ऑर्गेनिक सब्जी कददू (Pumpkin)

                 


हमारे गाँव में कददू की सब्जी नहीं खाई जाती थी। इसका मुख्य कारण इसकी पैदावार फसल के रूप में रेगिस्तानी क्षेत्र मे ंनहीं होती है। एक और यह प्रथा प्रचलन में है कि गाँवों में लोग गुरू बनाते समय गुरू के वचनानुसार कर्णंफूंकन के समय एक न एक वस्तु का उपयोग त्यागते है। गुरू के सामने यह प्रतिज्ञा करते है कि आज के बाद जीवन पर्यन्त इस वस्तु का सेवन नहीं करेंगे। ऐसी प्रथा स्त्री और पुरूषों में देखी गयी है लेकिन पुरूषों की अपेक्षा स्त्रियाँ इस प्रकार की शपथ अवश्य लेती है। कददू (कोला, Pumpkin) सबसे अधिक त्यागने वाली वस्तु है। इसके साथ कई महिलाओं से पूछने पर पता चला कि वे अमरूद, केला आदि वस्तुओं का भी त्याग करती है। कई वर्षो पहले इनकी उपलब्धता मुश्किल से हो पाती थी अतः इनका ही त्याग किया जाता था। कई लोग गंगा-स्नान करने जाते समय भी एक न एक वस्तु का त्याग करते है।

                मेरे पिताजी रेल्वे में गार्ड थे। इसी सिलसिले में इनको कई जगहों पर ड्यूटी के रूप में जाना पड़ता था। इसी काल में उनका सम्पर्क विभिन्न साधु-सन्यासियों से रेलगाडी में होता था। जोगिया कपड़ों के प्रति उनमें कुछ ज्यादा ही श्रद्वा थी। अक्सर उनको रेलगाड़ी में अपने पास बिठाकर घंटो समय व्यतीत करते थे। एक सन्यासी ने उनको पम्पकिन के 4-5 बीज दिये व उसके उपयोग के बारे में कई आश्चर्यजनक बातें बताई तथा बौने का तरीका भी बताया। बरसात के मौसम में उनके बताये अनुसार उन बीजों को अपने बाडे़ में लगा दिया। उनकी बैले खूब फलने-फूलने लगी। नवरा़त्र के दिनों में बड़े -बडे़ फूल पीले रंग के आने लगे दीपावली और कार्तिक पूर्णिमा के बाद फल लगने लगे थे। उनको बड़ा होने दिया गया। मिगसर महीनें में जो सबसे पहले फल लगे थे उनका आकार 10 किलो तक का हो गया। उसी दरमयान अन्य संतों का समूह यहाँ आया उन्होनें 30-40 बड़े फलों को देखकर एक फल को तोड़कर उसकी सब्जी बनायी। मेरे पिताजी को भी उन्होनें उसकी सब्जी बनाना, पके हुए कददू की खीर, हलवा, रायता आदि बनाना भी सिखाया। आधे पके कददू का अचार भी बनाया जो एक साल तक खराब नहीं होता था। एक सन्यासी ने बताया कि इसके बीज बहुत अच्छे स्वास्थ्यवर्धक है। इनको सूखाकर गर्म राख में भूनकर खाना चाहिए। सन्यासियों ने बताया कि इन बीजों को खाने से क्या-क्या फायदें होते है ये तो नहीं पता, लेकिन हम सन्यासी लोग सदैव इनको भूनकर अपनी झोली में रखते है। और नियमित रूप से छीलकर थोड़ा-थोड़ा ड्राईफूट्स की तरह सेवन करते रहते है।

               अभी कुछ दिन पहले मैंने एक अंग्रेजी की स्वास्थ्य पत्रिका में पढा कि कददू के बीजों में विटामिन्स, प्रोटीन, ओमेगा-6, ओमेगा-3 आदि कई बायोऐक्टिव पाये जाते है। इसमें पाये जाने वाला एंटीऑक्सीडेट कंपाउंड्स यादाश्त को बढ़ाता है। दिन में कम से कम 25 ग्राम बीजों का चबा-चबाकर सेवन करना चाहिए। एक अन्य पत्रिका के अनुसार कददू के बीज का उपयोग करने से एनर्जी लेवल बढ़ता है, डायबिटीज कन्ट्रोल होती है, हृदय स्वस्थ रहता है, पुरूषों में प्रोस्टेड कैंसर से बचाव होता है, शुक्राणुओं को बढ़ाता है, हृदय स्वस्थ रहता है, और हाई ब्लड प्रेशर कन्टो्रल होता है, कददू के बीजो को सूखाकर, भूनकर, भिगोकर, अकुरित करके, सलाद में मिलाकर, सूप में डालकर या पीसकर उपयोग कर सकते है।

                नर्मदा नदी की सतत् परिक्रमा करने वाले सन्यासी बाबा तृप्तानंद जी महाराज ने अपने एक लेख में बताया कि आज से 40-50 वर्ष पूर्व कददू का व्यापक उपयोग होता था। हर घर में इसकी 4-5 लताएँ लगा दी जाती थी। इसका फल वर्ष पर्यन्त नहीं सड़ता है। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, पूर्वी राजस्थान आदि जगहों पर शादी -विवाह व अन्य सामूहिक भोजन कार्यक्रमों में कददू की सब्जी बनाना आवश्यक होता था। क्योंकि यह हर घर में निशुल्क उपलब्ध होती थी। दक्षिण भारत में चारों प्रान्तों में इसका भरपूर उत्पादन होता है। सांभर व सूखी सब्जी के रूप में इसका नियमित सेवन किया जाता है। कददू पूरे वर्ष तक बिना किसी कोल्ड स्टोरेज के साधारण तापमान में सुरक्षित रहता है। क्योंकि इसमें जीवनी शक्ति भरपूर होती है।

                स्वामी तृप्तानंद ने यह भी बताया कि कददू के बीज पोषक तत्वों का पावर हाउस है। नियमित नट्स की तरह इनका सेवन करने से आयरन कैल्सियम, विटामिन B2, फोलेट, बीटा-कैरोटिन प्रचूर मात्रा में मिलता है। इसके बीज जस्ता, मैग्नीशियम, मैंगनीज, ताँबा, एंटीऑक्सीडेट, फाइटोस्टेरॉल जैसे तत्वों का स्रोत्र होता है। महिलाओं और पुरूषों के लिए स्वास्थ्यवर्धक स्नैक्स का काम करता है। इसके बीज का सेवन करने से शुगर लेवल कन्ट्रोल होता है इसके बीजों में सुपाच्य प्रोटीन अधिक मात्रा में होता है। वजन घटाने के लिए उसके बीज प्रभावकारी होते है। इसके बीजों में कई एमिनो एसिड्स एवं विटामिन्स होते है जो बालों की ग्रोथ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

                आजकल बड़ी मण्डियों में कददू के बीज ड्राईफूट्स की दूकानों पर बिकते देखे जा सकते है। चीन इसके उत्पादन एवं निर्यात् में प्रथम राष्ट्र है। चीन में पम्पकिन पाऊडर भी फैक्ट्रियो में आर्गेनिक बनता है। फाइव स्टार होटलों में पम्पकिन कोरियन्डर सूप बड़ी मात्रा में सर्व किया जाता है। चीन में पम्पकिन की ऐसी वैरायटी भी विकसित की गयी है जिसमें 300-400 ग्राम तक का सीड्स हर कददू में पैदा होते है। साधारणतया हमारें देश में औसतन 180 बीज ही एक पम्पकिन में पाये जाते है। जो बीज यहाँ मण्डी में छिलका उतारे हुए रेडी टू इट बिकते है वह सारा चीन ही सप्लाई करता है। चीन में पम्पकिन की खेती हजारों हेक्टेयर में आधुनिक मशीनों द्वारा की जाती है। इसकी हार्वेस्टिंग व प्रोसेसिंग मशीनों द्वारा बहुत कम लागत से हो जाती है। अमेरिका, यूरोप, आस्ट्रेलिया, रूस, जापान आदि देशों में पम्पकिन सूप पाउडर व पम्पकिन सीड्स इतना सस्ता बल्क में बेचते है। जिसे हम सोच भी नहीं सकते।

               थोड़ी बहुत भी घर में अगर जगह है तो एक-दो  लता  घर में कददू की अवश्य लगानी चाहिए। अनाप-सनाप पोषक तत्वों की खान कददू को अपनी भोजन श्रृंखला में किसी न किसी रूप में अवश्य सम्मिलित करना चाहिए। कददू का सेवन बढ़ाकर आप सब्जियों का और दवाईयों का बिल अप्रत्याशित रूप से कम कर लेंगे। साथ ही अपने परिवार की खपत के लिए कददू के बीज भी निशुल्क मिल जायेगे। बोने के लिये अच्छी गुणवता का बीज इण्डियन इस्टीट्यूट ऑफ हार्टीकल्चर रिसर्च हैसरगट्ा बैंगलोर से सूर्यकिरण नामक  वैरायटी का मंगाकर अपने यहाँ लगा सकते है। इसका फल बाहर और अंदर से गोल्डन कलर का होता है तथा छोटे और मध्यम परिवार के लिए इसका आकार भी एक किलो से दो किलो तक ही होता है। इसका गोल्ड़न कलर बहुत ही आकर्षक और विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों से भरपूर होता है। सभी लोग अपने भोजन में इसको प्रथम स्थान देगें।

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