उत्तम खेती

             


    गाँवों के लोग शहर की और तेजी से पलायन कर रहे है। पलायन की यही गति रही तो कृषि के क्षेत्र में बड़ा संकट पैदा हो जायेगा। कई जगह देखा जाता है कि अत्यधिक पढे़-लिखे लोग पुनः खेती को अपना रहे है। इंजीनियरिंग, आईआईटी, एमबीए किये हुये और मल्टीनेशनल कम्पनियों में ऊँचे पदों की नौकरियाँ छोड़कर भी खेती की और अग्रसर हो रहे है। साथ ही समाज में एक नई मिशाल बन रहे है। उनका खेती करने का तरीका आम किसान से भिन्न होता है। ऐसे लेाग बहुत साहसी प्रकृति के होते है। जोखिम लेना इनके स्वभाव में है। ऐसे लोगों की सफलता की कहानियाँ कई बार समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती है। जिन्हें पढ़कर बहुत से लोग प्रभावित भी हो रहे है। इस लेख में ऐसे ही पढे़-लिखे लोगों की खेती में सफलता की कहानियाँ लिख रहा हूँ।

1. राजस्थान के झालावाड़ जिले की भवानीमण्डी तहसील के गुआरी खेड़ा गाँव में रहने वाले कमल पाटीदार बीटेक करने के बाद सॉफ्टवेयर कम्पनी में जॉब कर रहे थे। इस जॉब से उनको पैसा और सुविधाएँ दोनों मिल रही थी। लेकिन कमल को यह नौकरी नहीं भायी उन्होनें फैसला किया कि गाँव में रहकर माता-पिता व परिवार के साथ रहकर खेती में कुछ नया करूंगा।

               राष्ट्रीय बागवानी मिशन से अनुदान लेकर चार हजार वर्गमीटर का पॉलीहाऊस लगाया। इस पॉलीहाऊस में सब्जियों की अच्छी वैरायटी की नर्सरी तैयार की। हर साल बढ़िया कम्पनियों का बीज मंगवाकर टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी, शिमलामिर्च, खीरा, ब्रोकली के साथ-साथ कई सब्जियों की पौध तैयार करके आस-पास के किसानों को दे रहे है। इनके गाँवों के किसान ऐसी उन्नत वैरायटीयाँ लगाकर मालामाल हो रहे है। कमल इन किसानों के संपर्क में सदा रहते है। उन्हें समय-समय पर सलाह देते रहते है। इतना ही नहीं इनके उत्पादन की मार्केटिंग करने में भी कमल खूब मदद करते है। पॉलीहाऊस में पहले साल एक लाख पौध तैयार की, तीसरे साल पाँच लाख पौध तैयार की जिनकी मांग लगातार बढ़ती जा रही थी। अतः कमल अब बीस लाख पौधे तैयार करके बेचते है। कमल प्रतिवर्ष दो करोड़ रूपये इसी नर्सरी के व्यापार से कमा रहे है। इनके साथ जुडे़ हुये किसान भी बहुत प्रसन्न है और कमल भी प्रसन्न है।

2. आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले के गमपालगुडेम गाँव के रहने वाले नागा कटारू एक ऐसे भारतीय इंजीनियर है जो गूगल में जॉब करते थे। उन्होनें इस जॉब को छोड़कर खेती करने का मन बनाया। कटारू ने कैलीफोर्निया में ही 320 एकड़ का फार्म लीज पर लिया उसमें बादाम और खुबानी की खेती करने लगे। इन फसलों से उनको इतनी आय हुई कि उस जमीन को ही खरीद लिया। उसमें अच्छी-अच्छी तकनीक से प्रयोग करके खेती कर रहे है। इससे उनका उत्पादन और टर्नऑवर काफी बढ़ गया है। वर्ष 2015 में 17 करोड़ रूपये और 2016 में 18 करोड़ रूपये का टर्नऑवर किया। उनका सपना है कि भारत में भी इस तरह की एडवांस खेती करें ताकि खेती के तरीकोें में बदलाव लाकर किसानों की आय बढ़ा सके। ज्ञातव्य हो कि नागा कटारू ने बतौर इंजीनियर आठ वर्ष तक काम किया इस दौरान वहाँ के अधिकारियों को उन्होनें ‘‘गूगल एलर्ट’’ का आइडिया दिया। 2003 में गूगल एलर्ट लांच किया गया जो काफी उपयोगी पसंदीदा सॉफ्टवेयर है।

3. उत्तराखण्ड के मूल निवासी राहुल भदौरा और बिहार के बेगूसराय जिले के रहने वाले तीस वर्षीय आलोक राय दोनों मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी कर रहे थे। इसी दरम्यान दोनों ने औषधीय पौधों की खेती का प्रशिक्षण कार्यक्रम अटेंड किया। इस खेती से दोनों मित्र बहुत प्रभावित हुये और तुलसी की खेती को अपना करियर के रूप में चुना। दोनों मित्र बेगूसराय जिले में खेती कर रहे है एवं आसपास के किसानों को भी तुलसी की खेती का प्रशिक्षण दे रहे है। इनका सारा उत्पादन मल्टीनेशनल कम्पनी खेत में ही खरीद लेती है। अब इन्होनें रिसर्च करके तुलसी के कंज्यूमर प्रोड्क्ट बनाकर मार्केट में बेच रहे है। इससे इनको उस कम्पनी में मिलने वाले वेतन से कई गुना अधिक पैसा मिल रहा है। अब उनके पास उद्योग चलाने के लिये अच्छी गुणवत्ता का रॉ मेटेरियल भी उपलब्ध है, प्रोसेस करने के लिये प्रोसेसिंग इण्डस्ट्री भी है और प्रोड्क्ट खरीदने के लिये बॉयर भी है।

4. जैसलमेर नगर निगम में इंजीनियरिंग के पद से नौकरी छोड़कर जैसलमेर से 45 किलोमीटर दूर दईजर गाँव के रहने वाले धनदेव ने रेतीली जमीन में एलोवेरा की खेती शुरू की। यह पुस्तैनी कृषक परिवार से ही है। इनके परिवार में जमीन बहुत है। इन्होनें मात्र 120 एकड़ में ड्रिप इरिगेशन लगाकर एलोवेरा की खेती की। इन्होनें नेचुरल एग्रो के नाम से अपनी एक कम्पनी भी बनाई। इनका प्रोड्क्ट पतंजली आयुर्वेद पूरा का पूरा खरीद रही है। इससे इनको प्रतिवर्ष दो करोड़ रूपये की कमाई हो रही है। जैसलमेर जिले की रेतीली जमीन यहाँ का गर्म जलवायु और कम वर्षा एलोवेरा के लिये अत्यंत अनुकूल है। एलोवेरा की खेती में इस क्षेत्र में कोई बीमारी नहीं लगती। अतः किसी प्रकार का फर्टीलाइजर और पेस्टीसाइड का उपयोग नहीं किया जाता। पूरा प्रोड्क्ट 100 प्रतिशत ऑर्गेनिक होता है।

5. छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्र के रहने वाले डॉ. राजाराम त्रिपाठी बैंक की अधिकारी की नौकरी छोड़कर 1995 में जड़ी-बूटीयों की खेती का प्रशिक्षण लेकर सफेद मूसली की सफलतापूर्वक खेती की तथा आसपास के किसानों को भी इसकी खेती करने के लिये प्रोत्साहित किया। बस्तर जिले की भूमि, जल और जलवायु सफेद मूसली की खेती के लिये बहुत ही उपयुक्त है। इन्होनें अपने प्रोड्क्ट को क्लीनिंग, ग्रेडिंग और पैकेजिंग करने की मशीनरी भी विकसित की। अपने प्रोड्क्ट को हर वर्ष अच्छी लैबोरेटरी से टेस्टींग कराते रहे। उसमें विद्यमान औषधीय गुणों की क्वालिटी और मात्रा ग्राहकों के लिये उपयुक्त थी। अपने प्रोड्क्ट को त्रिपाठी ने कई देशों में निर्यात किया। इन्होनें इस खेती से करोड़ों रूपये कमाये और कमा रहे है। आगे बढ़ने के लिये अपने पास पड़ी जमीन में बडे़ पैमाने पर इन्होनें ऑस्ट्रेलियन टीक का प्लांटेशन किया यह एक बहुत तेजी से और सीधा बढ़ने वाला पेड़ है। दूसरे वर्ष ही इन पेड़ो के सहारे कालीमिर्च का रोपण किया। यह बड़ा पेड़ कालीमिर्च को सपोर्ट देने के लिये बहुत ही उपयुक्त बना। बस्तर जिले की क्लाइमेट कालीमिर्च को सूट कर गया और केरल से भी अधिक उत्पादन और अच्छी गुणवत्ता की कालीमिर्च त्रिपाठी ने बस्तर में पैदा की है। अड़ोस-पड़ोस के किसानों को भी ऑस्ट्रेलियन टीक का प्लांटेशन करवाकर कालीमिर्च की खेती शुरू करवाई। आज राजाराम  काली मिर्च की खेती के सबसे बड़े किसान है। आज उनमें नई-नई खेती करने की तथा जोखिम लेने की भी क्षमता हो गई है। वे निरन्तर शोधकार्य करते रहते है। उनकी आमदनी का पता ऐसे लगता है कि इन्होनें इसी वर्ष 8 करोड़ रूपये में पौलेण्ड से एक हैलीकाफ्टर खरीदा है। जिसका खेती में उपयोग होगा। खेती करने के साथ-साथ त्रिपाठी किसानों के हित की बात सदैव करते रहते है। भारतवर्ष के 300 से अधिक किसान संगठनों को एक मंच पर लाकर आंदोलन करते रहते है। इस महासंगठन के त्रिपाठी राष्ट्रीय समन्वयक है। कृषि पत्रकारिता भी आप निरंतर करते रहते है। किसानों की मांगो को दूरदर्शन, अखबारों, पत्रिकाओं और सोशल मीडिया के द्वारा उठाते रहते है।

इस लेख में इन पाँच सफल किसानो की कहानी संक्षिप्त रूप में बताने का प्रयास किया है। आगे भी इसी प्रकार की कहानियाँ आप तक प्रेषित करने का प्रयास करूंगा।

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