बाजरा, तिल का तेल और गुड़ का चूरमा

  


पश्चिमी राजस्थान में बाजरा मुख्य रूप से पैदा होने वाली खाद्यान्न फसल है जो शत्-प्रतिशत ऑर्गेनिक ही पैदा होती है। पूरे भारतवर्ष में मोटे अनाजों में सबसे ज्यादा उत्पादन पश्चिमी राजस्थान में ही होता है तथा सबसे अधिक बाजरा ही पश्चिमी राजस्थान में खाया जाता है। एक चुटकला बहुत अधिक प्रचलित है। किसी गाँव में एक राहगीर आया उसने एक छोटे बच्चे से परिचय के रूप में उसके पिता का नाम पूछा (किसका बेटा है? बच्चे ने उत्तर दिया बाजरी का!) इससे यह पता चलता है कि पश्चिमी राजस्थान में खाद्यान्न बाजरी को माता-पिता से भी बढ़कर अन्न देवता माना गया है जिसका सेवन करके ही हम जीवित है।

                विभिन्न शोध में पाया गया कि बाजरी में कई डायट्रीफाइबर प्रोटीन और विटामिन पाये जाते है जो शरीर के लिए बहुत आवश्यक होते है। डाइटीशियन श्री सिमरन सैनी ने बताया कि इसके सेवन से एसिडिटी और अल्सर में काफी लाभ मिलता है। पुरानी से पुरानी पेट की परेशानियों में बाजरी का दलिया दही के साथ खाने से आराम मिलता है। बाजरी का ग्लाडेमिक इंडेक्स बहुत कम होता है अतः यह ब्लड शुगर के स्तर को सामान्य रखता है। बाजरे का सेवन डायबिटीज के मरीजो के लिए काफी अच्छा माना गया है।  बाजरा में मौजूद मैग्निशियम, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और हदय रोग के जोखिम को कम करता है। बेड कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करता है। बाजरे का सेवन कई प्रकार की स्किन प्रोबल्मस को दूर करता है क्योंकि इसमें एंटीऑक्सीडेंट तत्व बहुत मात्रा में पाया जाता है। सर्दियों के मौसम में बाजरे की रोटी (सोगरा) शरीर को गर्म रखती है। इसके सेवन से सर्दी-जुकाम जल्दी से नहीं हो पाते है।

               मार्गशीर्ष और पोष के महीनों में जब कड़ाके की ठंड पड़ती है शरीर थर-थर कापंने लगता है उस समय प्रातःकालीन नाश्ते के रूप में बाजरी का गर्म-गर्म सोगरा चूरकर उसमें शुद्ध घाणी का तिली का तेल मिलाकर, मिठास के लिए मालवी गुड़ मिलाकर चूरमा परिवार के सभी लोग खाते थे यह चूरमा सर्दियों में प्रतिदिन सबको खाना अनिवार्य होता था। यह चूरमा भरपेट खाने के बाद 2-3 घंटे तक भूख का अनुभव नहीं होता था। चूरमा खाने के बाद शरीर में तुरन्त ऊष्मा का संचार तो होता ही था साथ ही नई स्फूर्ति भी आ जाती थी। बाजरी, तिल का तेल और मालवी गुड़ इन तीनों फसलों के आने का समय कार्तिक पूर्णिमा के आस-पास ही होता है तथा यह तीनों वस्तुएँ ऑर्गेनिक ही होती है। गुड़ बनाने में उस समय किसी प्रकार का केमिकल काम में नहीं लिया जाता था। प्राकृतिक तरीकों से ही गुड़ बनता था। आजकल गुड़ को साफ करने के लिये कई खतरनाक केमिकल्स का उपयोग किया जाता है।  इस चूरमें का सेवन करना शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढाता है। हदय रोग, रक्त चाप, कोलेस्ट्रॉल, डायबिटिज, गठिया, जोड़ो का दर्द, सिरदर्द, अस्थमा जैसी सभी प्रकार की बीमारियों से बचाव होता है। इस चूरमें के साथ या दो घंटे बाद तक दही, दूध, छाछ आदि का सेवन वर्जित रहता है। इस ताकतवर एवं गर्म तासीर के चूरमा को खाने के बाद ठण्ड़ा पानी पीना वर्जित है। यदि प्यास लगे तो गुनगुने पानी का अल्प मात्रा में सेवन कर सकते है।

               बाजरी, गुड़ और तिल तीनों ही खाध्र पदार्थो में पौष्टिकता, स्वाद, सुंगध एवं हजारों प्रकार के औषधीय गुणों से सम्पन्न मिनरल्स और विटामिन्स पाये जाते है जिससे शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। आजकल जो बीमारियाँ जनसामान्य में बहुतायत से देखी जा रही है वे कभी बिरले लोगों में ही सुनी जाती थी। ऐसी बीमारियों से बचने के लिए बाजरा, तिल और गुड़ का गरमा-गरम चूरमा बहुत लाभदायक होता है अपनी पाचन शक्ति के अनुसार मात्रा निश्चित करके इसका सेवन करना चाहिए। विभिन्न प्रकार के मंहगे ड्राईफ्रूट्स से भी अधिक विटामिन्स और मिनरल्स इस चूरमें में पाये जाते है।

               रेगिस्तान के गाँव में रहने वालों की इतनी समृद्ध खुराक, पसीना बहाने वाला श्रम, श्रमजीवी कठिन जीवन, नियमित रूप से शारीरिक कार्यो में व्यस्त रहने, भरपूर गहरी नींद लेने व स्वस्थ दिनचर्या से रहने तथा अपनी मानसिक स्थिति को संतुलित रखते हुए जीवन जीने का एक अनूठा प्रयोग होता है। जीवन पर्यन्त मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना व दीर्घायु होना इनकी जीवन पद्वति का रहस्य है।

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