खतरनाक है बचपन का मोटापा
उच्च आय वर्ग के साथ-साथ मध्यम आय वर्ग के बच्चों में भी मोटापा बढ़ रहा है, वह भयंकर समस्या की जड़ बन रहा है। आजकल बच्चों में मोटापे की वृद्धि वयस्कों की तुलना में बहुत अधिक हो रही है। आंकड़ों के अनुसार विश्व स्तर पर लगभग 2 अरब बच्चे और वयस्क मोटापे की समस्या से पीड़ित है। मोटापे के मामले में चीन के बाद दुनिया में भारत का दूसरा नम्बर है। ओवरवेट और मोटापे के कारण बच्चे कम उम्र में ही हृदय रोग, डायबिटीज, अस्थमा आदि बीमारियों की चपेट में आ जाते है।
बदलती लाईफ स्टाइल के
कारण बड़ों के साथ-साथ बच्चे भी मोटापे का शिकार हो रहे है। माता-पिता को ऐसा लगता
है कि मोटा बच्चा हेल्दी होने की निशानी है। लेकिन मोटापे का शिकार होना किसी
बीमारी का संकेत है। डॉक्टरों का कहना है कि बचपन का मोटापा आगे चलकर बड़ी-बड़ी
बीमारी को जन्म देता है। बच्चों के दैनिक जीवन में शारीरिक श्रम कम हो गया है।
मोबाईल और कम्प्यूटर बच्चों को उपलब्ध हो गये है। पढ़ाई, मनोरंजन और खेल सभी कुछ मोबाईल पर ही हो रहे है। सारा समय
स्क्रीन पर ही व्यतीत होता है। फिजीकल एक्टिविटी एकदम कम हो गई है। घर के बाहर
खेलना-कूदना लगभग बंद हो गया है। अतः यह बीमारी दिनोंदिन बढ़ रही है। बच्चों में
अधिक से अधिक आउटडोर गेम्स, साईकलिंग और पैदल
चलने की एक्टिविटी में ज्यादा समय देना चाहिये इससे उनकी कैलोरी बर्न होगी,
हड्डियाँ भी मजबूत बनेगी और शरीर सुडोल रहेगा।
बच्चों को अधिक तेल और
मसालों वाले खाने ज्यादा पसंद हो रहे है। फास्टफूड में शक्कर, नमक और वसा की मात्रा अधिक होती है। चॉकलेट,
कोल्डडिं्रक और कॉफी का उपयोग बच्चे ज्यादा कर
रहे है। इनके प्रयोग से बच्चों में मोटापा अत्यधिक बढ़ रहा है। भोजन में हरी
सब्जियाँ, ताजे फल, साबुत अनाज, दालें और सदैव घर का स्वास्थ्यप्रद ताजा खाना ही बच्चों को
दें। अधिकतर माताएँ सवेरे नाश्ते में और टिफिन में बच्चों को पहले से बने हुये
पदार्थ दे देती है। ऐसा करना उनके स्वास्थ्य के लिये लाभप्रद नहीं है। सवेरे के
समय नाश्ते में गर्मागर्म रोटी या घी का पराठा, ताजी सूखी सब्जी बनाकर या कभी-कभी आचार के साथ दें। आंवला,
नींबू व कैरी का आचार घर में ही बनाना चाहिये।
सर्दियों में गोभी, गाजर, मूली का आचार सिरके में बनाकर जरूर रखें। यह
आचार थोड़ा-थोड़ा कई बार बनाकर ताजा ही काम में लेवे। नाश्ते के बाद एक गिलास दूध
अवश्य पिलावें। स्कूल के टिफिन में भी इसी प्रकार ताजा खाना बनाकर ही देना चाहिये।
मूंग, मोठ, चना, चवला (लोबिया) आदि को भी
रात को गुनगुने पानी में भिगोकर रखें। सवेरे उनको साफ धोकर, छौंककर मसाले व नींबू की खटाई डालकर स्वादिष्ट सब्जी
बनावें। इस सब्जी को पराठे के साथ खाने के लिये परोसें। शाकाहारी बच्चों के लिये
यह प्रोटीन का बहुत अच्छा स्रोत है।
बच्चों में तनाव की
समस्या होने से आत्मविश्वास की कमी हो रही है और वे खुद को बोझिल महसूस कर रहे है।
ऐसे में मोटापा बढ़ जाता है। बच्चों के साथ सदैव मित्रता का व्यवहार करें उनकी बात
सुनें। उनको कभी अकेलापन महसूस नहीं होना चाहिये। छुट्टियों में बाहर घूमने के
लिये भी ले जाना चाहिये। उनके साथ इतना घुल मिल जायें कि उन्हें किसी प्रकार का
अकेलापन महसूस न हो।
नींद पूरी नहीं होने के
कारण भी बच्चों में वजन बढ़ता है। बच्चों को पर्याप्त नींद आनी चाहिये। सही समय पर
उनको सोने की सलाह देनी चाहिये। रात को देर तक टी.वी. और मोबाईल का उपयोग करने के
लिये उन्हें मना करना चाहिये। नींद पूरी होने पर आपका बच्चा स्वस्थ और ताजगी महसूस
करेगा। नींद के अभाव में भी बच्चे का मोटापा बढ़ता है।
खाने-पीने की आदत में
सुधार लाना चाहिये। कैलोरी युक्त पदार्थ, वसा, चीनी, नमक आदि का सेवन कम से कम करें। शारीरिक रूप से
सक्रिय रहने का महत्त्व बच्चों को बताते रहें। रोज कम से कम एक घण्टा तक बच्चे को
तेज शारीरिक गतिविधि के लिये दौड़भाग वाले आउटडोर गेम्स अवश्य खेलने दें। एक ही
स्थान पर अधिक समय तक बैठने से बच्चों को रोकें।
अपने बच्चों की दिनचर्या
में शरीर की मालिश करना, हल्के व्यायाम
करना, जल्दी सोना, जल्दी उठना, पढ़ने का समय रात्रि की बजाय सवेरे जल्दी रखना आपके बच्चे को
मोटा होने से बचायेंगें। मोटे बच्चों में हीन भावना घर कर जाती है। उसको दूर करने
के लिये बच्चे के साथ माता-पिता को अधिक से अधिक ध्यान देना होगा। मोटापे से
बच्चों में किशोरावस्था में सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है
अतः उन्हें आत्मसम्मान की कमी जैसी समस्याओं से भी सामना करना पड़ता है। पोषक भोजन,
समय पर भोजन, हल्के व्यायाम और दिनचर्या को दुरस्त करने में माता-पिता की
भूमिका अहम होती है। यही आपके बच्चों को चाइल्ड ओबिसिटी से बचायेगी।
बच्चों में सही आदतें
डालने, संस्कारित करने व अपने
शरीर को सुडोल बनाये रखने के लिये जिन-जिन नियमों का पालन करना बच्चों को सिखाना
चाहते है, पहले माता-पिता को भी उन
नियमों का पालन करना चाहिये। बच्चे सुनने कहने से कम सीखते हैं बल्कि माता-पिता को
देखकर जल्दी सीखते है। बच्चों की उम्र कम होने पर उनके इन कार्यों में उनकी मदद
अवश्य करनी चाहिये। सभी कार्यों में आपका सहयोग बच्चों की रूचि बढ़ाने के साथ-साथ
उनमें स्फूर्ति भी लायेगा।
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