रेगिस्तान में कृषि पर्यटन (एग्रोटूरिज्म) पार्ट-4

             


अपनी ढाणी और खेत में पर्यावरण के अनुकूल ही सारे साधन होने चाहिये। घर में बैलों की जोड़ी और उससे चलने वाले हल आदि औजारों के साथ-साथ सुविधा के लिये आधुनिक ट्रेक्टर भी रख सकते है। खेत के दृश्यों को देखकर विदेशी मेहमान प्रसन्नचित हो जाएंगें।

        रोशनी के लिये और टांके से पानी निकालने लिये सौर ऊर्जा संयंत्र काम में लिये जाते है, जो इको फ्रेण्डली होते है। खाना पकाने व रोशनी के लिये गोबर गैस के प्लांट भी कई लोग अपनी ढाणी में लगाते है। इससे दोहरा फायदा होता है। गाय के गोबर का उत्तम खाद बन जाता है तथा इसकी गैस एक ऊर्जा का स्रोत भी होता है। मिट्टी की ईटों और स्थानीय वनस्पतियों की छत के मकान व चित्रकारीयुक्त घर देखना उनको बहुत पसंद है। पानी का भण्डारण, अन्न का भण्डारण और पशुधन के लिये चारे व पानी का भण्डारण करने की परंपरागत विधियों को वे गंभीरता से देखते है।

        ढाणी की शुद्ध हवा, खुली धूप और रोशनी, पौष्टिक एवं ताजा भोजन, भरपूर मात्रा में दूध, दही, घी व शांत जीवन रेगिस्तान के किसानों के स्वास्थ्य का राज है। चिड़ियों और मोर के लिये नियमित सवेरे उठते ही दाना पानी देने का हर ढाणी में नित्यकर्म होता है। इन पक्षियों के ब्रीडिंग सेंटर इन्हीं पेड़ों के आसपास होते है। वे निर्भय होकर विचरण करते रहते है। हिरण और चिंकारा इस क्षेत्र में बहुतायत से पाये जाते है। विश्नोई समाज की ढ़ाणीयों के आसपास इनकी संख्या सैकड़ां और हजारों में होती है। ये वन्यजीव पर्यटकों के लिये आकर्षण का केन्द्र होते है।

        इस प्रकार खेत में अधिक वृक्ष, वृक्षों पर झूमती लताएँ, लहलहाती फसलें, ढाणी के आसपास फल-फूल और सब्जियों की पैदावार, परिवार का सादगीपूर्ण रहन-सहन, सब कुछ प्राकृतिक एवं नैसर्गिक इस प्रकार के दृश्यों को देखकर पर्यटक आनन्द विभोर हो जाता है और बार-बार आने की इच्छा रखता है।

        यदि कोई की ढाणी कुम्हार की या बुनकर की होती है, तो उसमें ये कारीगर अपनी कला से विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करते है। कई पर्यटक इनकों देखकर इन कलाओं को सीखने की भी इच्छा रखते है। वे लम्बा समय उन कारीगरों की ढाणी में सीखने के लिये व्यतीत भी करते है। इसके फलस्वरूप उस कारीगर को मोटी गुरूदक्षिणा भी देते है। मिट्टी, लकड़ी के उत्पाद वे अपने साथ भी खरीदकर ले जाते है। विभिन्न प्रकार की कशीदाकारी के वस्त्र और दरियाँ आदि भी बनाना सीखते है।

        हर गाँव में वर्षा जल को संग्रहीत करने के लिये बड़े-बड़े तालाब व नाडे बनाये हुए होते है। जिनकी नियमित देखभाल ग्रामीण करते है। ये तालाब सर्दियों की सीजन में लबालब भरे रहते है। तालाबों के आसपास सैकड़ों वर्ष पुराने बड़े-बड़े विशालकाय बरगद, पीपल, नीम, जाल, खेजड़ी आदि के पेड़ बड़ी संख्या में मिलते है। जो जलाशयों की शोभा बढ़ाते है। उनसे छाया व पक्षियों को बसेरा मिलता है। इन पेड़ों पर लगने वाले रसीले फल पक्षियों के लिये भोजन का स्रोत होता है। हजारों मील दूर से जलीय पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियाँ इन तालाबों के किनारे आकर डेरा डाले रहते है। जिनको देखने के लिये भी देशी-विदेशी मेहमान रेगिस्तान में आते रहते है।

        रेगिस्तान के जलाशयों में प्रतिवर्ष साइबेरिया से लाखों की संख्या में कुर्जां सर्दियों के मौसम में आती हैं। उन पक्षियों पर रिसर्च करने के लिये कई देशों से वन्यजीव विशेषज्ञ यहाँ आते रहते है। ये वैज्ञानिक यहाँ पर उन पक्षियों की सुरक्षा व्यवस्था, सैकड़़ों टन प्रतिदिन चुग्गे की व्यवस्था (जो यहाँ के पक्षी प्रेमी समाजसेवी लोग करते है), उसको देखने के लिये आते है। कुर्जों के लिये बने हुये चुग्गाघरों में वे पक्षी बारी-बारी से आकर अपना चुग्गा चुगते है। इस प्रकार का पक्षियों में अनुशासन देखकर वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हो जाते है। इस वर्ष कैलीफोर्निया यूनिवसिर्टी में मछली और वन्यजीव पर रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों का दल फलौदी के खींचन गाँव में आया हुआ है। इस प्रकार के पर्यटक भी कृषि पर्यटन को देखना चाहते है। रेगिस्तान में सूर्यास्त के दृश्य भी अति आकर्षक लगते हैं।

        उपरोक्त सारी व्यवस्थाएँ ढाणीयों में उपलब्ध ही रहती है। केवल थोड़ा बहुत सुधार करके इनको अच्छे ढंग से प्रदर्शित करना है। पर्यटक आय का बहुत बड़ा स्रोत बन जाते है। अगले ब्लॉग में इस क्षेत्र को और अधिक विकसित करने और प्रचारित करने के लिये क्या-क्या काम कर सकते है? उनकी चर्चा करेंगें।

Comments

  1. Rajasthan has a variety of local tasty foods and has been famous for tourism due to historical forts. Agrotourism will further enhance the tourism to new levels.

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  2. Good agro turism knowledge

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