वनौषधियों में माँ दुर्गा के रूप
प्रसिद्ध आयुर्वेद के विशेषज्ञ डॉक्टर इन्दिवर भारद्वाज के ज्ञान कुंभ से कुछ बूंदे छलककर मुझ तक पहुँची, जो आपकी सेवा में प्रस्तुत है। डॉक्टर भारद्वाज के अनुसार वनौषधियों में विभिन्न देवीयों का रूप विद्यमान रहता है। नवरात्रि के पावन अवसर पर नौ दुर्गा माता के रूपों का विशेष पूजन अर्चन किया जाता है। आयुर्वेद में नवरात्र पूजन का भी बड़ा महत्त्व दिखाया गया हैं क्योंकि नवरात्रि का त्यौहार मनुष्य के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इस त्यौहार में विभिन्न प्रकार के व्रत रखना और अल्पमात्रा में अत्यंत पोषक खाद्य पदार्थो का ही सेवन करना स्वास्थ्य के लिये उपयुक्त है।
नौ वनौषधियों में नव दुर्गा माँ के रूपों का वर्णन किया गया
है। इन नौ औषधीयों को दुर्गा के नौ रूपों के समान माना गया है।
1. शैलपुत्री - हरड़
(हरितकी)ः- इस औषधि को देवी शैलपुत्री का ही एक रूप माना गया। यह औषधि आयुर्वेद की
प्रधान औषधियों में से एक है इसे मृदु विरेचक एवं आमदोष नाशक कहा गया है। अमृता, हरितकी, हेमवती, चेतकी आदि इस महा औषध के
पर्यायवाची शब्द है।
2.ब्रह्यचारिणी - ब्राहृः-
ब्राहृ स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, मेद को कम कर शरीर को स्वस्थ रखती है। स्वर को मधुर बनाने
के कारण इसे सरस्वती भी कहा गया है।
3. चन्द्रघंटा - चंदुसूरः-
इसका पौधा धनिये के समान होता है। यह औषधि मोटापा (मेदोवृद्धि) दूर करने में
लाभप्रद है इसीलिये इसे चर्महती और असालिया भी कहते है।
4. कूष्मांडा - पेठा
(कुष्माण्ड)ः- यह औषध अम्लपित एवं रक्त विकार दूर करने में सहायक है। इस औषध के
नियमित सेवन कोष्ठ शुद्धि होती है, आधमान (गैस की शिकायत) दूर होता है। इससे पेठा मिठाई भी
बनती है। वजन कम करने के लिये इसके रस का सेवन करते है।
5.स्कंदमाता - अलसीः- देवी
स्कंदमाता औषधि के रूप में विद्यमान है। यह औषध त्रिदोषनाशक है। इसमें फाइबर की
मात्रा अधिक होने से मलावरोध को दूर करती है। इसका प्रयोग रक्तदृष्टि में भी किया
जाता है। भोजन के बाद मुखवास हेतु इसे नमक में भून कर प्रयोग में लिया जाता है।
6. कात्यायनी - अम्बालिका
(मोइया)ः- देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है यथा - अम्बा, अम्बिका तथा इसे मोइया भी
कहते है। यह औषधि गले के रोगो नाश करती है तथा दूषित कफ का शमन करती है।
7. कालरात्रि - नागदौनः-
देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। यह औषध मानस रोग में लाभप्रद है। यह
औषध अर्श एवं भगदंर आदि रोगों में प्रयोग में ली जाती है। कुछ भागों में स्थानीय
भाषा में इसे दुधी भी कहते है।
8. महागौरी - तुलसीः- माँ के
इस रूप को परम औषध भी कहा गया है, यह हृदय एवं त्रिदोष शामक है। एकादशी का छोड़कर प्रतिदिन
सुबह ग्रहण करनी चाहिये।
9. सिद्धिदात्री - शतावरीः-
माँ दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री है, जिसे नारायणी, शतावरी कहते है। यह बल एवं बुद्धि के लिये उपयोगी है।
प्रसूताओं के लिए यह रामबाण औषधि है। यह दुग्धवर्धक है।
इस प्रकार नवरात्रि पर्व में उपरोक्त नौ दुर्गा के रूपों
में वनौषधियों को दर्शाया गया है। इनकी पूजा करते समय इन वनौषधियों को भी पूजा में
सम्मिलित किया जाना चाहिये। इस परिपाटी से हमारे आने वाली पीढ़ी को वनौषधियों का
ज्ञान बना रहेगा जो आजकल जानकारी के अभाव में लुप्त होता जा रहा है।
अद्भुत है भारत का क्या विज्ञान
ReplyDeleteGood knowledge with navratra
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