उत्तम खेती (पार्ट-8)
हर व्यक्ति की सफलता का अलग-अलग पैमाना होता है। कई पढ़े-लिखे लोग बड़ी-बड़ी कम्पनियों में लाखों के पैकेज पर नौकरी करने के उपरान्त भी उनके मन में कुछ खलने लगता है। उनके मन में आया कि अपने गाँव की और वापस लौटकर कुछ नये तरीके से खेती की जाए और उसको अपने जीविकोपार्जन का साधन बनाकर गाँव के लोगों को भी प्रशिक्षण दिया जाये ताकि उनका जीवनस्तर भी ऊपर उठ सके। कुछ लोगों ने बड़े पदों की नौकरियाँ छोड़कर खेती की और कदम रखा। जिसमें वे सन्तुष्टि का अनुभव कर रहे है।
1. गुजरात के नडियाद के रहने
वाले विवेक शाह और उसकी पत्नी वृंदा अमेरिका की सिलिकान वेली में एॅम्पलोयी थे।
भारत आकर उन्होनें ऑर्गेनिक फार्मिंग और मेडिशनल प्लांट की खेती के दो-दो महीने के
ट्रेनिंग प्रोग्राम किये। नडियाद में हाईवे के पास करीब 10 एकड़ जमीन में ऑर्गेनिक
फार्मिंग शुरू की। जिसमें बाजरा, गेंहूँ, ज्वार आदि खाद्यान्न, केला,
पपीता, जामुन, आम जैसे अनेक फलदार पौधे
और धनिया, बैंगन, टमाटर, मिर्च, ब्रोकली, केबेज जैसी अनेक सब्जियों
की फसलें तथा तुलसी, लेमनग्रास जैसी
अनेक मेडिशनल प्लांट की खेती शुरू की। अपनी फसलों को बीमारियों एवं कीटों से बचाने
के लिए ऑर्गेनिक तरीकों के साथ-साथ इंटरक्रापिंग और मल्टीटायर एग्रीकल्चर सिस्टम
को अपनाया। तालाब बनाया और उस तालाब पानी को स्वच्छ रखने के लिये विभिन्न जलीय
पौधों को भी लगाया। इस प्रकार के समन्वित कृषि कार्य से वे आत्मनिर्भर तो है ही
साथ ही आत्म संतुष्ट भी है।
विवेक ने बताया कि मेरे गाँव के अन्य किसानों को भी इस मॉडल
से खेती करना सिखाया, जिससे उनकी कमाई
बढ़ने लगी। गाँव में आर्थिक रूप से सम्पनता आने लगी और लोगों में सहयोग की भावना
बढ़ी।
2. उत्तर प्रदेश के इटावा के
रहने वाले रविपाल कोटक महिन्द्रा जैसी कम्पनी से नौकरी छोड़कर गाँव आकर खेती करने
का मन बनाया। गाँव में आने पर पता चला कि यहाँ नीलगाय का बहुत आतंक है जो किसानों
की सारी फसलें चट कर जाती है। उसने ऐसी फसल चुनी जो नीलगाय नहीं खाती है।
रवि ने प्रयोगात्मक रूप से दो-तीन बीघा के खेत में उच्च
गुणवत्ता वाले गेंदे की खेती शुरू की। गेंदे की फसल को नीलगाय नुकसान नहीं
पहुँचाती है। यह आइडिया उनका कामयाब रहा। 3,000 रूपये खर्च करने के बाद उन्हें चार महीनों में 40,000 रूपये का फायदा हुआ।
इनका आइडिया हिट गया और आसपास के पाँच गाँवों के 12 किसान उनसे गेंदे की खेती सीखकर फूलों की खेती
कर रहे है। इस खेती से उनको परंपरागत फसलों की अपेक्षा कई गुना अधिक कमाई हो रही
है तथा किसी प्रकार की जोखिम नहीं है। गेंदे के फूल को रासायनिक खाद व कीटनाशक की
आवश्यकता नहीं होती है तथा परंपरागत फसलों की अपेक्षा सिंचाई के लिये पानी भी कम
लगता है। इस फसल को कोई जानवर नुकसान नहीं पहुँचाता। अतः रात को किसान आराम से
सोता है। सबके फूलों की मार्केटिंग के लिये रवि ने एक नेटवर्क डेवलप कर लिया और
इंटरनेट के द्वारा विभिन्न शहरों में अपने ग्राहकों से संपर्क करके फूलों की
बिक्री अच्छे दामों में कर रहे है। इस कारोबार में रवि के साथ-साथ उसके साथ काम
करने वाले किसानों को भी उम्मीद से अधिक आमदनी हो रही है तथा आत्म संतुष्टी से
जीवन जी रहे है।
3. हरियाणा जींद के रहने
वाले नीरज ढांडा शहर में डेवलपर जॉब करते थे। लेकिन उसमें उनका मन नहीं लग रहा था।
किसी काम के सिलसिले में वे रायपुर (छतीसगढ़) गये वहाँ उन्होनें विशेष प्रजाती के
अमरूद की खेती का पता चला। यह वैरायटी थाइलैण्ड से इंपोर्ट की गई थी तथा कलकत्ता
की एक नर्सरी इन पौधों को सप्लाई करती है। थाई किस्म में अमरूद की खेती करने वाले
किसानों से संपर्क करने पर उससे मिलने वाली कमाई के बारे में जानकारी लेकर अत्यंत
प्रभावित हुये।
उन्होनें अपनी पुश्तैनी 7 एकड़ जमीन में थाई किस्म
के 1900 पौधे लगाए। एक
पौधे से करीब 50 किलो फल मिलने
लगा। मण्डी में बेचने पर इन अमरूदों की कीमत 50 से 80 रूपये किलो मिल
रही थी।
नीरज की देखादेखी उसकी
सलाह से आसपास के किसान भी थाई किस्म के अमरूद का रोपण लगाने की इच्छा प्रकट की।
आसपास के दो-तीन गाँवों के करीब 40 किसानों ने थाई अमरूद के पौधां का रोपण किया। नीरज ने
नेक्स्ट फार्म नाम की कम्पनी खोलकर ऑनलाईन रिटेलिंग का काम शुरू कर दिया। उनके पास
दिल्ली, पंचकुला, गाजियाबाद, चंड़ीगढ़ आदि शहरों से
नियमित आर्डर आने लगे। जैविक खेती से तैयार किये हुये अमरूद की साईज, स्वाद, कलर आदि कंज्यूमर को
एप्पल से भी बढ़िया लगने लगी। आजकल इनका थाई अमरूद दुकानदारों के साथ-साथ 2000 से अधिक व्यक्तिगत
कंज्यूमर्स तक भी ऑनलाईन रिटेलिंग के द्वारा 140 रूपये प्रतिकिलों बिक रहा है। कई लोग इनकी कम्पनी में इस
नेटवर्क को सफलतापूर्वक संचालित करने के लिये लगे हुये है। जिन्हें अच्छा रोजगार
मिल गया है।
Sir, very useful information.
ReplyDeleteThank you sir.
V.nice knowledge about modern farming
ReplyDeleteThank u for information sir
ReplyDeleteExcellent
ReplyDelete