मिट्टी के बर्तन
आदिकाल से अनाज को भण्डारण करने, घी और तेल को भण्डारण करने, खाना पकाने, दूध गर्म करने, बिलौना करने, खाना खाने आदि सभी कामों के लिये अलग-अलग डिजाईन और अलग-अलग साईज के बर्तन और कण्टेनर बनाये जाते थे। बर्तन बनाने वाले कारीगर अलग-अलग बर्तनों पर अलग-अलग चित्रकारी करके भी उनको सुन्दर रूप देते थे जो दिखने में बहुत ही आकर्षक होते थे। सारी चित्रकारी प्राकृतिक रंगों से ही की जाती थी। धीरे-धीरे मिट्टी के बर्तनों का उपयोग कम होता गया उसकी जगह धातु के बर्तनों ने ले ली। तांबा, पीतल और कांसे का भी जमाना आया। आजकल ये धातु मंहगे हो गये। इसकी जगह हर में स्टील और एलम्यूनियम के बर्तन ही रह गये है। ऐसे बर्तन जिनमें गर्म चीजें नहीं डाली जाती है वे तो अब प्लास्टिक के ही उपलब्ध है।
स्टील एलम्यूनियम और प्लास्टिक के बर्तनों का
दुष्प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ने लग गया है। कई प्रकार के अध्ययनों से पता
चला है कि स्टील और एलम्यूनियम के बर्तनों में खाना पकाने से उसके जरूरी पोषक
तत्त्व और स्वाद में कमी आ जाती है। कई जागरूक लोग अब अपने घरों में मिट्टी के
बर्तन उपयोग में लेने लगे है। मिट्टी के बर्तनोें का प्रचार-प्रसार करने के लिये
कई संगठन काम कर रहे है। राजस्थान के जयपुर शहर में अमृत माटी इण्डिया ट्रस्ट के
अंजनी कुमार किरोड़ीवाल इस क्षेेत्र में काम करने वाली अग्रणी संस्थान है। साथ ही
भारतवर्ष के हर बड़े शहर में इस प्रकार के व्यक्ति और संगठन मिल जायेंगें जो मिट्टी
के बर्तनों के प्रचार-प्रसार में लगे हुये है। उनका मानना है कि कुपोषण की बीमारी
का मुख्य कारण स्टील आ़ैर एलम्यूनियम के बर्तनों का उपयोग है। खाना पकाने के लिये
मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करने से भोजन में
कार्बोहाइड्रेड 22 प्रतिशत, फाइबर 72 प्रतिशत, प्रोटीन 17 प्रतिशत, विटामिन के 100 प्रतिशत, विटामिन सी 120 प्रतिशत, कैल्शियम 205 प्रतिशत और आयरन 39 प्रतिशत स्टील और प्रेशर
कुकर में पकाए भोजन से अधिक पाया गया है। उनका मानना है कि मिट्टी के बर्तन
क्षारीय प्रकृति के होते है अतः उनमें भोजन की अम्लीय प्रकृति को बेअसर करते है।
पी. एच. संतुलन बनाये रखते है। ऐसा भोजन पचने में आसान होता है। स्वाद, रस और पोषक तत्त्व बढ़ते
है। साथ ही मिट्टी के बर्तनों से भोजन में खनिज पदार्थ भी बढ़ते है। एक सर्वे के
अनुसार भारत की जनसंख्या का 14.5 प्रतिशत लोग कुपोषण के शिकार है। जिसका मुख्य कारण धातु के
बर्तनों में खाना पकाना है। महिलाओं में एनीमिया की समस्या और मिनरल की कमी को दूर
करने के लिये मिट्टी के बर्तन में खाना पकाना लाभकारी है।
मिट्टी के बर्तन में
पकाये हुये खाने का स्वाद और सुगंध नष्ट नहीं होते है तथा आयरन, फॉस्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम व अनेक प्रकार
के विटामिन्स नष्ट नहीं होते है। चावल, मोटे अनाज के पकवान, विभिन्न प्रकार की खिचड़ी, दाल, कढ़ी आदि स्वादिष्ट बनते है। साथ ही गर्म किया हुआ दूध बहुत
लाभप्रद होता है। इनके सारे पोषक तत्त्व विद्यमान रहते है। दिल की बीमारियों से और
डायबिटीज की बीमारियों से परेशान लोगों को मिट्टी के बर्तनों में बने भोजन अधिक
लाभदायक होते है, क्योंकि मिट्टी
के बर्तनों में भोजन धीमी आँच पर धीरे-धीरे पकता है। भोजन के पकाने की प्रक्रिया
अत्यधिक धीमी होती है अतः इनके स्वाभाविक गुण विद्यमान रहते है। यह भोजन खाने में
सुपाच्य होता है। मिट्टी के बर्तन में बना भोजन कम तेल में भी या बिना तेल के भी
स्वादिष्ट बनता है। इससे भोजन में विद्यमान प्राकृतिक तेल और नमी की मात्रा बनी
रहती है।
मिट्टी के बर्तन में
बनाये गये भोजन की पोषकता बनी रहती है। यह खाना तुरंत ग्लूकोज में कन्वर्ट नहीं
होता है। इससे इन्सुलिन का उत्पादन संतुलित रहता है। इन बर्तनों में पी. एच.
एल्कलाइन होता है। अतः इस प्रकार का भोजन सेवन करने से एसिडिटी की समस्या का खतरा
कम हो जाता है। संतुलित पी. एच. स्तर एसिडिटी की समस्या से मुक्ति दिलाता है। ऐसा
माना जाता है कि मिट्टी के बर्तनों में पकाया हुआ भोजन नियमित लेने से इम्यूनिटी
भी बढ़ती है। शरीर में अपच,
गैस और कब्ज की
समस्या भी मिट्टी के बर्तन में पकाया हुआ खाना से भी मुक्ति दिलाता है।
आजकल कई सामूहिक भोजन में दूध और जलेबी मिट्टी
के हुण्डें में ही परोसी जाती है। भारत सरकार के रेलमंत्रालय ने भी सभी रेलवे
स्टेशनों पर चाय को मिट्टी के बर्तनों में देने के समय-समय पर आदेश पारित किये थे।
कई रेलवे स्टेशनों पर ठण्डा पानी सफर में साथ ले जाने के लिये विभिन्न साईज की और
डिजाइन की मिट्टी की सुराही बेचने का कुम्हारों को लाइसेंस दिया गया था। आजकल पुनः
जहाँ भी सुविधा होती है, वहाँ पर मिट्टी
की हाण्डी में दाल, कढ़ी और सब्जियाँं
शौक से बनाई जाती है। रोटी भी मिट्टी के तवे पर बनी हुई परोसी जा रही है। गुजरात
के बांकानेर शहर में अमृत प्रजापति ने मिट्टी का फ्रीज बनाया जो बिना बिजली के खाने
को लम्बे समय तक सुरक्षित रखता है। इस काम के लिये भारत सरकार ने उनको कई पुरस्कार
भी दिये तथा डी.डी. किसान ने एक डाक्यूमेन्टरी फिल्म भी अमृत प्रजापति पर बनाकर कई
बार टेलीविजन पर प्रसारित की। आज भी यह फिल्म यूट्यूब पर देखी जा सकती है।
भारतवर्ष के कई प्रांतों
में मिट्टी का काम करने वाले कुम्हार समय के अनुसार मिट्टी के बर्तनों में नये-नये
आविष्कार, नई-नई डिजाईनें
और विभिन्न उपयोग के अलग-अलग बर्तन आकर्षक से आकर्षक बना रहे है। कई विदेशी
हैैण्डीक्राप्ट के आइटम आयात करने वाले व्यापारी इनको सजावटी सामान के तौर पर भी
ले जाते है। बड़ी-बड़ी होटलों और दर्शनीय स्थानों पर मिट्टी के छोटे बड़े बर्तन और
सजावटी सामान लोग सुन्दरता के लिये सजाते है। मिट्टी के बड़े-बडे़ मटके जगह-जगह
सजावट के लिये रखे जाते है। उनकी कई प्रकार की डिजाइनें होती है तथा उन पर आकर्षक
चित्रकारी भी की गयी होती है।
मिट्टी के बर्तन पर्यावरण को शुद्ध रखते है।
स्टील और एल्यूमिनियम के बर्तनों को साफ करने के लिये खतरनाक केमिकल्स का उपयोग
होता है। जबकि मिट्टी के बर्तनों को केवल गर्म पानी से साफ किया जाता है। इनमें
लगी चिकनाई नींबू से साफ हो जाती है। अतः ये बर्तन पर्यावरण को शु़द्ध रखते है।
टूटने पर भी मिट्टी के बर्तन किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं फैलाते है। मिट्टी के
बर्तन टूटने पर आसानी से मिट्टी में मिल जाते है। कुटीर उद्योग को इससे बढ़ावा
मिलता है। समाज के बहुत बड़े तबके को रोजगार मिलता है। इस प्रकार विभिन्न प्रकार के
लाभों को देखते हुये मिट्टी के बर्तनों का उपयोग जागरूक लोग बढ़ा रहे है। अधिकतर
ढ़ाबों में गरमा-गरम चाय तो मिट्टी के हुण्डों में ही परोसी जाती है। जो अच्छी
शुरूआत है।
Sir, Return to good old practice, for
ReplyDeleteGood health .
Good
ReplyDeleteCompliments of pottery community 👌
ReplyDeleteVery nice guide for good health
ReplyDeleteEarthen pots are cheap and good for health. Their use should be encouraged.
ReplyDeleteV.nice healthy product knowledge
ReplyDeleteEach word is loaded with Truth
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