तिल के लड्डू
मार्गशीर्ष (मिगसर) के महीने में मेरी माँ पूरे परिवार के लिए तिल के लड्डू बनाकर बड़ा पीपा भरकर रख देती थी। हमारा पूरा परिवार गाँव से 4 किलोमीटर दूर ढाणी में रहता था। परिवार में माताजी के साथ हम आठ भाई-बहन, एक भाभी और दो-तीन कृषि कार्य में मदद करने के लिए रिश्तेदार रहते थे। उनको सागड़ी कहते थे। परिवार के साथ ही उनका रहना, खाना-पीना होता था। उनके कपड़े, जूते आदि का खर्च भी परिवार ही वहन करता था। उनको परिश्रमिक का 300 से 400 रूपये प्रतिवर्ष दिया जाता था। सवेरे-सवेरे दो-तीन महीने तक तिल के लड्डू चबा-चबाकर खाये जाते थे। इस समय तक तिल की फसल आ चुकी होती थी तथा उसमें डाला जाने वाला मालवी नया गुड़ भी अच्छी गुणवत्ता का आ जाता था। तिल के लड्डू में गुड़ व तिल के सिवाय कुछ भी नहीं डाला जाता था। तिल एवं गुड़ दोनो ही 100 प्रतिशत ऑर्गेनिक ही होते है।
पाँच सेर तिल को बड़ी कड़ाई में धीमी आँच पर सेका
जाता था। सेकते समय ध्यान रखा जाता था कि तिल जले भी नहीं और पूरा सिक जाये। तिल
के सिक जाने के बाद कड़ाई को चूल्हे से उतारकर तिलों को बड़ी परात में ठण्डा किया
जाता था। पाँच सेर तिल के लिए तीन सेर गुड़ को बारीक कूटकर कढ़ाई में गर्म किया जाता
था। गुड़ गर्म होने पर उसको भी परात में तिलों के साथ मिला दिया जाता था। तुरंत
दो-तीन सदस्य मिलकर जल्दी-जल्दी गुड़ व तिलों के लड्डू बनाकर दूसरी परात में ठण्डा
होने के लिए रख देते थे। ठण्डा होने पर इनको पीपे में भरकर रख देते थे। प्रातःकाल
सभी लोग अपने-अपने काम पर जाने से पहले तीन-चार लड्डू ले लेते थे और उनको खूब
चबा-चबाकर खाते थे। स्कूल जाने के लिये 4 किलोमीटर पैदल ही आना-जाना पड़ता था। हर बच्चा 2-4 लड्डू साथ ले जाते थे व रास्ते भर खाते रहते थे। पाँच-सात दिन में लड्डू समाप्त होने पर पुनः
पाँच सेर तिल के लड्डू बना दिये जाते थे। एक साथ अधिक मात्रा में लड्डू नहीं बनाते
थे। पूरी सर्दी भर पाँच-सात बार लड्डू बनते थे। सर्दी के समय में मेहमानों को भी स्वागत में तिल के लड्डू परोसे
जाते थे। छोटे बच्चे तो बडे़ चाव से जब भी इच्छा होती थी तो एक-दो लड्डू खा लिया
करते थे। मकर सक्रान्ति (14जनवरी) को तिल के
लड्डू विशेष रूप से पूजा के बाद खाये जाते थे। उसके बाद तिलों के लड्डू खाना बंद
कर देते थे। मकर सक्रान्ति मौसम के बदलते परिवेश का सूचक होता है। इस त्यौहार को
तिल सिगरात भी कहते है।
तिल और गुड़ दोनों ही सुपर फूड की श्रेणी में
आते है इनसे बने हुए लड्डू जो सर्दियों के दिनों में खाया जाने वाला उपयोगी व्यंजन
है। यह व्यंजन शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, हृदय को स्वस्थ्य रखने, नेत्र-ज्योति बढ़ाने वाला, शारीरिक सौठव को दूरस्त रखने वाला, हड्डियों को मजबूत रखने वाला, शरीर में बढ़े कॉलेस्ट्रॉल को बाहर निकालने वाला, शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने वाला,
धमनियों से रूकावट को दूर रखने वाला, व गहरी नींद लाने वाला होता है।
मेरी माताजी, दादीजी या नानीजी को यह पता नहीं था कि तिल में ऐसे क्या
तत्त्व पाये जाते है? जो रक्त में
एच.डी.एल. को बढ़ाते है और हृदय घात के खतरों को कम करता है। उनको यह भी पता नहीं
था कि तिलों में कुछ ऐसे एमिनों एसिड होते है जो चना, मूंगफली, राजमा, चवला और सोयाबीन जैसे-शाकाहारी खाद्य पदार्थो
में नहीं होते है। तिलों में उपस्थित मिथोनाइन लीवर को तन्दुरत रखता है और
कॉलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखता है। यह पेट की कब्ज को दूर करता है। तिलों में
उपस्थित पौष्टिक तत्त्व जैसे- कैल्शियम व आयरन त्वचा को कान्तीमय बनाये रखते है।
तिल हड्डियों को ताकतवर बनाता है। 100 ग्राम तिल में 100 मिलीग्राम
कैल्शियम पाया जाता है, जो बादाम की
अपेक्षा यह छः गुणा अधिक होता है। तिलों में भरपूर मात्रा में आयरन पाया जाता है
जो खून की कमी को दूर करता है। तिलों में लेसिथिन नामक रसायन पाया जाता है जो ब्लड
सर्क्यूलेशन को नियमित रखता है। तिलों में सिशमोल नामक रसायन होता है जो
एंटीऑक्सीडेंट का काम करता है तथा 50 डिग्री तापमान तक भी यह रसायन काम करता रहता है। चरक संहिता में तिलों को और
उसके तेल को सबसे अच्छा तेल माना गया है। तिलों में विटामिन बी भरपूर मात्रा में
होता है। पाचन संस्थान को स्वस्थ रखता है तथा पचयापच को बढ़ाता है तथा हाई ब्लड
प्रेशर को नियंत्रित करता है। तिल का सेवन करने से बीमार होने का खतरा कम रहता है।
आयुर्वेद का मूल सिद्धान्त भी यही है कि उचित आहार-विहार से शरीर को स्वस्थ रखा
जाये ताकि किसी प्रकार की औषधि की आवश्यकता ही न पडे़। यह सारी खूबियां हमारे
बुजुर्गो को पता नहीं थी फिर भी अनादि काल से इनका सेवन नियमित रूप से करते आ रहे
है।
तिल की
खेती राजस्थान में खरीफ की फसल के रूप में की जाती है जो शत्-प्रतिशत ऑर्गेनिक ही
होती है। दीपावली के समय इसकी नयी फसल आने पर अपने वर्ष भर की आवश्यकता के अनुसार
तिलों को साफ करके अच्छी तरह से भण्डारण कर लिया जाता था। जब भी इसके तेल की
आवश्यकता होती है घाणी पर जाकर थोड़ा-थोड़ा तेल आवश्यकतानुसार निकलवाया जाता है। तेल
को दो महीने से ज्यादा स्टोर करके नहीं रखना चाहिए।
आजकल
बाजार में छिलका उतारा हुआ तिल भी मिलता है। आगरा में तिलों का छिलका निकालने के
कई कारखानें लगे हुए है। ब्यावर में बनाये जाने वाला विश्व प्रसिद्ध तिल का पापड़
छिलका उतारे हुए तिल से ही बनाया जाता है। तिल का छिलका उतारने के बाद उसमें से
स्वाद, सुंगध, पौष्टिक तत्त्व और औषधीय गुण कम हो जाते है।
अतः सदैव तिलों को छिलके सहित ही प्रयोग में लाना चाहिए। बाजार से सफेद ,काला या मिक्स तिल अच्छी गुणवता का खरीद कर
लाना चाहिये जो आसानी से मिल जाता है। इनको साफ करके धोकर सुखाकर घर पर ही ऊपर
बताये अनुसार लड्डू बनाकर डिब्बों में रखना चाहिये। प्रतिदिन सवेरे सर्दी की ऋतु
में इनका सेवन करना लाभदायक होता है। बाजार में लड्डू विश्वसनीय नहीं मिलते है।
अतः प्रतिवर्ष आवश्यकतानुसार तिल के लड्डू घर पर ही बनाने चाहिये।
Thank you very much for information with roasted sesame seeds jaggery
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