अमृत फल : आंवला

                     


आयुर्वेद में आंवला को अमृत एवं दिव्य फल कहा जाता है। दीपावली के बाद कार्तिक सुदी नवमी को आंवला नवमी का व्रत रखकर महिलायें आंवले के पेड़ की पूजा करती है और घर से खाना बनाकर ले जाते है व आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करते है। कहा जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का सबसे प्रिय फल है और आंवले के फल में सभी देवी-देवता निवास करते है। ऐसा माना जाता है कि आवंला नवमीं से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ में निवास करते है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से संतान की प्राप्ति होती है और 108 बार इसकी परिक्रमा करने से सभी मनोकामनाएँ पूरी होती है। आंवला नवमी पर किया गया दान, पुण्य कई गुना अधिक लाभ देता है।

                    आयुर्वेद में आंवला आयु बढ़ाने वाला व अमृत के समान माना गया है। आंवले का चूर्ण चीनी के साथ मिलाकर खाने या पीनी के साथ मिलाकर पीने से एसिडिटी मिटती है तथा पाचन संबंधी सभी बीमारियाँ दूर होती है। आंवले से शरीर में लाल रक्त कणों का निर्माण होता है अतः खून की कमी को दूर करता है। आंवले का पाउडर प्रतिदिन एक चम्मच शहद के साथ लेने से आँखों की रोशनी बढ़ती है। इसका लम्बे समय तक सेवन करने से बाल काले व घने बने रहते है। आंवला विटामिन सी का सर्वोतम प्राकृतिक स्रोत है जो गर्म करने पर भी नष्ट नहीं होता है। आंवले का नियमित सेवन करने से दिमाग में तरावट और शक्ति मिलती है।

                    आंवला अकेला ऐसा फल है जो शरीर की वात, पित और कफ तीनों रोगों में फायदेमंद है। आंवला हृदय और त्वचा के लिये अत्यंत गुणकारी होता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण पाये जाते है जो हड्डियों को मजबूत करते है, मोटापा दूर करता है, आँखों की रोशनी बढ़ाता है, त्वचा को चमकीली बनाता है, पाचन संस्थान को स्वस्थ करता है, जुकाम और खांसी में फायदा करता है और शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।

आंवला शरीर से टॉक्सिन्स को बाहर निकालने में, खून को साफ करने में और आँखों की जलन और खुजली में लाभदायी है। आंवला में मौजूद विटामिन सी, एंटीऑक्सीडेंटस और ओमेगा-3, फैटी एसिड नेत्रज्योति को बढ़ाते है। बालों और त्वचा के लिये आंवला अतिउत्तम कहा गया है। आंवले का हेयर पैक और फेस पैक इनमें नई जान लाता है।

                     आंवले का आध्यात्मिक और वास्तुशास्त्र में भी बड़ा महत्त्व कहा गया है। शुक्ल पक्ष की पंचमी को आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर जो महिला पूजा करती है वह जीवन भर सौभाग्यशाली बनी रहती है। अक्षय नवमी के दिन आंवले के नीचे बैठकर भोजन करने पर रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और दीर्घायु लाभ मिलता है। घर में बड़े पेड़ पूर्व दिशा में लगाना उचित नहीं होता है लेकिन आंवले का पेड़ उत्तर या पूर्व दिशा में भी लगाने से सकारात्त्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। उस घर में बच्चों की स्मरण शक्ति बढ़ती है और पढ़ाई में मन लगता है। बच्चों की पुस्तकों में आंवले की पत्तियों को पीले वस्त्र में बांधकर रखने से उनका मन पढ़ाई में लगता है।

                     ज्योतिष के अनुसार जिस व्यक्ति का बुध ग्रह पीड़ित हो उसे शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार को स्नान के जल में आंवला, शहद, गोरोचन, स्वर्ण, हरड़, बहेड़ा एवं चावल डालकर निरन्तर पन्द्रह बुधवार तक स्नान करना चाहिये। ऐसा करने से जातक का बुध ग्रह शुभ फल देने लगता है। जिनका शुक्र ग्रह पीड़ित हो और उन्हें अशुभ फल दे रहा हो वे लोग शुक्रवार को हरड़, इलायची, बहेड़ा, आंवला, केसर, मेन्सिल और सफेद फूल जल में डालकर स्नान करने से लाभ मिलता है।

                     आंवला पूरे भारतवर्ष में उगाया जाता है। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश का प्रतापगढ़ जिला, बनारस, राजस्थान में पुष्कर, भीलवाड़ा, सिरोही, पाली व उदयपुर जिलों में, मध्यप्रदेश के जंगलों में, उत्तरी गुजरात के मेहसाना, बड़गांव, वडनगर आदि जिलों में बहुत अधिक मात्रा में आंवला पैदा होता है। वैसे तो दक्षिण भारत के चारों प्रांतों में थोड़ा बहुत आंवला पैदा होता ही है लेकिन पिछले कुछ वर्षो से तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में भी इसका प्लांटेशन बड़ी मात्रा में किया गया है।

                    आंवला जंगलों में आदिकाल से बहुत मात्रा में पाया जाता है। बनारस का बनारसी आंवला बहुत प्रसिद्ध होता था। आचार्य नरेन्द्रदेव कृषि विश्व विद्यालय, कुमारगंज (अयोध्या) के उद्यान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर आर. के. पाठक ने आंवले की नई-नई किस्में निकालने का बहुत बड़ा काम किया। उनके द्वारा विकसित, कृष्णा, कंचन, चकैया, छ।7, छ।9 आदि किस्में आजकल पूरे भारत में लगाई जा रही है। इन किस्मों में उत्पादन तो अधिक आता ही है साथ ही गुणवत्ता और साईज भी अच्छी होती है।

                     आयुर्वेदिक औषधीयों में सबसे अधिक आंवला च्यवनप्राश बनाने में काम आता है। इसके साथ कई प्रकार की औषधीयों में आंवला डाला जाता है। दैनिक उपयोग के लिये घरों में आंवले का मुरब्बा, आचार, चटनी, कैण्डी, जूस आदि लम्बें समय से बनाये जा रहे है। जिनका उपयोग वर्ष पर्यन्त किया जाता है। इनकी डिमाण्ड बहुत अधिक बढ़ जाने के कारण कई शहरों में ये सारे प्रोडेक्ट बडे़ पैमाने पर फैक्ट्रीयों में बन रहे है। जिनकी ब्रिकी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।

                     इस प्रकार आंवला हाइपरटेन्सन, डायबिटीज, मानसिक बीमारियाँ, वजन कम करना, नेत्रज्योति बढ़ाने, त्वचा को स्वस्थ रखने के साथ-साथ कैंसर में भी लाभ पहुँचाता है। आंवला किसी भी रूप में खाया जाये सदैव लाभकारी ही रहता है। इसके बने प्रोड्क्ट आजकल निर्यात भी खूब हो रहे है। अतः इसका प्लांटेशन प्रतिवर्ष बढ़ रहा है। प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश में सबसे ज्यादा नर्सरी आंवले की है। वैसे इसके ग्राफ्टेड पौधे हर प्रांत में नर्सरी वाले तैयार कर रहे है जो आसानी से मिल जाते है। आंवले के महत्त्व को देखते हुए भारत सरकार के नेशनल मेडीशनल प्लांट बोर्ड, नई दिल्ली ने इसके विकास के लिये अनुदान की कई योजनाएँ बनाई है। साथ ही हर राज्य के स्टेट हार्टीकल्चर डिपोर्टमेन्ट भी आंवले की खेती में किसानों की सहायता व मार्गदर्शन करते है। आंवले के प्रोड्क्ट बनाने के लिये फूड प्रोसेसिंग इण्डस्ट्रीज के लिये भी भारत सरकार के फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय द्वारा भी 40 से 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है व बैंकों द्वारा भी किसानों और उद्यमां को ऋण प्रदान किया जाता है।

Comments

  1. बहुत ही उपयोगी एवम् सराहनीय जानकारी।

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