ताली बजाना : एक श्रेष्ठ व्यायाम
मंदिरों में, धार्मिक आयोजनों में और किसी भी समारोह में बीच-बीच में तालियाँ बजाने की परिपाटी चली आ रही है। माना जाता है कि ताली बजाने से वक्ता में जोश आता है तथा श्रोताओं में भी एकाग्रता आती है। ताली बजाना आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक दृष्टि से अत्यंत लाभप्रद व्यायाम है। हमारे ऋषि मुनि ताली बजाने के विभन्न फायदों को अच्छी तरह से जानते थे।
शारीरिक दृष्टि से ताली बजाने के बहुत लाभ है।
ताली बजाना एक शक्तिशाली मानसिक और शारीरिक उत्तेजक है। इससे शरीर के ऊर्जा चक्र
सक्रिय होते है और शरीर का ब्लड सर्कुलेशन सुधरता है। ताली बजाने से हथेलियों के
एक्यूप्रेशर पाइंट्स पर दबाव लगता है। जो दिमाग और शरीर को लाभ पहुँचाता है। बहुत
सारी यौगिक क्लासों में दस से बीस मिनट तक ताली बजाने का व्यायाम कराया जाता है।
साइकोलॉजी एण्ड बिहेवियर सांइस इंटरनेशनल जनरल में बताया गया है कि ताली बजाने से
पेट की समस्या, गर्दन और निचले
हिस्सों में दर्द, किडनी और फेंफडों
की समस्या से भी छुटकारा मिलता है। ताली बजाने से अच्छा शारीरिक व्यायाम होता है।
जो वजन कम करने मे भी लाभप्रद है। ब्लड सर्कुलेशन में सुधार होने के कारण हाई ब्लड
प्रेशर जैसी बीमारियों का भी नियंत्रण होता है।
पूजा और कीर्तन में
ताली आवश्यक रूप से बजाई जाती है। इससे आसपास का वातावरण सकारात्त्मक बनता है।
ताली बजाने से हाथों के साथ-साथ पूरे शरीर की ऊर्जा खर्च होती है। इससे व्यक्ति का
मूड सुधरता है। सिरदर्द, मधूमेह और अस्थमा
जैसी बीमारियों में सुबह-शाम निश्चित समय पर दो सौ बार ताली बजानी चाहिये। ताली
बजाने से हाथों में घर्षण होता है। नसें सक्रिय हो जाती है। रक्त संचार ठीक रहने
से बालों का झड़ना रूक जाता है। आयुर्वेद के अनुसार प्रतिदिन भोजन करने के बाद कुछ
देर ताली बजाना चाहिये। उससे शरीर में चर्बी इक्ट्ठी नहीं होती अतः मोटापे पर
नियंत्रण होता है। हाथ की नसों का सीधा संबंध ब्रेन से होता है। अतः ताली बजाने से
स्मरण शक्ति बढ़ती है व जोड़ां का दर्द भी ठीक होता है। ताली बजाने से शरीर में रोग
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है तथा शरीर के सारे अंग सुचारू रूप से काम करने लगते है।
गठियारोग, हाथ का लकवा या
हाथों मे कम्पन्न की बीमारी हो तो सुबह-शाम प्रतिदिन चार सौ बार ताली बजाएँ। छः
महीने तक ऐसा करने से बीमारी से छुटकारा मिल जाता है।
कई संतां का मत है
कि कीर्तन करते समय हाथ ऊपर उठाकर ताली बजाने में बहुत शक्ति लगती है। इस प्र्रकार
के कीर्तन से हमारे हाथों की रेखाएँ तक बदल जाती है। रामचरित मानस में तुलसीदास जी
ने भी ताली का सुंदर वर्णन किया है। ‘‘रामकथा सुंदर करतारी। संशय विहंग उड़न
वनहारी।’’ एक्यूप्रेशर सिद्धांत के अनुसार नियमित ताली बजाने से हथेलियों में और
अंगुलियों में जो दबाव बिन्दु दबते है, उनसे कई बीमारियाँ दूर भाग जाती है। विशेषकर कब्ज, एसिडिटी संक्रमण, खून की कमी, और सांस लेने में दिक्कत
जैसे रोगों में लाभ पहुंँचता है। ताली तब तक बजाना चाहिये जब तक की हथेलियाँ लाल
नहीं हो जाये। ताली से फोल्डर और सोल्डर, डिप्रेशन, अनिद्रा ,स्लीपडिस्क और आँखों की कमजोरी जैसी समस्याओं में काफी लाभ पहुँचता है। देर तक
और तेज ताली बजाने से शरीर में पसीना आने लगता है। जिससे शरीर से विषैले तत्त्व
पसीने के साथ बाहर आकर शरीर को स्वस्थ रखते है। ताली बजाने में गूढ़ रहस्य छिपे
हुये है। अतः हमारे ऋषि मुनियों ने इसको परंपरा का रूप दे दिया ताकि हम इसका लाभ
सदियों तक बिना किसी तर्क वितर्क के लेते रहें।
ताली बजाने से धीरे-धीरे रिजल्ट मिलता है। तुरंत रिजल्ट की
अपेक्षा नहीं करनी चाहिये। कम से कम चार महीने बाद ही रिजल्ट मिलना शुरू होता है।
यदि ताली बजाते समय हाथ ज्यादा गर्म हो जाये तो थोड़ा विश्राम भी कर लें। ताली
बजाने के दौरान पानी का सेवन नहीं करना चाहिये। ये क्रिया पूरी होने के आधा घण्टा
बाद ही पानी का सेवन करें। ताली बजाते समय सामान्य रूप से सांस लेते रहना चाहिये।
प्रजापति जी आपकी टिप्पणी एक दम सही है. ये यूनिवर्सल कसरत है जिससे दिमाग़, काया दोनों स्वस्थ रहते है.
ReplyDeleteYes sir, good old days practice is proved for good health.
ReplyDeleteVery true
ReplyDeleteशुभकामनाएं।
ReplyDeleteYour information is highly useful for wellness and social education
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