जलाशय में उगने वाला फल : सिंघाड़ा
तालाबों में और झीलों में सिंघाड़ा की खेती की जाती है। पूरे भारतवर्ष में जल भराव के स्रोतों में इसकी खेती बडे़ पैमाने पर की जाती है। जून के महीने में इनके बीज बोये जाते है। सितम्बर से इनके फल आने शुरू हो जाते है। बाजार में सितम्बर-अक्टूबर में सिंघाड़ा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहता है। सर्दियों के दिनों में इसके फल खूब खाये जाते है। इनको उबालकर, सेककर, छीलकर खाये जाते है। इनका स्वाद मीठा और बहुत ही स्वादिष्ट होता है। धनतेरस और दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन में सिंघाड़े को विशेष रूप से लाया जाता है।
सिंघाड़े में कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, विटामिन्स और मिनरल्स भरपूर मात्रा में पाये जाते है।
उबालकर या कच्चा छीलकर भी ताजा सिंघाड़ा धनिया की चटनी के साथ खाया जाता है। ताजे
सिंघाड़े की कई डिशेज बनाकर खाई जाती है। सिंघाड़ा गीला या सूखा व्रत में खाया जाता
है। एक अध्ययन के अनुसार सिंघाड़े में बहुत कम कैलोरीज होती है जो वजन घटाने और वजन
को कंट्रोल रखने में मददगार है। सिंघाड़े में फेट नगण्य होता है। इसमें पोटेशियम, सोडियम, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन सी, विटामिन बी6 और मैग्नीशियम पाया जाता
है। इसका सेवन करने से अन्दर से फिटनेस महसूस की जाती है। यह हृदय के लिये लाभदायक
होता है व कॉलेस्ट्रॉल लेवल को कम करता है। पीलिया में इसको खाना लाभदायक होता है।
थायराईड में सिंघाड़ा खाना लाभदायक होता है। सिंघाड़े में एंटीऑक्सीडेन्ट्स बड़ी
मात्रा में पाये जाते है। अतः इसका उपयोग एंटीवायरस, एंटीबैक्टीरियल, एंटीकैंसर आदि में होता है। सिंघाड़ा शरीर के
लिये डिटॉक्स का काम करता है जो जहरीले पदार्थो को बाहर निकालता है। त्वचा और
बालों को चमकदार बनाता है।
सूखे हुये सिंघाड़े के फलों को कूट पीसकर इसका आटा बनाया
जाता है। व्रत और त्यौहार में सिंघाड़े के
आटे का हलवा, पूड़ी, पकौड़ी आदि कई पकवान बनाकर
खाये जाते है। सिंघाड़े के बनाये हुये पकवान स्वादिष्ट तो होते ही है साथ ही बहुत
फायदा भी करते है। शरीर में मोटापे को कम करने, सूजन कम करने, शरीर में बढे़ हुये पानी को बाहर निकालने में सिंघाड़े के
पकवान लाभदायक होते है। कॉलेस्ट्रॉल को कम करने में सिंघाड़ा बहुत अच्छा काम करता
है। व्रत के दिनों में जब मात्र एक समय भोजन किया जाता है उस समय सिंघाड़े के
व्यंजन एनर्जी का बेहतरीन सोर्स होता है।
सिंघाड़े के आटे में एंटीऑक्सीडेन्ट्स और मिनरल्स भरपूर
मात्रा में पाये जाते है। अतः कॉलेस्ट्रॉल को कम करता है। इसका आटा ग्लूटिन फ्री
पाया जाता है। अतः यह हृदय संबंधी रोगों में लाभकारी होता है। हाई ब्लड प्रेशर और
स्ट्रॉक जैसी बीमारियों को कम करता है। टी.बी. को ठीक करने के लिये आयुर्वेद में
विभिन्न औषधीयाँ सिंघाडे़ के साथ मिलाकर दवा बनाई जाती है। अतिसार या दस्त लगने पर
सिंघाड़े को साथ मिलाकर दवा बनाई जाती है। खूनी बवासीर को ठीक करने के लिये कच्चे
सिंघाड़े खाये जाते है। डायबिटीज के रोग में भी सिंघाड़े का सेवन करना चाहिए। इस
प्रकार सिंघाड़े का फल ताजा तो बड़े चाव से खाया ही जाता है साथ ही सूखे सिंघाड़े का
आटा बनाकर भी उसको उपयोग में लिया जाता है।
आजकल कई ठेकेदार जो सिंघाड़े की खेती सार्वजनिक तालाबों में
लीज पर लेकर करते है वे ठेकेदार अधिक से अधिक उत्पादन लेने के लिये रासायनिक खाद
का उपयोग बड़ी मात्रा में करने लगे है। इतना ही नहीं बीमारियों से बचाव के लिये
तालाब में जहरीले रासायनिक कीटनाशकों का भी उपयोग करते है। यह प्रथा इन्हीं कुछ
वर्षा से कहीं-कहीं पर शुरू की गई है जो एक खतरनाक परिपाटी बनती जा रही है। कई बार
अखबारों में समाचार प्रकाशित इसके दुष्परिणामों के छपते रहते है। रासायनिक कीटनाशक
डालने से जल में भी विचरने वाले जीव जन्तु जैसेः- मछलियाँ, कछुआ और मगरमच्छ आदि मरे
हुये पाये गये। तालाबों का पानी जहरीला हो गया। जो पशुधन, वन्यजीव और पक्षियों के
लिये भी घातक होता है। गाँव वालों को अपने-अपने तालाबों की सुरक्षा के लिये आगे
आना होगा। इस जहरीले पानी में पैदा होने वाले सिंघाड़े भी शरीर को अधिक हानि
पहुँचाते है। इन खतरनाक रसायनों की वजह से सिंघाड़ा की साईज और रूप तो बढ़ गया लेकिन
स्वाद, सुगंध, पौष्टिकता आदि प्राकृतिक
गुण नष्ट हो जाते है।
अति उत्तम जानकारी हैं। 🙏
ReplyDeleteबेहतरीन आलेख आपका । बताते हैं न केवल भारत में बल्कि चाइनीज और यूरोपियन फूड्स में भी इसका बहुत इस्तेमाल किया जाता है। पानी में होने वाला यह फल वास्तव में कई महत्वपूर्ण पोषक तत्वों का एक बेहतरीन स्रोत है। आप इसी प्रकार हमें नवीन जानकारीयों से समृद्ध करते रहें , ऐसी प्रार्थना है । शुभकामनाएं । प्रणाम
ReplyDeleteReally very nice fruit and good for health
ReplyDeleteकीटनाशक दवाएं तालाब में न डालें, शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत् हि अच्छा ज्ञान मिला ये पढ़ के
ReplyDeleteUseful information about the plant.
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