बच्चों को परोस रहें है जहरीले रासायनिक रंग

              


अमेरिका की प्रमुख संस्थान FDA ने 33 साल पहले जिस लाल रंग को लिपिस्टिक और कॉस्मेटिक्स में उपयोग के लिये रोक लगा दी थी वही लाल रंग आजकल बर्गर, पिज्जा, मैगी, बिस्किट, कुकीज, आईसक्रीम आदि फास्टफूड में बच्चों को खिलाया जा रहा है। यह जहरीला लाल रंग बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ अपने स्नेक्स और बच्चों के आहार सीरियल्स में धड़ल्ले से डाल रही है। जो कैंसर जैसी खतरनाक बिमारियों का कारण है।

                    भारत में भी जिन-जिन कृत्रिम रंगों की भोज्य पदार्थो में मिलाने की छूट दी गई है वे भी कम खतरनाक नहीं है। फास्टफूड का और स्नेक्स का बाजार से मंगवाकर खाने का रिवाज भारत में भी तीव्र गति से बढ़ रहा है। बच्चों के साथ घर से बाहर निकलते ही उनकी डिमाण्ड इसी प्रकार की खाने-पीने की चीजों की रहती है। कुछ पेकैट तो वहीं खोलकर खा लेते है और कुछ अधिक खरीदकर घर पर खाने के लिये रख लेते है। इनमें रासायनिक रंगों के अतिरिक्त कई अन्य केमिकल्स भी इनका स्वाद बढ़ाने के लिये मिलाये जाते है जो आगे चलकर विभिन्न बिमारियों को जन्म देते है। अभिभावक भी बच्चों की जिद के आगे असहाय होते है।

                     ऑनलाइन खाने-पीने की चीजे मंगाने का मार्केट प्रतिवर्ष 800 प्रतिशत से 1000 प्रतिशत तक बढ़ रहा है। इस काम में लगी कम्पनीयों को आर्डर पूरे करने व समय पर सप्लाई करने के लिये बहुत बड़ा नेटवर्क तैयार करना पड़ रहा है। वालमार्ट, टारगेट, जोमैटो, मैकडोनाल्ड, कैडबैरी, नेस्ले जैसी रिटेल चैन पर बिकने वाले केक, पेस्ट्रीज और कुकीज में धड़ल्ले से केमिकल्स व खतरनाक रंगों का उपयोग बहुतायत से हो रहा है। कई स्वंय सेवी संगठन इसके खिलाफ FDA में याचिका दायर कर रहे है कि आर्टिफिशयल कलर और वस्तुओं की टेसि्ंटग करके इन पर रोक लगनी चाहिये। लेकिन बड़ी कम्पनियाँ कान में तेल डालकर सोती रहती है।

                     1990 में यूरोपियन यूनियन और अन्य देशों ने इन रासायनिक रंगों पर रोक लगा दी थी। भारत में कई प्रतिबंधित रंग खाने-पीने की वस्तुओं में धड़ल्ले से मिलाये जा रहे है। विशेषकर त्यौहारों के समय मिठाईयों आदि में ज्यादातर दो तरह का पीला रंग, टार्ट्राजिन, नीला, इंडिगों और लाल रंग अधिक प्रयोग किया जाता है। इन कृत्रिम खाद्य्र रंगों से वैसे तो सभी लोग प्रभावित होते है लेकिन बच्चों और वृद्ध लोगों को ये खतरनाक रंग जल्दी चपेट में लेते है।

                     बाजार में प्राकृतिक खाद्य रंग भी उपलब्ध रहते है। जो स्वास्थ्यवर्धक होते है। विभिन्न प्रकार के फूलों खनिजों, सब्जियों, जड़ी-बूटीयों और शैवाल से प्राकृतिक खाद्य रंग बनाये जाते है। रसभरी, लाल पत्तागोभी और चुकन्दर में मौजूद एंथोसाइनिन लाल, नीला, और बैंगनी रंग प्रदान करते है। टमाटर, गाजर और खुबानी के कैरोटिनाइड द्वारा लाल, पीला व नारंगी खाद्य रंग बनाया जाता है। हरी सब्जियों में मौजूद क्लोरोफिल हरे रंगों के निर्माण में सहायक होते है। इसी प्रकार हल्दी, सिंदूरी का भी उपयोग मक्खन को पीली झांई देने में काम में लिया जाता है।

                     कृत्रिम रंगों के सेवन से बच्चों में एकाग्रता कम होती है। साथ ही अस्थमा और थायराइड के भी विकार होते है। इन रंगो के उपयोग से पेट से जुड़ी बीमारियाँ पैदा होती है। लम्बे समय तक इनका प्रयोग करने से प्रजनन अंग, पेट और लीवर को क्षतिग्रस्त करता है, शरीर का विकास रूकता है, खून में लाल कणों की कमी आती है और जिगर पर छाले पड़ने लगते है। पीसे पिसाये डिब्बाबंद मसालों में भी रासायनिक रंगों की मिलावट पाई जाती है। अतः आप घर पर ही जरूरी मसाले कूट पीसकर तैयार करें। इससे आपको अच्छा स्वाद, शुद्धता और खुशबू का आनंद तो मिलेगा ही साथ ही सस्ते भी पडे़ंगें। सभी प्रकार के डेयरी प्रोडक्ट्स, बेकरी की चीजें, मिठाई, शीतल पेय, फास्ट फूड आदि में सिंथेटिक रंगों का प्रयोग किया जाता है। अतः इनसे बचने के लिये सावधान हो जायें।

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