उत्तम खेती (पार्ट-2)

 


पिछले लेख में ऊँचे-ऊँचे पदों से और बहुत अच्छे वेतन को छोड़कर खेती को अपना करियर बनाया। कुछ लोगों के पास पुश्तैनी जमीन होती है। कुछ लोग जमीन को लीज पर लेकर भी खेती कर रहे है। इस लेख में ऐसे ही कुछ एन्टरप्रेन्यौर खेती में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे है।

1. उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के पूरणपूर ब्लॉक के रहने वाले पुष्पजीत सिंह (34 वर्ष) दिल्ली में मैकेनिकल इंजीनियर थे। इन्हें 7 लाख रूपये वार्षिक पैकेज मिल रहा था। इस नौकरी को छोड़कर अपनी पुश्तैनी जमीन जो 16 एकड़ थी में बागवानी की खेती अच्छी तकनीक से शुरू की। पीलीभीत जिले का तराई इलाका परंपरागत खेती जैसेः- धान, गेंहूँ और गन्ना के सिवाय लोग दूसरी कोई खेती नहीं करते है। पुष्पजीत ने अपनी 12 एकड़ जमीन में केले का प्लांटेशन किया और 4 एकड़ में नींबू एवं कटहल के पेड़ लगाये। पुष्पजीत सिंह ने बताया कि तराई का इलाका इन उद्यानिकी की फसलों के लिये बहुत उपयुक्त है।

पुष्पजीत का 16 एकड़ का पूरा बगीचा ऑर्गेनिक है। वे जैविक तरीके से ही पूरी बागवानी करते है। बड़े पेड़ों के बीच में मल्टीक्रॉप के रूप में सब्जियों की खेती करते है। इसमें अधिकतर ब्रोकली और रंगीन केबेज पैदा करते है। इनका सारा प्रोड्क्ट दिल्ली मण्डी में बिक्री के लिये जाता है। सारा उत्पादन ऑर्गेनिक होने के कारण मण्डी में अच्छे भावों से हाथोंहाथ बिक जाता है। जिससे इनको बहुत अच्छी कमाई होती है। इन्होनें नींबू की तीन प्रजातियाँ इण्डियन सीडलेस, कागजी और इटेलियन लगा रखी है। नींबू का पौधा एक बार लगाने के बाद 20 से 25 वर्ष तक पैदावार देता रहता है। आसपास के किसानों को भी इन्होनें नींबू का बगीचा लगाने के लिये प्रेरित किया। इस समय इनका नींबू वर्ष पर्यन्त मण्डी में जाता है जिसका अच्छा भाव मिल रहा है।

2. श्रीमती पूनम सीमा जिनके पति कुछ वर्ष पहले आर्मी से रिटायर हुये है। पूनम सीमा करनाल के समानाबाहु गाँव की रहने वाली है। इन्होनें ड्रेगन फ्रूट की खेती ऑर्गेनिक तरीकों से व माइक्रो इरीगेशन पद्धति द्वारा की। पानी, खाद की बचत माइक्रो इरीगेशन से होती है। इन्होनें ड्रेगन फ्रूट की खेती करने वाले अलग-अलग जगह जाकर फार्म को देखा। अब इनका बगीचा फलों का उत्पादन देना शुरू हो गया है। इनके फल करनाल, कुरूक्षेत्र, अम्बाला और चंडीगढ़ में अच्छे भाव में बिकते है। बगीचे की आमदनी से इनको जो आमदनी इनको हो रही है, उससे वे अतिसंतुष्ट है।

3. मध्यप्रदेश के शाहजँहापुर के छपरी गाँव के रहने वाले तथागत बरोड़ ने आईआईटी, मुम्बई से डिग्री करके कोई जॉब नहीं करने की बजाय खेती में अपना करियर बनाया। इनके मन में यह लग्न थी कि मेरे गाँव के लोगों को खेती की नई टेक्नोलॉजी के साथ-साथ ऑर्गेनिक खेती सीखाने का था। तथागत के पास 18 एकड़ जमीन है, जिसमें ये प्रयोग के रूप पर और किसानों को ट्रेनिंग देने के लिये 17 प्रकार की फसलें ऑर्गेनिक रूप से पैदा कर रहे है। जिसमें मोरिंगा, आंवला, हल्दी, अदरक, चना आदि मुख्य फसलें है।

इन्होनें सबसे पहले अपने खेत में 20 गायों की गौशाला शुरू की। इनका डेयरी प्रोड्क्ट सीधे ग्राहकों तक हाथोंहाथ बिकने लगा। गोबर का यूज करने के लिये इन्होनें गोबर गैस प्लांट लगाया। जिससे उनको आवश्यक ऊर्जा पर्याप्त रूप से मिल जाती है। इसी गैस से खाना पकाया जाता है और रोशनी भी की जाती है। गोबर गैस से निकलने वाली सिलरी से (सिलरी एक उत्तम खाद है) जो ऑर्गेनिक फार्मिंग में काम आती है। अपने गाँव के किसानों को गौ पालन, ऑर्गेनिक बागवानी और सब्जियों की खेती का प्रशिक्षण तो देते ही है साथ ही इसकी मार्केटिंग में भी उनकी मदद करते है। खेत में लगी फसलों से इनको अच्छी खासी कमाई हो रही है।

4. जोधपुर जिले के समीपवर्ती बुझावड़ गाँव के रहने वाले प्रेम मानधनियाँ ने जड़ी-बूटियों की खेती 15 वर्ष पहले शुरू की। कई प्रकार की फसलों की खेती करते-करते प्रेमकुमार इसमें पारंगत हो गये। आयुर्वेद का अध्ययन करना इनकी रूचि थी। इन्होनें आयुर्वेदिक औषधी निर्माण की बहुत सारी पुस्तकों का अध्ययन किया।

विभिन्न जड़ी-बूटियों से आयुर्वेदिक औषधियाँ बनाने के लिये इन्होनें कारखाना लगाया जिसमें कई प्रकार के चूर्ण, अवलेह, आसव, अरिष्ट आदि बनाकर बाजार में अपने ब्राण्ड से बेचना शुरू किया। ग्वारपाठा की खेती इनको बहुत पसंद थी। एलोवेरा से जूस, जेल, क्रीम, साबुन आदि कई सौंदर्य प्रसाधन बनाकर मार्केट में बेच रहे है। एक किसान होकर इस प्रकार से अपने कंज्यूमर पैक प्रोड्क्ट बनाकर बेचना बहुत ही साहस का काम है। इस काम में इनको अच्छा खासा लाभ मिल रहा है।

5. हरियाणा राज्य के गुड़गाँव के फरूख नगर तहसील के जमालपुर गाँव के रहने वाले विनोद कुमार (27 वर्ष) ने इंजीनियर की नौकरी छोड़कर मोती की खेती की शुरूआत की। इस खेती से उन्हें अच्छी खासी आमदनी हो रही है। इंटरनेट के द्वारा इनको मोती की खेती की जानकारी मिली। मोती की खेती के प्रशिक्षण के लिये सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवॉटर एक्वाकल्चर (सीफा), भुवनेश्वर से मई 2016 में एक सप्ताह का प्रशिक्षण लिया और 20 गुना 10 फुट एरिया में एक हजार सीप के साथ मोती की खेती शुरू की। इसके साथ ही मोती की खेती को सीखने के लिये आने वाले किसानों को भी नियमित प्रशिक्षण देते रहते है। मोती की खेती से इनको जो आमदनी हो रही है वह इंजीनियर की नौकरी से कई गुना ज्यादा है।

युवा हमारे देश के भविष्य है वे किसी भी क्षेत्र में जाकर अपनी शक्ति का अच्छा प्रदर्शन कर सकते है। अच्छी से अच्छी पढ़ाई करके और बढ़िया से बढ़िया जॉब को छोड़कर खेती को अपना करियर बनाने के लिये चुन रहे है जो भी कर रहे है। बहुत अच्छा कर रहे है। आगे भी ऐसे सफल उद्यमियों की सफल कहानियाँ लिखते रहेंगें।

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