उत्तम खेती (पार्ट-6)

 


1.                 हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के सीली गाँव के रहने वाले मनदीप वर्मा बैंगलोर में नामी आईटी कम्पनी विप्रो में जॉब कर रहे थे। दिल्ली और बैंगलोर जैसे बडे़ शहरों में मनदीप को लाखों का पैकेज मिल रहा था। लेकिन अंदर ही अंदर वे कुछ कमी महसूस कर रहे थे। उनकी इच्छा थी कि वापस अपने गाँव जाकर कुछ नया करना चाहिये। विभिन्न कृषि वैज्ञानिकों के साथ-साथ प्रसिद्ध नौणी विश्वविद्यालय सोलन से उन्होनें सलाह ली। उनकी योग्यता व क्षमता को देखकर वहाँ के हार्टीकल्चर विभाग के वैज्ञानिकों ने कीवी की जैविक खेती करने की सलाह दी। इसी युनिवर्सिटी से उन्हें कीवी का प्लांटिंग मेटेरियल मिल गया। जिसे उन्होनें अपनी पुश्तैनी उबड़-खाबड़ जमीन को तैयार करके लगा दिया।

उनके आसपास सभी किसान रासायनिकों के सहारे से खेती कर रहे थे। उनको प्राकृतिक खेती के विशेषज्ञ सुभाष पालेकर से शिक्षा लेकर कीवी और सेव की खेती ऑर्गेनिक तरीकों से शुरू की। देशी गाय का गोबर और मूत्र, पेड़-पौधों की पत्तियाँ आदि का कम्पोस्ट करके उस खाद को अपने बगीचे में उपयोग करना शुरू किया।

इस समय मनदीप के 20 बीघा खेत में कीवी की एलिसन और एवर्ड नाम की दो किस्में लगी हुई है। जिसमें 700 पौधां से हर वर्ष 7 से 8 टन कीवी की पैदावार मिल रही है। कीवी और सेव से अच्छी उत्पादन होने के कारण 40 लाख रूपये वार्षिक से ज्यादा ही शुद्ध लाभ मिल रहा है। प्राकृतिक खेती होने के कारण पूरे बगीचे में मात्र बीस हजार रूपये वार्षिक लागत आ रही है। उनका कहना है कि पढ़े-लिखे युवा सही तकनीक, ज्ञान और कौशल का प्रयोग करके खेती में वे निश्चय ही सफल होंगें।

मनदीप वर्मा ने अपनी उपज स्वास्तिक फार्म नाम से ब्राणि्ंडग करके स्थानीय मण्डियों के अतिरिक्त कई राज्यों में बेच रहे है। जैसे-जैसे पौधां की आयु बढ़ रही है वैसे -वैसे उन्हें पैदावार भी अधिक मिल रही है। आगे चलकर उन्हें इसी बगीचे से 40 टन वार्षिक कीवी का उत्पादन मिलने की आशा है।

मनदीप वर्मा ने अपने प्रोड्क्ट की मार्केटिंग और ब्राडिंग के लिये एक वेबसाइट भी बना रखी है। जिसके द्वारा वह देशभर के ग्राहकों के ऑर्डर पूरे कर रहे है। वे सदैव सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते है। उनकी वेबसाइट है।

https:/swaastikfarms.com//

2. परमजीत सिंह (लुधियाना) ग्रेजुएशन पूरी करके मैकेनिकल सेक्टर में तीन वर्ष तक नौकरी की। लेकिन वे इससे संतुष्ट नहीं थे। वे अपने परिवार के साथ खेती को नवीनतम टेक्नोलॉजी से आगे बढ़ाना चाहते थे। उन्होनें खेती शुरू करने से पहले फ्लोरिकल्चर, हार्टीकल्चर और जैविक खेती को सीखा। इसके साथ-साथ हैदराबाद जाकर इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट्स रिसर्च से मिलेट्स की ऑर्गेनिक खेती का प्रशिक्षण लिया। इसके साथ-साथ इनकी प्रोसेसिंग और नये-नये प्रोड्क्टस के बारे में जानकारी ली। उनका विचार है कि मिलेट्स के सेवन से लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाकर दवाईयों पर निर्भरता कम की जाये और जैविक खेती को अपनाकर जमीन, मिट्टी और पानी को प्रदूषित होने से बचाया जाए।

परमजीत ने मोटे अनाज रागी, बाजरा, सामा, कोदो आदि मिलेट्स की खेती करने लगे और उनके विभिन्न प्रोड्क्टस बनाकर सीधे ग्राहकों तक पहुँचाने लगे। उन्होनें ‘‘पन्नू नेचुरल फार्म’’ नाम से अपना खुद का आउटलेट फार्माटिव स्टोर शुरू किया। इस स्टोर में विभिन्न प्रकार के मिलेट्स का आटा, दलिया, कुकीज आदि के साथ-साथ सीजनल आचार भी बनाकर बेचने लगे। देशभर में होने वाले एग्जीबिशनस और मेलों में भाग लेकर अपने प्रोड्क्टस का प्रचार-प्रसार करते है। उनका मानना है कि मिलेट्स की ऑर्गेनिक खेती और उसके प्रोड्क्ट बनाकर बेचने से परंपरागत खेती की अपेक्षा बहुत अधिक मुनाफा होता है। उन्होनें अपने आस-पास के किसानों को भी जैविक तरीकों से मिलेट्स की खेती का प्रशिक्षण देकर उनका प्रोड्क्ट भी ज्यादा कीमत देकर खरीदते है। उन्होनें किसानों को संदेश देते हुये कहा कि इस प्रकार की खेती करने से पहले हर किसी को ट्रेनिंग लेनी चाहियें तथा अपनी उपज का वेल्यू एडीसन करके रेडी टू यूज प्रोड्क्टस बनाकर कन्ज्यूमर को डायरेक्ट बेचना चाहिये। आज के जमाने में पढे़-लिखे किसान ही नई-नई टेक्नोलॉजी अपनाकर आगे बढ़ सकते है।

3.                 अजय नाईक कम्प्युटर इंजीनियर है। 10 साल तक आईटी सेक्टर में जॉब करके उन्होनें सब्जियों की ऑर्गेनिक खेती करने की मन में ठानी। वे चाहते थे कि लोगों को रासायनिक खाद और कीटनाशक के बिना इस्तेमाल किये पौराणिक तरीके से उगाई गई गुणवत्ता वाली सब्जियाँ उपलब्ध कराई जाये।

इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये उन्होनें इनडोर, वर्टीकल  हाईड्रोपोनिक्स फार्म बनाया। इसमें मिट्टी का प्रयोग बिल्कुल नहीं होता है। पानी भी परंपरागत खेती की अपेक्षा मात्र 10 प्रतिशत ही खर्च होता है। पानी में ही फसल की जरूरत के अनुसार ऑर्गेनिक पोषक तत्त्व मिलाये जाते है। इस तकनीक से वर्षपर्यन्त सभी सब्जियों की खेती संभव है। सब्जियों की गुणवत्ता भी अधिक होती है। हाइड्रोपोनिक्स की तकनीक से पैदा की गई सब्जियाँ स्वस्थ, दिखने में आकर्षक होती है और पर्यावरण को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता। इनका कहना है कि इंजीनियरिंग और सॉफ्टवेयर की डिग्री से उन्हें खेती करने में ज्यादा मदद मिली और अगली हरित क्रांति लाने के लिये इंजीनियरिंग बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है।

इस समय उनके पास अपने आस-पास के मोहल्लों के एक हजार से अधिक उपभोक्ता जुड़े हुये है। उनकी आवश्यकता के अनुसार ताजी जैविक सब्जियाँ सप्लाई करके वे नौकरी से कई गुना अधिक पैसा कमा रहे है। जो पूरा का पूरा आयकर से मुक्त है। इस उद्यान को देखकर मन को बड़ा सुकून मिलता है।

अगले ब्लॉग में इस प्रकार के कई एन्टरप्रेन्योर्स की सफलता की कहानियाँ बतायेंगें जिन्होनें उच्च शिक्षा पाकर ऊँची-ऊँची नौकरियों को भी छोड़कर खेती को आधुनिक तरीके से करके अपना नाम रोशन किया है।

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