तिल का तेल

            


 पश्चिमी राजस्थान में तिल की फसल खरीफ की सीजन में पैदा होती है। सफेद तिल और काले तिल दोनों की अलग-अलग खेती भी होती है। लेकिन कई किसान सफेद और काले तिल की मिश्रित खेती करते है। काले और सफेद मिश्रित तिलों का ही तेल निकालने, लड्डू बनाने और अन्य व्यंजन बनाने में काम में लेते हैं। बाजार में सफेद तिल का कुछ ज्यादा मूल्य मिलता है। अतः कुछ किसान सफेद तिल की खेती अलग भी करते है।

                हर गाँव में तिल का तेल निकालने के लिए बैल चलित घाणियाँ होती है। कई गाँवों में बिजली से चलने वाली घाणियाँ भी धड़ल्ले से चल रही है। ग्रामीण लोग वर्ष भर की खपत के लिए तिल का भण्डारण रखते है। तेल की जितनी आवश्यकता होती है उतना घाणी से निकलवाया जाता है। तिल का तेल सुपर फूड तो है ही साथ ही ऑर्गेनिक भी है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार तिल का तेल कई एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होता है। साथ ही इसमें मिनरल्स और विटामिन्स भी बहुतायत से पाये जाते है। तिल का तेल केवल स्वाद ही नहीं बढ़ाता, अपितु स्वास्थ्यप्रद भी होता है। हृदय के स्वास्थ्य से लेकर, डायबिटिज को कन्ट्रोल करने तक तिल का तेल लाभदायक होता है। पश्चिमी राजस्थान में तिल के तेल को ही कुकिंग ऑयल के रूप में प्रयोग करते है। यह सूरज की तेज किरणों से त्वचा को डेमेज नहीं होने देता है।

                तिल के तेल में ओमेगा-3, ओमेगा-6, ओमेगा-9 फैटी ऐसिड संतुलित मात्रा में पाये जाते है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन तत्त्वों को अपनी डाइट में रखने से दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है। तिल का तेल एल.डी.एल. कॉलेस्टॅ्राल और ट्राइग्लिसराइड्स को कम करने में मदद करता है। तिल का तेल जोड़ां का दर्द और दांतों के दर्द में भी इस्तेमाल किया जाता है। डायबिटिज के मरीजों के लिए यह रामबाण होता है। ब्लड शुगर लेवल को रेगूलेट करने में तिल का तेल मदद करता है। एक शोध के अनुसार पाया गया है कि यदि युवा तिल के तेल का सेवन करते है तो उनमें फास्टिंग ब्लड शुगर और हीमोग्लोबीन ए वन सी में कमी होती है। आजकल की लाइफ-स्टाइल में डिप्रेशन बहुत बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा है। युवाओं में मेंटल हेल्थ की कई प्रकार की समस्याएँ देखी जा रही है। ऐसी परिस्थितियों में तिल के तेल का सेवन से तनाव और डिप्रेशन से छुटकारा मिल सकता है। तेज धूप के कारण कई लोगों की स्किन डेमेज होने लगती है। रिसर्च में पाया गया है कि तेल में पाया जाने वाला एंटीऑक्सीडेंट स्किन को यूवी डेमेज बचाने में मददगार होता है। तिल के तेल में 30 प्रतिशत तक अल्ट्रॉवायलेट किरणों को रोकने की क्षमता होती है। जबकि दूसरे खाद्य तेलों में मात्र 10 से 20 प्रतिशत तक ही ऐसी क्षमता होती है।

               तिल के तेल में विटामिन-ए और आयरन काफी मात्रा में पाया जाता है। जो खून को बढ़ाने में मदद करता है। तिल के तेल में फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, कैलोरी पायी जाती है जो अन्डरवेट व्यक्तियों के लिए लाभदायक होता है। तिल के तेल में फाइट्रोस्टेरॉल अधिक मात्रा में होता है जो कालेस्ट्रॉल लेवल को कन्ट्रोल करता है तथा इम्यूनिटी पावर मजबूत करता है। तिल का तेल पचने में आसान होता है तथा स्किन पर सनबर्न को ठीक करता है। छोटे बच्चों को अधिक देर तक डायपर पहनाने से कुछ घाव हो जाते है उन पर तिल का तेल लगाने से आराम मिलता है। त्वचा को तिल का तेल मॉइस्चराइज करता है। फटी हुई एड़ियों में तिल का तेल लगाने से राहत मिलती है। तिल के तेल में एंटीइंफ्लीमेंटरी, एंटीबैक्टीरियल व एंटीफंगल तत्त्व पाये जाते है जो मुँह पर होने वाले मुहाँसों को ठीक करने का काम करते है। तिल के तेल में विटामिन ए और विटामिन ई पाये जाते है जो समय से पूर्व शरीर पर पड़ने वाली झुर्रियों और फाइन लाइन को दूर करता है। तिल के तेल की नियमित मालिस त्वचा के लिए एंटीऑक्सीडेंट का काम करती है।

                     सनातन धर्म में तिल के तेल का दीपक प्रज्जवलित करने का अलग ही महत्त्व है। पूजा के स्थान और मुख्यद्वार पर तिल के तेल का दीपक जलाने से जीवन में सदैव समृद्धि बनी रहती है। तिल के तेल का ज्योतिष में भी वर्णन किया गया है। पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी के अनुसार यदि घर में प्रतिदिन तिल के तेल का दीपक जलाते है तो घर में सकारात्त्मक वातावरण बनता है तथा नकारात्त्मकता दूर होती है और किसी भी तरह की बुरी शक्तियाँ प्रभावित नहीं करती है। किसी भी कुण्डली में सूर्य की स्थिति यदि कमजोर है तो इसे मजबूत करने के लिए तिल के तेल का दीपक जलाना लाभदायक होता है। तिल के तेल का दीपक जलाने से आत्मविश्वास, नेतृत्वक्षमता व समग्र कल्याण की बढ़ोतरी होती है। तिल के तेल का दीपक जलाने से कुण्डली में चन्द्रमा की स्थिति भी मजबूत होती है। इससे भावनात्मक सद्भाव, स्थिरता और शांति की भावना को बढ़ावा होता है। घर में संध्याकाल में नियमित रूप से तिल के तेल का दीपक जलाने से मंगल ग्रह को प्रसन्न किया जा सकता है और उसके दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है।

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