रेगिस्तान में कृषि पर्यटन (एग्रोटूरिज्म)

       


         पूरे विश्व के लोग भारत भ्रमण के लिये नियमित रूप से आते रहते है। विशेषकर राजस्थान में पुराने राजपुताना के गढ़, किले, झालरें, पुरातन मंदिर आदि देखने के लिये बार-बार आते है। सैकड़ों साल पुरानी यहाँ की स्थापत्य कला देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते है। यहाँ के लोगों की वेशभूषा, रहन-सहन, खानपान, रीति-रीवाज आदि को विदेशी लोग बड़े उत्साह के साथ समझने की कोशिश करते है। पश्चिमी राजस्थान की हस्तकला, कुटीर उद्योग उनके मन को भाता है। सितम्बर से लेकर मार्च तक यहाँ की होटलें और पर्यटक स्थल विदेशी मेहमानों से भरे रहते है। पूरे राजस्थान में वन्यजीवों का शिकार करना कानूनी अपराध है। यहाँ पर गाँवों में हिरण, चिंकारा और नीलगाय आदि विचरण करते रहते है। पालतू पशु, गाय, भेड़, बकरी व ऊँटों के झुण्ड लेकर चरवाहे चराने के लिये ले जाते है। इतनी बड़ी संख्या में पशुधन को एक जगह देखना उनके लिये आश्चर्य की बात है। दिनोंदिन पर्यटन उद्योग बढ़ता जा रहा है। राजस्थान में पर्यटन उद्योग आय का काफी बड़ा स्रोत है।

        दर्शनीय स्थानों को देखने के साथ-साथ वन विभाग द्वारा संचालित इकोटूरिज्म, उदयपुर की झीलें, जैसलमेर व शेखावटी की नक्शीदार हवेलियाँ, जोधपुर में जल संरक्षण के लिये सैकड़ों वर्षों पहले बनाये गये तालाब व झालरे, सर्दियों में साईबेरिया आदि से प्रजनन के लिये यहाँ के तालाबों पर लाखों की संख्या में विभिन्न प्रकार के आगन्तुक पक्षियों को देखने, सम व औसियाँ के रेतीले धोरे देखने की इच्छा बार-बार होती है। पहाड़ की चोटियों पर स्थित राजाओं के किले और उसमें बने म्यूजियम बड़ी रूचि से देखते है। मारवाड़ की अतिथि सत्कार सेवा विदेशी मेहमानों को अत्यधिक प्रभावित करती है।

        कृषि पर्यटन पश्चिमी राजस्थान के लिये एक बहुत बड़ी संभावनाओं का क्षेत्र है। उसमें यहाँ के किसानों का असली जीवन झलकता है। खेत में यहाँ की फसलें लहलहा रही हो, उसके बीच सुन्दर सी ढाणी हो, पशुधन जैसेः-गाय और बकरी आदि दुधारू जानवर अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ रहते हो, किसान परिवार के बच्चे मिट्टी में लकड़ी के खिलौनों से खेल रहे हो, भयंकर सर्दी में भी कम से कम कपड़ों में अपना निर्वाह करते हो आदि दृश्य उनको बहुत भाते है। खेतों में ऑर्गेनिक फसलें अपने-अपने सीजन में उगती रहती है, उन फसलों के बीच में काचरा, मतीरा आदि खाने के फल भी बहुतायत में होते है। यहाँ के किसान का पुराने मकान तथा घासफूस व मिट्टी के मकान प्राकृतिक रूप से बहुत अच्छे लगते है। चूल्हे पर मिट्टी के बर्तनों में बनता हुआ खाना देखकर मेहमानों का मन भी उसका स्वाद चखने के लिये लालायित रहता है। चटकीले रंगों के कपड़े और शरीर के सभी अंगों पर लदे हुये गहनों को देखकर उसकी फाटोग्राफी  कैमरों में कैद करते है। वह ढाणी यदि किसी आर्टीजन की हो तो वह खुशी से झूम उठते है। कुम्हार की ढाणी में उसको मिट्टी के चाक पर बर्तन और तरह-तरह के खिलौनें बनाते हुये, उनको पकाते हुये, उन पर चित्रकारी करते हुये देखकर उनको आश्चर्य होता है। उनका मन करता है कि कुछ देर रूककर इस कला को भी प्रैक्टिल करके देखूं। यदि वह ढाणी किसी बुनकर की है तो वहाँ पर बुनकर के परिवार कम्बल, कपड़ा, दरी आदि नई-नई डिजाइनों के हाथ से बनाते रहते है। इनको देखकर कई मेहमान उन चीजों को खरीदकर भी ले जाते है। कई जगह ढाणियों में महिलायें कपड़ों पर बारीक कशीदाकारी करती है। विभिन्न प्रकार के कपड़े पर कारीगरी द्वारा कशीदा किये हुये कपड़े भी ये मेहमान खरीदकर ले जाते है। ढाणी के चारों ओर निर्भय होकर विचरण करती कई प्रकार की चिड़िया व मोर उनको बहुत प्रिय लगते है।

        ढाणियों में बनता हुआ खाना देखकर उसका स्वाद चखे बिना नहीं रह सकते। गर्मागर्म बाजरी का सोगरा और खट्टी मीठी चटनी, ग्वारफली और पचकुटे की सब्जी, कढ़ी, दाल और रायता खाकर ये आनन्दित हो जाते है। कई खेतों में मसालों की खेती होती है। जिसमें जीरा, अजवायन, धनिया, मेथी, दिलसीड, पीली सरसों, राई आदि यहाँ की मुख्य मसाला फसलें है। किसान अपनी ढाणी में इनकी छोटी-छोटी पैकिंग करके भी प्रदर्शित करते है। उन लोगों के लिये यह ऑर्गेनिक मसाले दुर्लभ होते है। जिसको वे खरीदकर ले जाते है। पश्चिमी राजस्थान में फलों की खेती बड़े पैमाने पर होने लगी है। फलों की खेती के विकास में काजरी जोधपुर ने काफी अच्छा शोधकार्य करके किसानों को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की है। इसी का परिणाम है कि पश्चिमी रेगिस्तान के रेतीले धोरों में बेर, अनार, खजूर, अंजीर आदि रसीले फलों की खेती बड़ी मात्रा में होने लगी है। विदेशी मेहमान इन खेतों के बीच में जाकर अपने हाथ से पके फल खाकर बहुत प्रसन्न होते है। बड़े-बड़े फलों के बगीचे देखकर वे झूम जाते है।

        रहने के लिये ढाणियों की ट्रेडीशनल वास्तुकला के अनुसार स्थानीय मेटेरियल से बनाये गये झूपें और पड़वे सर्दियों में गर्म और गर्मी में ठण्डे होते है। हर मौसम में धूप और ताजी हवा इनमें बराबर आती रहती है। गाय के गोबर से घर और आंगन को लिपाई पोताई करके उसके ऊपर विभिन्न डिजाईनों के माण्डणे, रंगोली और चित्रकारी अतिसुन्दर लगती है। इस चित्रकारी में सफेद रंग चूने का, लाल रंग गेरू मिट्टी का और पीला रंग मुल्तानी मिट्टी व हल्दी का बनाया जाता है। स्थानीय हाट बाजार, देवी-देवताओं के मेले और पशुओं के मेले आकषर्ण का केन्द्र होते है। तिलवाड़ा, पुष्कर, नागौर आदि के पशु मेलों में सभी प्रकार के पालतू पशु बिक्री के लिये आते है। पूरे देश से पशु खरीदने के लिये किसान भी इन मेलों में दूर-दूर से आते है। घोड़े, बैल, ऊँट आदि पशुआें को विभिन्न आभूषणों से सजाया जाता है। मेले की प्रबंधन कमेटी द्वारा विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है और विजेताओं को पुरूस्कृत भी किया जाता है। मेलों का दृश्य मन लुभावना होता है। विदेशी मेहमानों को मेले में रूकने के लिये फाईव स्टार होटलें सुन्दर से सुन्दर टेंट हाऊस की व्यवस्था करते हैं। ये टेण्ट हाऊस अस्थायी व सुविधायुक्त होते है। जिसमें रहकर विदेशी मेहमान आनंद की अनुभूति करते है। सभी मेलों में स्थानीय लोक कलाकारों द्वारा नृत्य, संगीत व कठपुतली शो की व्यवस्था की जाती है। पर्यटक इनका आनन्द लेते है तथा पर्यटक इन कलाकारों को अपने देश में भी प्रोग्राम के लिये आमंत्रित करते है।

        कृषि पर्यटन को बढ़ावा देकर किसानों की आय को पर्यटन के द्वारा बढ़ाया जा सकता है। विदेशी मेहमानों को क्या देखना अच्छा लगता है? क्या खाना अच्छा लगता है? क्या खरीदना अच्छा लगता है? क्या सीखना अच्छा लगता है? खेतों का प्रचार प्रसार कैसे किया जाये? उनके द्वारा खरीदे गये मेटेरियल को कैसे निर्यात किया जाये? आदि विषयों पर अगले ब्लॉग में विस्तार से चर्चा करेंगें।

Comments

  1. Replies
    1. अद्भुत लेख है इस लेख के माध्यम से हम कृषि का भी संवर्धन कर सकते हैं हमारे गांव देहात की संस्कृति का भी संवर्धन कर सकते हैं और देश के आर्थिक विकास में कृषि अग्रिम भूमिका निभा सकता है यह बात भी स्थापित होती है

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    2. किसी भी देश के अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण होता है यदि कृषि क्षेत्र को हम ठीक-ठाक कर ले तो प्रसंस्करण क्षेत्र अपने आप उन्नति करेगा और जब कृषि से उन्नति मिलती है तो उसे आए से देश का संपूर्ण आर्थिक विकास होता है

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  2. आपका यह लेख आपके बेहतरीन लेखक के साथ एक गहन बिजनेसमैन होने की संजीव उदाहरण है। जितने सूक्ष्म तरीके से अपने कृषि को टूरिज्म के साथ जोड़ा है , वह पूरे पर्यटन उद्योग के लिए शोध का विषय होना चाहिए ।।निश्चित रूप से 'एग्री टूरिज्म' आने वाले समय में एक बहुत बड़ा उद्योग बन सकता है । आपके अनुभवजन्य ज्ञान का लाभ संपूर्ण समाज को और संपूर्ण टूरिज्म सेक्टर को मिले , ऐसा प्रयास सभी का होना चाहिए । आपको सादर प्रणाम

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  3. Very good write up on agrotourism

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