युवा वर्ग में महामारियों का प्रकोप

 


12 ऑकटूबर को विश्व आर्थराइटिस दिवश मनाया जाता है। युवाओं की बिगड़ती लाइफ-स्टाइल के कारण गठिया रोग तेजी से बढ़ रहा है। डॉक्टरों का मत है कि आर्थराइटिस अधिकतर 60 वर्ष की उम्र के बाद अधिक दिखाई देता है। जोड़ो में दर्द, सूजन, जकडन और जोड़ो का टेढ़ापन आदि लक्षण इस रोग में दिखाई देते है। इस रोग को दूर करने के लिए प्रारम्भिक दवाइयाँ और फिजियोथेरेपी की जाती है। लेकिन अंतिम उपचार सर्जरी ही होता है।

                नारायणा हॉस्पीटल जयपुर के सर्जन डॉ. विजय कुमार शर्मा के अनुसार यह रोग आजकल युवा पीढ़ी में तेजी से बढ़ रहा है। युवाओं में पौष्टिक आहार के प्रति लापरवाही, जंक फूड का ज्यादा प्रचलन होना, और वजन का नियंत्रित न होना घुटनों के रोग का मुख्य कारण होता है। युवाओं की लाइफ स्टाइल में शारीरिक श्रम की कमी और नियमित व्यायाम की कमी से भी घुटने जल्दी बोलने लग गये है। आजकल अस्पतालों में युवा पीढ़ी के लोग घुटने बदलवाने के लिए अधिक आ रहे है।

               केवल घुटना रोग ही नहीं, अपितु मधुमेह, रक्तचाप और हदय रोग जैसी बीमारियाँ भी नवयुवकों में अधिक देखी जा रही है। युवाओं की दिनचर्या अत्यधिक बिगड़ चुकी है। युवाओं में अपने स्वास्थ्य के प्रति एवं भोजन की प्रति जागरूकता कम हो गयी है। दैनिक जीवन अति अस्त-व्यस्त हो गया है। जो भी मिला उससे पेट भरना ही है। भोजन की शुद्वता एवं पौष्टिकता पर कोई ध्यान अब न माता-पिता दे रहे है न उनके बच्चें ही। प्रातकालः के स्वास्थ्यवर्धक कार्यक्रम जैसे व्यायाम, भ्रमण आदि भूल गये। खान-पान सब बिगड़ गया। जीवन शैली में अपना-अपना कैरियर बनाने के चक्कर में स्वास्थ्य को किनारे कर दिया। इसका दुष्परिणाम चारों तरफ देखने को मिल रहा है। घर के बुर्जुगों को इस बिगड़ती परिस्थितियों में अविलंब संचेत होना पडे़गा वरना पानी सिर पर चढ़ता जा रहा है।

               बच्चे का केरियर बनाने के चक्कर में स्वास्थ्य की अवहेलनना की जा रही है। घर से दूर कोचिंग करने के लिये बच्चों को भेजा जा रहा है। खाना-पीना उचित नहीं मिलता है। हॉस्टल हो या टिफिन सेन्टर से खाना आता हो, उसकी गुणवत्ता बच्चे के स्वास्थ्य के अनूकूल नहीं होती है। बच्चे की दिनचर्या में केवल पढ़ायी ही मुख्य रह जाती है। खेलकूद शारीरिक कार्यक्रम एकदम छूट जाते है। शरीर एक दम कमजोर हो जाता है। कई शारीरिक व मानसिक रोग बच्चों को घेर लेते है। माता-पिता जरा भी नहीं सोचते कि ऐसी शिक्षा का आखिर क्या अर्थ रह जायेगा? राजस्थान में कोटा, सीकर आदि कई सेन्टर लाखों विद्यार्थियों को कोचिंग कराते है। यह अरबों रूपयों का व्यवसाय चल रहा है। कई बार अखबारों में बच्चों के आत्महत्या तक करने की खबरें प्रकाशित होती है। मैं उनके आंकड़ो की तरफ नहीं जाना चाहता। क्योंकि आंकडे भयानक होते हैं।

               जिस देश का युवा ही बीमार होगा, वह देश भी बीमार ही होगा। दुनिया में कई देश बुर्जुग हो गये हैं। युवाओं का प्रतिशत एक दम घट गया है। कमजोर शरीर को बीमारियां जल्दी घेर लेती है। पहला सुख ही निरोगी काया कहा गया है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। अतः स्वास्थ्य को ही सर्वोपरि महत्व देना आवश्यक है। अन्य बातों को दूसरे या तीसरे नम्बर पर रखना होगा।    

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