उत्तम खेती (पार्ट-5)

                     


कनाडा में पंजाब के किसानों ने जाकर खेती में बहुत तरक्की की है। आज कनाडा के हर क्षेत्र में पंजाबी लोगों का दबदबा है। वहाँ की इकोनॉमी में पंजाब के लोगों का बहुत बड़ा योगदान है। अतः कनाडा को ‘‘मिनी पंजाब‘‘ भी कहते है।

            आजकल पंजाब के लोग खेती करने के उद्देश्य से ऑस्ट्रेलिया जाकर बस रहे है। ऑस्ट्रेलिया की सरकार दक्षिण ऑस्ट्रेलिया के आंतरिक इलाकों की जमीन जो कभी इस्तेमाल नहीं की गई लेकिन बहुत उपजाऊ जमीन है, उसको मात्र 35,000 रूपये प्रति एकड़ में विदेशी किसानों को बेच रही है। कुछ दाम इन दिनों बढ़ गये है लेकिन फिर भी बहुत सस्ती है। क्वीनसलैण्ड इलाके में एक से डेढ़ लाख रूपये प्रति एकड़ तक खेती की जमीन उपलब्ध है। कई देशों में लीज पर खेती की जमीन तो ले सकते है लेकिन वहाँ पर अपना कंस्ट्रक्शन नहीं करा सकते। लेकिन ऑस्ट्रेलिया में आप अपनी जमीन पर किसी प्रकार का टेम्परेरी या परमानेंट कंस्ट्रक्शन करके रह सकते है। कनाडा और मोजाम्बिक जैसे देशों में कई तरह की परेशानी सरकार की और से आने लगी है। अतः पिछले कुछ वर्षो से वहाँ के हजारों किसान फार्मिग छोड़कर ऑस्ट्रेलिया आकर खेती कर रहे है।

                     गाँव में 2 एकड़ जमीन और एक प्लॉट बेचकर भल्ला परिवार ने ऑस्ट्रेलिया के किंगलेक इलाके में 400 एकड़ कृषि भूमि खरीदकर खेती शुरू की। इसके बाद उन्होनें वहाँ और इंवेस्टमेंट किया। परिणामतः इस समय उनके पास ऑस्ट्रेलिया में 1200 एकड़ कृषि भूमि है। पंजाब और हरियाणा के लगभग 14000 किसानों ने ऑस्ट्रेलिया में कृषि भूमि खरीदी है। वहाँ पर भारतीय किसानों की सिंग डॉट नाम से अपनी कम्यूनिटी संस्था बनी हुई है। इसके हजारों सदस्य है।

                     ऑस्ट्रेलिया क्षेत्रफल में भारत से लगभग ढ़ाई गुना बड़ा है। लेकिन वहाँ की जनसंख्या भारत से मात्र 7 प्रतिशत है। वहाँ की लगभग 80 प्रतिशत कृषि भूमि अनयूज्ड पड़ी है। किसानों की कमी है। वहाँ की सरकार खुद चाहती है कि इतने बडे़ लैण्ड बैंक का उपयोग भारत जैसे देश के मेहनती किसान आकर करें। ऑस्ट्रेलिया में खेती के लिये छोटे-मोटे ट्रेक्टरों की बजाय सेटेलाइट से चलने वाली आधुनिक मशीनें काम करती है। सारी खेती को नियंत्रित करने के लिए हवाई जहाज और ड्रोन्स का उपयोग होता है। सारी फसलों का बीमा कराया जाता है। वहाँ पर जरूरी नहीं है कि बहुत बड़ा इंवेस्टमेंट किया जाये। छोटे किसान भी वहाँ पर भारतीय किसानों की मदद से 10 एकड़ तक की लैण्ड खरीद सकते है।

                    चीन भी अपने लिये खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ाना चाहता है। कई देशों में जमीन खरीद कर या लीज पर लेकर बड़े पैमाने पर खेती कर रहा है। लेकिन चीन की विस्तारवादी नीति का दूसरे देश दुष्परिणाम भुगत रहे है। अतः ऑस्ट्रेलिया की सरकार चीन के अपेक्षा भारत को प्राथमिकता दे रहे है। भारत के किसानों को इस अवसर का लाभ लेना चाहिये।

                     पंजाब कृषि विश्व विद्यालय में ऑस्ट्रेलिया में खेती करने के लिये कोर्स भी उपलब्ध करवाया जा रहा है। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (च्।न्) ऑस्ट्रेलिया में फ्लोरीकल्चर और हार्टीकल्चर फसलों की खेती के लिये ट्रेनिंग प्रोग्राम भी चला रही है। इसको सीखकर वहाँ पर सफलतापूर्वक खेती कर सकते है।

                     भारत में दाल की सदैव कमी रहती है। प्रतिवर्ष भारी मात्रा में हमें दाल का आयात करना पड़ता है। ऑस्ट्रेलिया में चना, अरहर, मसूर, मूंग आदि दलहनी फसलों की खेती से अच्छी पैदावार होती है। दालों का उत्पादन करके वहाँ से भारत को निर्यात कर सकते है जो हमारे देश की मांग है।

                    ऑस्ट्रेलिया का जलवायु और भूमि विभिन्न प्रकार की औषधीय और सुगंधित फसलों की खेती के लिये उपयुक्त है। वहाँ की वर्जन और ऑर्गेनिक जमीन में जड़ी-बूटीयों का उत्पादन बढ़िया क्वालिटी की हो सकता है। जिसे पूरे विश्व में निर्यात करके बहुत अधिक लाभ प्राप्त कर सकते है। इस प्रकार पढ़े-लिखे लोगों का वहाँ जाकर खेती करना बड़ा लाभदायक व्यवसाय है। आने वाला समय मैकेनाइज्ड खेती का ही होगा। नेचुरल प्रोड्क्टस की मांग कभी भी कम नहीं होगी। यह बहुत ही अच्छा अवसर ऑस्ट्रेलिया में खेती करने का है। भारत के कई किसान इथोपिया, सूडान और यूगांडा जैसे देशों में भी जाकर बड़े स्तर पर अर्थात् हजारों एकड़ में खेती कर रहे है। लेकिन ऑस्ट्रेलिया में वहाँ से भी अधिक संभवनाएँ है। आवश्यकता है इन संभावनाओं को हकीकत में बदलने की।

Comments

  1. Sir, good information to young agri entrepreneurs. Scope in other countries.
    Thank you sir.

    ReplyDelete
  2. ज़ोरदार जानकारी है, इस बात को भारत के बहुत कम लोग जानते हैं । जानकारी के लिए धन्यवाद ।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

जल संरक्षण की जीवंत परिपाटी

बाजरी का धमाका: जी-20 सम्मेलन मे

लुप्त होती महत्त्वपूर्ण पागी कला