूरणपूर ब्लॉक के रहने वाले पुष्पजीत सिंह ( 34 वर्ष) दिल्ली में मैकेनिकल इंजीनियर थे। इन्हें 7 लाख रूपये वार्षिक पैकेज मिल रहा था। इस नौकरी को छोड़कर अपनी पुश्तैनी जमीन जो 16 एकड़ थी में बागवानी की खेती अच्छी तकनीक से शुरू की। पीलीभीत जिले का तराई इलाका परंपरागत खेती जैसेः- धान , गेंहूँ और गन्ना के सिवाय लोग दूसरी कोई खेती नहीं करते है। पुष्पजीत ने अपनी 12 एकड़ जमीन में केले का प्लांटेशन किया और 4 एकड़ में नींबू एवं कटहल के पेड़ लगाये। पुष्पजीत सिंह ने बताया कि तराई का इलाका इन उद्यानिकी की फसलों के लिये बहुत उपयुक्त है। पुष्पजीत का 16 एकड़ का पूरा बगीचा ऑर्गेनिक है। वे जैविक तरीके से ही पूरी बागवानी करते है। बड़े पेड़ों के बीच में मल्टीक्रॉप के रूप में सब्जियों की खेती करते है। इसमें अधिकतर ब्रोकली और

उत्तम खेती

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                      गाँवों के लोग शहर की और तेजी से पलायन कर रहे है। पलायन की यही गति रही तो कृषि के क्षेत्र में बड़ा संकट पैदा हो जायेगा। कई जगह देखा जाता है कि अत्यधिक पढे़-लिखे लोग पुनः खेती को अपना रहे है। इंजीनियरिंग , आईआईटी , एमबीए किये हुये और मल्टीनेशनल कम्पनियों में ऊँचे पदों की नौकरियाँ छोड़कर भी खेती की और अग्रसर हो रहे है। साथ ही समाज में एक नई मिशाल बन रहे है। उनका खेती करने का तरीका आम किसान से भिन्न होता है। ऐसे लेाग बहुत साहसी प्रकृति के होते है। जोखिम लेना इनके स्वभाव में है। ऐसे लोगों की सफलता की कहानियाँ कई बार समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती है। जिन्हें पढ़कर बहुत से लोग प्रभावित भी हो रहे है। इस लेख में ऐसे ही पढे़-लिखे लोगों की खेती में सफलता की कहानियाँ लिख रहा हूँ। 1. राजस्थान के झालावाड़ जिले की भवानीमण्डी तहसील के गुआरी खेड़ा गाँव में रहने वाले कमल पाटीदार बीटेक करने के बाद सॉफ्टवेयर कम्पनी में जॉब कर रहे थे। इस जॉब से उनको पैसा और सुविधाएँ दोनों मिल रही थी। लेकिन कमल को यह नौकरी नहीं भायी उन्होनें फैसला किया कि गाँव में रहकर माता-पिता व परिवार के साथ रहक

खतरनाक है बचपन का मोटापा

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                      उच्च आय वर्ग के साथ-साथ मध्यम आय वर्ग के बच्चों में भी मोटापा बढ़ रहा है , वह भयंकर समस्या की जड़ बन रहा है। आजकल बच्चों में मोटापे की वृद्धि वयस्कों की तुलना में बहुत अधिक हो रही है। आंकड़ों के अनुसार विश्व स्तर पर लगभग 2 अरब बच्चे और वयस्क मोटापे की समस्या से पीड़ित है। मोटापे के मामले में चीन के बाद दुनिया में भारत का दूसरा नम्बर है। ओवरवेट और मोटापे के कारण बच्चे कम उम्र में ही हृदय रोग , डायबिटीज , अस्थमा आदि बीमारियों की चपेट में आ जाते है।           बदलती लाईफ स्टाइल के कारण बड़ों के साथ-साथ बच्चे भी मोटापे का शिकार हो रहे है। माता-पिता को ऐसा लगता है कि मोटा बच्चा हेल्दी होने की निशानी है। लेकिन मोटापे का शिकार होना किसी बीमारी का संकेत है। डॉक्टरों का कहना है कि बचपन का मोटापा आगे चलकर बड़ी-बड़ी बीमारी को जन्म देता है। बच्चों के दैनिक जीवन में शारीरिक श्रम कम हो गया है। मोबाईल और कम्प्यूटर बच्चों को उपलब्ध हो गये है। पढ़ाई , मनोरंजन और खेल सभी कुछ मोबाईल पर ही हो रहे है। सारा समय स्क्रीन पर ही व्यतीत होता है। फिजीकल एक्टिविटी एकदम कम हो गई है। घर के बाहर खेलना

16 संस्कार : सनातन का प्राण

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  सनातन धर्म वैज्ञानिक आधार पर बना हुआ शाश्वत धर्म है। इसकी स्थापना प्राचीन मुनियों और देवताओं द्वारा की गई थी। सनातन धर्म की सारी बातें वैज्ञानिक आधार पर होने के कारण इतने युग बीत जाने के बाद भी हिन्दु धर्म का प्रभुत्व समाप्त नहीं हुआ है। सनातन धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त और उसके बाद के भी संस्कारों का विशेष महत्त्व है। इनका उद्देश्य शरीर , मन और मस्तिष्क को शुद्ध और बलवान बनाना है , जिससे मनुष्य समाज में अपनी भूमिका आदर्श रूप में निभा सके। संस्कार हमें समाज का पूर्ण सदस्य बनाते है। ऋषि मुनियों ने सोलह संस्कारों की स्थापना की थी। लेकिन आधुनिक जीवन में कुछ संस्कारों को छोड़कर बाकी को भूल ही गये। सोलह संस्कार निम्न हैः- 1.            गर्भाधान संस्कारः- विवाहित स्त्री-पुरूष का मिलन अपनी वंश वृद्धि के लिए होता है। यह संस्कार सिखाता है कि स्त्री और पुरूष को वैचारिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ होकर ही गर्भधारण की प्रक्रिया करनी चाहिये , तभी उसे स्वस्थ और बुद्धिमान शिशु की प्राप्ति होगी। 2.            पुंसवन संस्कारः- गर्भधारण करने के बाद गर्भ की रक्षा के लिये स्त्री और पुरूष को मिल

दीर्घायु का रहस्य

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                      विश्व में कुछ जगह ऐसी है जहाँ के लोग सबसे अधिक उम्र तक जीते है। उस क्षेत्र को वैज्ञानिकों ने ‘‘ब्लूजोन‘‘ का इलाका माना है। वैज्ञानिकों की शोध के अनुसार ब्लूजोन के इलाके में रहने वाले लोगों की आयु 100 वर्ष से अधिक भी पाई गई है। अमेरिका के कैलीफोर्निया राज्य का लोमालिंडा क्षेत्र , जापान का ओकिनावा क्षेत्र , यूनान का विकारिया क्षेत्र , इटली का सार्डिनीया क्षेत्र और मध्य अमेरिकी देश कोस्टा रिका का निकाया क्षेत्र ऐसे है जिन्हें वैज्ञानिक लोग ब्लूजोन कहते है।           कोरोना वायरस के कारण बहुत से लोग समय से पूर्व ही चल बसे। इतना ही नहीं बहुत सी ऐसी बीमारियाँ भी है जो समय से पूर्व ही लोगों की जिन्दगी छीन लेती है। भारत में अपने से छोटों को आर्शीवाद देते समय 100 वर्ष जीने का आर्शीवाद देता है ‘‘जीवेद् शरदः शतम्‘‘। आखिर ब्लूजोन के लोग जिन्दगी को किस प्रकार जीते है कि वे 100 साल से ऊपर तक जी लेते है।           वैज्ञानिकों का मत है कि इसका मुख्य कारण लोगों का खानपान है। ब्लूजोन इलाके में रहने वाले लोग कम खाते है। वहाँ के लोग 80 प्रतिशत पेट भरने के बाद ही खाना बंद कर द

आभूषणों का वैज्ञानिक महत्त्व

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                      भारतीय संस्कृति में महिलाओं और पुरूषों के लिये अलग-अलग आभूषण धारण करने की प्रथा रही है। सोना , चाँदी व हीरें जवाहरात के आभूषण कलात्मक तरीकों से बनाये जाते है। आदिवासी व वनवासी जातियाँ भी विभिन्न प्रकार के आभूषण बनाकर धारण करते है। आदिवासी लोग समुद्री जीव , वन्यजीव व वनसम्पदा से कई आकर्षक वस्तुओं को इकट्ठा करके आभूषण बनाकर धारण करते है।           वैसे तो स्त्री-पुरूष दोनों आभूषण पहनते है लेकिन ये आभूषण स्त्री की सुन्दरता में चार चाँद लगा देते है। शरीर के सभी अंगों में आभूषण पहनने के वैज्ञानिक कारण है। भारत का विज्ञान स्वास्थ्य और प्रसन्नता की धुरी के ईद गिर्द ही घूमता है। नाक , कान , गला , हाथ , सिर , पैर , कमर आदि में पहने जाने वाले सभी गहनों का स्वास्थ्य के साथ गहरा संबंध है।           स्त्री और पुरूष दोनों एक दूसरे के पूरक तो है लेकिन मन व तन दोनों में अंतर होता है। पुरूषों की तुलना में स्त्री अधिक संवेदनशील होती है। बाहरी स्वरूप के अनुसार भी उन दोनों की प्रकृति अलग-अलग होती है। उनमें हार्मोन्स का उतार-चढ़ाव भी अलग-अलग प्रभाव डालता है। इसी उतार-चढ़ाव को ध्यान

बच्चों को परोस रहें है जहरीले रासायनिक रंग

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                   अमेरिका की प्रमुख संस्थान FDA ने 33 साल पहले जिस लाल रंग को लिपिस्टिक और कॉस्मेटिक्स में उपयोग के लिये रोक लगा दी थी वही लाल रंग आजकल बर्गर , पिज्जा , मैगी , बिस्किट , कुकीज , आईसक्रीम आदि फास्टफूड में बच्चों को खिलाया जा रहा है। यह जहरीला लाल रंग बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ अपने स्नेक्स और बच्चों के आहार सीरियल्स में धड़ल्ले से डाल रही है। जो कैंसर जैसी खतरनाक बिमारियों का कारण है।                     भारत में भी जिन-जिन कृत्रिम रंगों की भोज्य पदार्थो में मिलाने की छूट दी गई है वे भी कम खतरनाक नहीं है। फास्टफूड का और स्नेक्स का बाजार से मंगवाकर खाने का रिवाज भारत में भी तीव्र गति से बढ़ रहा है। बच्चों के साथ घर से बाहर निकलते ही उनकी डिमाण्ड इसी प्रकार की खाने-पीने की चीजों की रहती है। कुछ पेकैट तो वहीं खोलकर खा लेते है और कुछ अधिक खरीदकर घर पर खाने के लिये रख लेते है। इनमें रासायनिक रंगों के अतिरिक्त कई अन्य केमिकल्स भी इनका स्वाद बढ़ाने के लिये मिलाये जाते है जो आगे चलकर विभिन्न बिमारियों को जन्म देते है। अभिभावक भी बच्चों की जिद के आगे असहाय होते है।                    

पर्यावरण संरक्षण सबका कर्त्तव्य

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                      पर्यावरण संरक्षक सेवक टीम के राष्ट्रीय प्रभारी एवं पर्यावरणविद् खम्मूराम विश्नोई अपनी टीम के 80 सेवकों के साथ लगातार 5 दिन तक मुकाम समराथल मेला में जाकर अपनी सेवाएँ दी। विगत 25 वर्षो से पर्यावरण संरक्षण के लिये निःस्वार्थ भाव से पूरे भारत वर्ष में होने वाले आयोजनों में इनकी टीम पर्यावरण संरक्षण के कार्य करते आ रहे है। मेलों में सिंगलयूज प्लास्टिक को मुक्त करने के लिये सभी सदस्य वहाँ के दुकानदारों और दर्शकों में जागरूकता लाते है। इनकी टीम में पूरे भारतवर्ष के पर्यावरण सेवक भाग लेते है। मेला परिसर को साफ सुथरा रखने , कचरा नहीं फैलाने व सूखा गीला दोनों तरह के कचरा पात्र रखवाने का काम करते है। यदि कोई दुकानदार कचरा फैलाता है तो उसको मेला स्थल से हटा दिया जाता है। समय-समय पर पर्यावरण प्रदशर्नी लगाकर लोगों को पर्यावरण के प्रति सचेत किया जाता है।                 खम्मूराम विश्नोई व उनकी टीम का वंदनीय कार्य हमारे लिये गर्व की बात है। धरती माँ को साफ सुथरा रखने व पर्यावरण को बचाने में इनका योगदान अनुकरणीय है। भारत के सभी व्यक्ति किसी न किसी सामाजिक संस्था से अवश्य जुडे

वनौषधियों में माँ दुर्गा के रूप

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                      प्रसिद्ध आयुर्वेद के विशेषज्ञ डॉक्टर इन्दिवर भारद्वाज के ज्ञान कुंभ से कुछ बूंदे छलककर मुझ तक पहुँची , जो आपकी सेवा में प्रस्तुत है। डॉक्टर भारद्वाज के अनुसार वनौषधियों में विभिन्न देवीयों का रूप विद्यमान रहता है। नवरात्रि के पावन अवसर पर नौ दुर्गा माता के रूपों का विशेष पूजन अर्चन किया जाता है। आयुर्वेद में नवरात्र पूजन का भी बड़ा महत्त्व दिखाया गया हैं क्योंकि नवरात्रि का त्यौहार मनुष्य के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इस त्यौहार में विभिन्न प्रकार के व्रत रखना और अल्पमात्रा में अत्यंत पोषक खाद्य पदार्थो का ही सेवन करना स्वास्थ्य के लिये उपयुक्त है।           नौ वनौषधियों में नव दुर्गा माँ के रूपों का वर्णन किया गया है। इन नौ औषधीयों को दुर्गा के नौ रूपों के समान माना गया है। 1.  शैलपुत्री - हरड़ (हरितकी)ः- इस औषधि को देवी शैलपुत्री का ही एक रूप माना गया। यह औषधि आयुर्वेद की प्रधान औषधियों में से एक है इसे मृदु विरेचक एवं आमदोष नाशक कहा गया है। अमृता , हरितकी , हेमवती , चेतकी आदि इस महा औषध के पर्यायवाची शब्द है। 2. ब्रह्यचारिण