रेगिस्तान की आर्गेनिक गाजरः-एक सम्पूर्ण आहार
गाजर का उपयोग फल, हलवा, मुरब्बा, सलाद, सब्जी, रस एवं अचार बनाकर हमारे घरों में सर्दी के मौसम में लम्बे समय से किया जाता है। पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर जिले में तिंवरी, मंथानिया, रामपुरा आदि गाँवों में गाजर की खेती आर्गेनिक तरीकों से बहुत मात्रा में की जाती है। इस क्षेत्र में सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था भी धीरे-धीरे कम होती जा रही है। कई किसानों का अनुभव है कि सिंचाई के लिए जलस्तर नीचे जा रहा है परिणामतः जल की गुणवता में भी कमी आ रही है। इस क्षेत्र के करीब 70 गाँवों में गाजर की खेती अगेती व पिछेती यहाँ के किसान करते आ रहे है। नवरात्रि से ही गाजर की फसल आना शुरू हो जाती है जो होली तक आती रहती है।
इन गाँवों में गाजर की उन्नत खेती
करने का किसानों को पारम्परिक ज्ञान है। यहाँ की गाजर सुर्ख लाल, लम्बी और दिखनें में खूबसूरत, खाने में मीठी और स्वादिष्ट होती है। यहाँ के
किसान बहुत अधिक मात्रा में गाजर की खेती प्रतिवर्ष करते है। यहाँ की गाजर का
उत्पादन अहमदाबाद, बड़ौदा, बम्बई, बैंगलोर, चैन्नई, हैदराबाद, कलकत्ता जैसी
दूर-दूर की मण्डियों में ट्रकों में भरकर जाता है। इस क्षेत्र की गाजर सभी
मण्डियों में चाव के साथ बिकती व खायी जाती है।
इस वर्ष अगेची की फसल बाजार में अच्छी
मात्रा में आई व किसानों को अच्छे भाव भी मिले। देवउठनी एकादशी से लेकर दिसम्बर तक
की शादियों में मिठाई के रूप में गाजर का हलवा लगभग हर समारोह में परोसा गया। यहाँ
की गाजर का हलवा स्वाद, रंग और औषधीय गुणों
में बेहतरीन होता है।
गाजर
में बीटा-कैरोटिन औषधीय तत्व पाया जाता है जो कैंसर पर नियन्त्रण करने में उपयोगी
होता है। गाजर का सेवन हृदय के लिए लाभकारी, रक्तशोधक, वातदोष नाशक,
पुष्टिवर्धक, मस्तिष्क की नसों के लिए बलवर्धक, बवासीर नाशक, पेट के रोग, सूजन व पथरी नाशक
तथा शारीरिक कमजोरी को दूर करने वाला होता है। गाजर में कैल्शियम और कैरोटिन
प्रचूर मात्रा में पाया जाता है जो छोटे बच्चों के लिए उत्तम आहार है। दस-पन्द्रह
दिन तक गाजर का रस पीने से शरीर में आयरन की कमी दूर होती है। गाजर को खूब
चबा-चबाकर खाने से दांत और मसूडे़, मजबूत, स्वच्छ और चमकीले होते है।
गाजर के रस में धनिया की पत्ती, जीरा, काली मिर्च, अदरक और नींबू का
रस डालकर पीने से पाचन संस्थान के रोग दूर होते है। कई घरों में गाजर का मुरब्बा
बनाकर गर्मियों में सेवन किया जाता है जो दिमाग के लिए लाभप्रद होता है। कई घरों
में गाजर के अंदर का पीला वाला भाग नहीं खाते है। गाजर का रस पीलीया की प्राकृतिक
औषधि है।
शिवरात्रि के दिन व्रत करने वाली महिलायें और
बालिकायें गाजर, बेर, शकरकंद, सिघांडे भगवान शंकर को चढ़ाते है और यही फलाहारी भोजन व इसके
व्यंजन बनाकर खाते है। वैसे तो पूरे भारत में बेर और गाजर सभी जगह पैदा होते है।
लेकिन पश्चिमी राजस्थान में गाजर और बेर की उन्नत वैरायटियों की खेती बहुतायत में
की जाती है। इन फसलों को दूर-दूर तक ट्रांसपोर्ट किया जाता है।
हर घर
में इन दिनों में गाजर का हलवा, इसका अचार, मुरब्बा आदि बनाया जाता है। सभी आयुवर्ग के
लोगों की गाजर मटर की सब्जी प्रिय लगती है ज्ञातव्य हो कि रेगिस्तान में गाजर की
खेमी में किसी प्रकार का रासायनिक खाद या रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग नहीं होता
है। बड़ी मात्रा में खेती होने के कारण इसकी खुदाई, छिलायी, धुलाई के लिए यहाँ
के किसानों ने जुगाड़ के द्वारा कई तरह की मशीनें बना ली है। जिससे गाजर की
प्रोसेसिंग आसान और कम समय व कम लागत में सम्भव हो सका है। मशीनीकरण से यहाँ के
किसानों की लागत कम हुई है व काम की गुणवता में भी विकास हुआ है। सारी मशीनरी
स्थानीय मिस्त्री लोगों के द्वारा आविष्कृत की गयी है। खेतों में ही क्लीनिंग,
ग्रेड़िग और पैकेजिंग की व्यवस्था अति उत्तम
तरीकों से की जाती है तभी गाजर की फसल का दूर-दूर तक ट्रांसपोर्ट बड़ी मात्रा में
संभव हो सका है। गाजर की आर्गेनिक फसल का विक्रय पूरे भारत में जोधपुर व मथानिया
के अच्छे नाम और अच्छे दाम से किया जाता है।
Nice
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