अडूसा
पश्चिमी राजस्थान के पंरपरागत चिकित्सा विज्ञान में एक औषधीय पौधे को बड़ी मात्रा में घर-घर में उपयोग में लिया जाता है। इस पौधे का नाम अडूसा या वसाका है। इस पौधे का उपयोग आयुर्वेद में भी बहुतायत से किया जाता है। खांसी, श्वसन संस्थान की बीमारी के साथ-साथ तपेदिक (टी.बी.) आदि बीमारियों में इसका उपयोग किया जाता है। इस पौधे की प्रमुख विशेषता यह है कि यह सदाबहार होता है। राजस्थान के पठारी और पथरीली जमीनों में यह बहुतायत में अपने आप उगता है। इसको कोई भी पशु नुकसान नहीं पंहुचाता है। यह एक झाड़ीनुमा बिना कांटे का सफेद फूल का पौधा होता है। इसकी दो प्रजातियाँ राजस्थान में पायी जाती है। एक छोटे पत्तों वाली, दूसरी बडे़ पत्तों वाली। दोनों के गुणधर्म समान होते है।
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में अडूसा का वर्णन
किया गया है। श्वसन संस्थान से सम्बन्धित सभी बीमारियों का इलाज अडूसा की बनी हुई
औषधियों से किया जाता है। घरेलू चिकित्सा पद्धति में भी ग्रामीण लोग अडूसा,
काली मिर्च, सौंठ, कंटकारी, तुलसी आदि का काढ़ा बनाकर शहद के साथ सेवन करते
है। इसकी मात्रा दो छोटे चम्मच प्रातःकाल एवं सोने से पूर्व गाँवों में लोग लिया
करते है।
अडूसा
का कम से कम एक पौधा हर घर में लगाना चाहिए। अडूसा का काढ़ा छोटे बच्चों को भी
अल्पमात्रा में दिया जाता है। आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. नरेन्द्र कुमार ने बताया कि
अडूसा का प्रयोग अल्सर, अस्थमा, गठिया रोगों में भी अनुभवी वैद्य करते है।
अडूसा की पत्तियाँ, फूल, जड़ और छाल का भी उपयोग यूनानी चिकित्सक कई
बीमारियों में प्रयोग करते है।
आधुनिक
चिकित्सा पद्धति में अडूसा के पत्तों का एक्सट्रेक्ट निकालकर उससे कई प्रकार की
औषधियाँ बनाते है। प्रत्येक गृह-वाटिका में अडूसा का पौधा व तुलसी आदि छोटे-छोटे
पाँच -दस प्रकार के दैनिक उपयोग में आने वाले पौधां को लगाना चाहिए।
बाड़मेर
के जागरूक पत्रकार श्री मनमोहन सेजू ने अपने इंटरनेट लेख में बताया कि बाड़मेर के
महासती दक्षिणायनी मंदिर ट्रस्ट के पुजारी ने मंदिर की वाटिका में 400 किस्मों के करीब 4000 पौधे लगाए। जिसमें औषधीय, सदाबहार ,छायादार और फलदार
पौधां को लगाया गया। मंदिर के पुजारी श्री वासुदेव जोशी परम्परागत चिकित्सा के
द्वारा इन पेड़-पौधां से बीमारों का उपचार भी करते है। भारत के हर गाँव में मंदिर
होते है। उन मंदिरों में वाटिका बनाने के लिए जगह उपलब्ध होती है। उसकी देखभाल के
लिए पुजारी भी रखे जाते है। इनकी वाटिकाओं में ऐसे औषधीय पौधों का रोपण करना चाहिए
जो प्रतिदिन बीमारियों में काम आ सके। कई गाँवों में वैद्य लोग या गुणीजन ऐसा
कार्य करते है। वे साधुवाद के पात्र है।
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