उत्तम खेती (पार्ट - 9)
1. अरविन्द सहाय पुणे की एक मल्टीनेशनल कम्पनी में जॉब करते थे। उनका मन नौकरी में नहीं लग रहा था। लाखों का पैकेज छोड़कर गाँव वापस आ गये। गाँव में पिताजी के द्वारा पारंपरिक खेती की जा रही थी। उन्होनें इस खेती में नई-नई तकनीक को जोड़कर साइंटिफक मेथर्ड से खेती करने की सोची। छतीसगढ़ के जसपुर जिले के गाँव सिरिमकेला में उनकी पुश्तैनी जमीन है। वहाँ पर उन्होनें ऐसी फसलें लगाई जो 60 दिन में बाजार में बिकने लायक हो जाती है। मक्का उनके आसपास लोग बोते थे। जिसका दाना 15 रूपये प्रतिकिलों मात्र बिकता था। लोगों को इस फसल में जितना खर्च होता था मात्र उतनी ही आमदनी होती थी।
अरविन्द सहाय ने इस देशी मक्के की जगह बेबीकॉर्न और
स्वीटकॉर्न की अच्छी वैरायटी का बीज बोया। इसके भुट्टे बड़े शहरों में व होटलों में
सूप बनाने व कई प्रकार की डिशेज बनाने में प्रयोग में लिया जाता है। परिणामतः आधा
कच्चा आधा पक्का साबुत भुट्टा ही सौ रूपये किलो बिकने लगा। इससे इनको काफी आमदनी
होने लगी। छोटे से गाँव में अरविन्द की आमदनी लोगों से छिपी नहीं रही। अतः उनके
आसपास के कई किसानों ने अरविन्द की सलाह से स्वीटकॉर्न की खेती शुरू की। बोने के 60 दिन बाद ही उत्पादन आना
शुरू हो गया। नेटर्वक मार्केटिंग के द्वारा स्वीटकॉर्न की बिक्री अरविन्द ने
ऑनलाईन शुरू की। देखते ही देखते आसपास के किसानों का व अरविन्द का खुद का
प्रोड्क्शन हाथ के हाथ बिकने लगा। आज इसके आसपास के दो सौ से अधिक किसान उसके साथ
मिलकर खेती कर रहे है व अरविन्द की कम्पनी में गाँव के करीब बीस लोगों को रोजगार
भी दिया हुआ है। तीन वर्ष के समय में ही अरविन्द प्रतिवर्ष डेढ़ करोड़ रूपये की कमाई
कर रहा है।
2. भोपाल के रहने वाले
प्रतीक बैंक में प्रोड्क्ट मैनेजर की नौकरी 15.5 लाख रूपये सालाना के पैकेज पर कर रहे थे मगर उनको खेती में
ज्यादा रूचि थी। उन्होनें नौकरी छोड़कर अपनी साढ़े पाँच एकड़ जमीन में ऑर्गेनिक
फार्मिंग शुरू की। सब्जियों की खेती से उन्हें प्रति एकड़ डेढ़ से दो लाख रूपये
प्रतिवर्ष मिलने लगे। ऑर्गेनिक फार्मिंग की तीन सीजन में तीन तरह की फसलें वह लेने
लगे।
अन्य किसानों की अपेक्षा उसका खर्च आधा भी नहीं था। उसको
रासायनिक खाद और कीटनाशक नहीं खरीदने पड़ते थे। उसकी सब्जियों की पैदावार अन्य
किसानों से अधिक हो गई थी। उसकी गुणवत्ता को देखकर मण्डी में लोग उसके माल का अधिक
दाम देकर भी हाथोहाथ खरीद लेते है। अब प्रतीक की कमाई प्रति एकड़ चार लाख रूपये
वार्षिक होने लगी। वह अपने ऑर्गेनिक फार्मिंग से बहुत संतुष्ट है। इस प्रकार खेती
को अपना रोजगार बनाकर सैकड़ों युवाओं ने अन्य लोगों के लिये प्रेरणा स्रोत का कार्य
किया। समय तेजी से बदल रहा है। जैविक खेती के प्रोड्क्ट्स को सीधे कन्ज्यूमर तक
पहुँचाने का कार्य दिनांदिन प्रगति कर रहा है।
3. मध्यप्रदेश के रतलाम जिले
के रहने वाले गोविन्दसिंह अध्यापक की नौकरी करते थे। लॉकडाउन में चार एकड़ जमीन में
इन्होनें ऑर्गेनक सब्जियाँ उगाई जिसमें ककड़ी, लौकी,
तुरई, गिल्की, करेला आदि ऐसी सब्जियाँ
लगाई। जिनका उत्पादन 60 दिन से आना शुरू
हो जाता है। गोविन्दसिंह ने गूगल और यूट्यूब से सीखकर सब्जियों की ऑर्गेनिक खेती
शुरू की।
मात्र 1,000 रूपये खर्च करके इनको 40,000 रूपये का लाभ हुआ। धीरे-धीरे इनका उत्पादन और लाभ बढ़ता
गया। अब गोविन्दसिंह इन सब्जियों को ज्यादा क्षेत्रफल में करके अधिक लाभ कमा रहे
है।
4. बम्बई के इंजीनियर वेंकट
अय्यर 2004 में 17 साल की कॉपोरेट नौकरी
छोड़कर खेती करने के लिये अपने गाँव में पहुँचे। उनको पहले वर्ष में नुकसान हुआ।
लेकिन हिम्मत नहीं हारी वेंकट अय्यर अपने खेत में ऑर्गेनिक रूप से परंपरागत फसलों
की खेती करने लगे। चावल की दो किस्में लाल और भूरी जिनको लोग करीब-करीब भुला चुके
थे, वापस खेती शुरू की। जिससे
उनको अच्छी इनकम होने लगी। तिलहन की खेती में उन्होनें तिल, मूंगफली और सरसों को
चुना। ऑर्गेनिक फार्मिंग से तैयार किये इनके तिलहन अच्छी कीमत पर बिकने लगे। इसके
साथ ही जैविक खेती द्वारा तुलसी की खेती करने लगे। तुलसी के पत्तों से हर्बल टी
बनाने वाली कम्पनियाँ इनके माल की क्वालिटी के आधार पर इनको तुलसी के पत्ते बाजार
से दुगुने रेट में खरीदने लगे।
खेती का काम करने के बाद भी इनके पास बहुत समय बचता था। इस
समय को वे अन्य किसानों को ऑर्गेनिक फार्मिंग की ट्रेनिंग देते है। इतना ही नहीं
उनके कृषि उत्पादन को मार्केटिंग में भी पूरा सहयोग करते है। पति-पत्नी दोनों अपने
इस जीवन से नौकरी की अपेक्षा ज्यादा प्रसन्न अनुभव कर रहे है। खेती के साथ-साथ
इनको पढ़ने-लिखने का भी शौक है। खेती के क्षेत्र में आने के बाद जो इनको अनुभव हुये
उन पर आधारित एक पुस्तक (मूव ऑवर माइक्रोचिप्स) में उनको संकलित किया। इस पुस्तक
में से महाराष्ट्र राज्य बोर्ड द्वारा ग्यारहवीं कक्षा की अंग्रेजी पाठ्यपुस्तकों
में एक चेप्टर को प्रकाशित किया गया। जिसका नाम था ‘‘द काल ऑफ द सॉइल, इसेंट ऑफ राइस‘‘।
इस प्रकार कई लोग आजकल वर्तमान में कर रहे नौकरियों को
छोड़-छोड़कर खेती, बागवानी, औषधीय पौधों की खेती, पशुपालन आदि क्षेत्र में
नये तरीकों से प्रवेश करके अपना भविष्य उज्जवल बना रहे है। उनके जीवन में इस
प्रकार के व्यवसाय से सुख,
वैभव, समृद्धि और आत्म संतुष्टि
मिल रही है।
युवाओं के लिए प्रोत्साह वर्धक लेख है।
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