युवा वर्ग में मोबाइल की लत
मनुष्य के बेहतर जीवन के लिए पूरे विश्व में निरन्तर शोध कार्य चल रहे है। समाज में प्रतिदिन आशा से अधिक उन्नति हो रही है। यह एक अच्छी बात है। विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक आविष्कार मनुष्य जीवन को आसान और सुविधापूर्वक बनाने के लिए तीव्रगति से हो रहे है। इन आविष्कारों से एक तरफ विभिन्न लाभ हो रहे है साथ ही कई प्रकार की हांनियां भी हो रही है।
मिड एज में फोन और स्कीन
की लत शराब की लत से भी कुछ ज्यादा ही घातक हो रही है। इस लत के कारण लोग मानसिक
रोगों से अत्यधिक घिर रहे है। ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने लोगों के बीच अध्ययन करके
यह पाया है कि बीस वर्ष से पैंतालीस वर्ष की उम्र के 40 प्रतिशत युवा इंटरनेट के एडिक्ट हो गये है। एडिक्ट की
पहचान ऐसे होती है कि उनसे फोन दूर होते ही उनकी हदय की धड़कन तेज हो जाती है और
ब्लड प्रेशर एकाएक बढ़ जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि शराब, सिगरेट, जंक फूड आदि की लत तो एक बार छूट भी सकती है, लेकिन कामकाजी युवाओं में मोबाइल फोन का नशा
उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है। यह लत ब्रिटेन में इतनी बढ़ गयी है कि वहाँ के
युवा कुछ घंटो के लिए भी बिना फोन के नहीं रह पा रहे है।
युनिवर्सीटी ऑफ सरे में
हुई शोध के अनुसार यह सामने आया कि 36 वर्षीय इंजीनियर हॉलिवर हार्ट ने अपनी कहानी बताते हुए कहा कि मैं मोबाइल को
बंद करने के लिए निश्चित समय के लिए अलार्म लगाता
हूँ,, लेकिन हर बार अनायास ही मुझसे अलार्म बंद हो जाता है। यह लत
मुझें कब लगी इसका मुझें कोई पता नहीं, लेकिन इस लत को छोड़ने के लिए मेरे सारे प्रयास विफल हो रहे है। शोध करने वाले
वैज्ञानिक डॉक्टर ब्रिगीट स्टैंगल ने बताया कि मिड एज के लोग बिना जरूरत के भी रोज
कई-कई घंटे मोबाइल पर नष्ट कर रहे है। यह एक खतरनाक नशा बनता जा रहा है। कुछ लोग
तो ऑनलाइन मि़त्रता में इतने व्यस्त हो जाते है कि रियल लॉइफ की जिम्मेदारियों को
भी भूल जाते है। उन्हें अपने घर परिवार की भी कोई खबर नहीं रहती है। उनमें दूसरी
मानसिक बीमारियां भी बढ़ रही है।
लगभगः यही स्थिति भारत के
शहरों, कस्बों और ग्रामीण
क्षेत्रों में भी हो रही है। भारत युवाओं का देश है। मोबाइल फोन आजकल हर युवा की
मुट्ठी में है। इतना ही नहीं पढ़ी-लिखी और अनपढ़ महिलायें भी मोबाइल का निरन्तर
आवश्यकता से अधिक उपयोग कर रही है। मोबाइल की बीमारी धीरे-धीरे इतनी बढ़ गयी है कि
युवा और युवतियों को अपने दैनिक आवश्यक कार्यो की भी खबर नहीं रहती है। मोबाइल का
पराधीन होकर जीना उनकी आदत बन गयी है।
एक शोध के अनुसार गर्भवती महिलायें मोबाइल का अत्यधिक उपयोग फालतू की बातचीत
में करती रहती है। माता के द्वारा की गयी हर एक्टिविटी का अच्छा-बुरा प्रभाव
गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है। गर्भस्थ शिशु पर पड़ने वाला दुष्प्रभाव जीवन भर उनका साथ
नहीं छांड़ता। माता-पिता जैसा करते ह,ै वैसा ही उनके बच्चें भी सीखतें है। यदि माता-पिता में मोबाइल की अनावश्यक लत
होगी तो उनके बच्चें भी लाख मना करने पर भी इसके शिकार हो जाएगें। परिस्थितियों की
नाजुकता को देखते हुए हमें इस गंभीर समस्या से मुक्ति पाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ
होना पडेगा। वरना यह बीमारी एक महामारी का रूप ले लेगी।
Very nice have a nice day !
ReplyDeleteGood guidelines for every person with their children thank you sir
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