रेगिस्तान में कृषि पर्यटन (एग्रोटूरिज्म) पार्ट-3
कृषि पर्यटन रेगिस्तान के लिये आय का बहुत बड़ा स्रोत बन सकता है। कई देशों में इस प्रकार के प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक चल रहे है। किसान का खेत और ढाणी को देखने के लिये विदेशी मेहमान लालायित रहते है। ग्रामीण क्षेत्र के दैनिक जीवन, रहन-सहन, पहनावा, रीति-रीवाज, उत्सव और त्यौहार, खेती में काम करने के तरीके आदि को नजदीक से देखना पर्यटक पसंद करते है।
पर्यटकों का आकर्षण नियमित बना रहे, इसलिये किसान को भी
तैयारी करनी पड़ेगी। वैसे तो उसका वास्तविक जीवन देखने व समझने लायक होता है, लेकिन उसमें कुछ बिन्दुओं
को जोड़ लिया जाये तो और अधिक आकर्षक बन सकता है। रेगिस्तान में दो तरह के किसान है, एक तो ऐसे किसान है जिनके
पास सिंचाई का कोई साधन उपलब्ध नहीं है, दूसरे वे किसान जिनके पास सिंचाई के लिये कुआँ, ट्यूबवेल, नहर आदि है। दोनों किसानों
की फसलों में और खेती के तरीको में काफी अंतर होता है।
जिन किसानों के पास
असिंचित खेत होते है। वहाँ वर्षा आधारित खेती ही हो सकती है। इसमें मुख्यतया बाजरा, ज्वार, ग्वार, तिल, मूंग, मोठ, चवला आदि होती है। इन्हीं
फसलों के उत्पादन से किसान को सारी भोजन सामग्री वर्ष भर के लिये मिल जाती है। साथ
ही उसके पशुधन के लिये पर्याप्त मात्रा में चारा भी हो जाता है। औषधीय फसल
सोनामुखी व सौन्दर्य प्रसाधन में काम आने वाली फसल मेंहदी भी बड़े पैमाने पर उगाई
जाती है। ये दोनों फसलें निर्यातोन्मुखी है तथा विश्व में सर्वाधिक उत्पादन इसी
क्षेत्र में होता है। सोनामुखी की फसल बिना सिंचाई के भी वर्ष पर्यनत हरी भरी रहती
है व पीले पीले फूलों से लदी रहती है जो सोने की तरह सुन्दर लगती है। सोनामुखी व
मेंहदी यहाँ के किसानों के लिये कैशक्राप होती है। इन फसलों को देखकर पर्यटक खुश
होते है। ये सारी फसलें ऑर्गेनिक होती है। ऑर्गेनिक और केवल वर्षा जल पर आधारित
फसलों में कोई बीमारी नहीं लगती है। इन फसलों में पौष्टिक तत्त्व स्वाद और सुगंध
भरपूर होती है। यह बात जब पर्यटकों को बताई जायेगी तब वे हमारे परंपरागत ज्ञान से
प्रभावित हांगे।
बहुत सारी वृक्ष प्रजातियाँ जिनसे हमें भोजन
मिलता है, पशुओं को चारा
मिलता है, छंगाई के द्वारा
ईधन मिलता है, कृषि औजार बनाने
के लिये लकड़ी मिलती है तथा इन पेड़ों के कई अंग औषधि में भी प्रयोग किये जाते है, ये पेड़ वर्षा आधारित
क्षेत्र में बहुतायत से मिलते है। खेजड़ी राजस्थान का राजकीय वृक्ष है। जो इस
क्षेत्र में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। इस पेड़ की फलियाँ सब्जी बनाने के
काम आती है, जो अति पौष्टिक
और स्वाद से भरपूर होती है। आजकल इसकी फलियाँ जिसे सांगरी कहते है सूखी हुई 1200 से 1800 रूपये प्रतिकिलो तक
बिकती है। कुमठ के बीज भी पौष्टिक आहार में गिने जाते है। यह पेड़ भी यहाँ बहुतायत
से पाया जाता है। रोहिड़ा (राजस्थानी टीक) जिसका फूल राजस्थान का राजकीय फूल है, पीले, नारंगी, जोगिया, केसरी, लाल आदि मिलते-जुलते पाँच
अलग-अलग रंगों के होते है। दीपावली से लेकर होली तक यह फूलों से लदा रहता है। जो
रेगिस्तान में सुंदरता बिखेरता रहता है। बड़ी मात्रा में इसके फूल प्रतिदिन पेड़ के
नीचे गिरते रहते है। पालतू पशुधन एवं सभी वन्यजीव इसको बडे़ चाव से खाते है। यह
पेड़ बहुत ही औषधि महत्त्व का पेड़ है। केर एक कंटीली झाड़ीनुमा पेड़ होता है। जो
रेगिस्तान में बहुत पाया जाता है। इसके फलों की सब्जी और आचार स्वास्थ्यवर्धक और
अतिस्वादिष्ट होता है। पीलू यहाँ बहुत मात्रा में होता है। इसके फलों को रेगिस्तान
का अंगूर कहते है। गर्मियों में इसके फल से पेड़ लदे होते है। इसे यहाँ के लोग ताजा
तो खाते ही है इसको ड्राई करके किशमिश की तरह भी खाते है। इस प्रकार अनेक प्रजाति
के वृक्ष रेगिस्तान में स्वतः होते है। जो खेत और खेत की फसलों को भी लाभ पहुँचाते
है। विभिन्न प्रकार के मेडिशन प्लाण्ट्स इस क्षेत्र में पाये जाते हैं जिनका
आयुर्वेदिक औषधियाँ बनाने में उपयोग होता है जैसेः- शतावरी, बला, अतिबला, नागबला, रासना, शंखपुष्पी, चामकस, दुरालभा, शरपुखा, निर्गुण्डी, एलोवेरा, लेमनग्रास आदि।
ढाणी के आसपास छायादार, फलदार और फूलवाले पेड़-पौधे नाममात्र के जल से ही पनप जाते
है। हर खेत में दो चार पेड़ नीम के दो-चार पेड़ गुंदा, दो-चार पेड़ गुंदी के, दो-चार पेड़ नींबू के, शहतूत, सहजन, आंवला, बेलपत्र, गुगुल तथा कुछ पौधे फूलों
वाले जैसेः- गेंदा, गुलाब, सदाबहार, चंपा, तुलसी, हरसिंगार, बेला, चमेली, रातरानी आदि के भी लगाये
जाते है। कुछ शौकीन लोग पपीता, आम,
जामुन, अनार और अमरूद आदि के
एक-दो पेड़ भी लगा देते है। बेर यहाँ की मुख्य फल प्रजाति है। जो हर खेत और ढाणी
में मिल जायेंगें। इसकी कई किस्में किसान अपने खेतों में लगा देते है। कुछ थोड़ी
मात्रा में अपने उपयोग के लिये छोटे से किचन गार्डन में सीजनल सब्जियाँ भी उगाते
है। मिर्ची, धनिया, पोदीना, टमाटर, बैंगन, लौकी, कद्दू, तोरई, सेमफली, भिण्डी, गोभी, प्याज, लहसुन, ककड़ी, खीरा, शकरकंद मूली, गाजर, पालक, सूआ हर किसान अपनी आवश्यकता के अनुसार अपनी ढ़ाणी के
आसपास लगाता ही है। कुछ किसान अपने उपयोग के लिये विदेशी सब्जीयाँ भी उगाते है
जैसेः- ब्रोकली, फ्रेंच बीन्स, रंगीन केबेज, पारसले, पीली गाजर, कई रंगों की मूली, छप्पन कद्दू आदि। इन
फलदार पेड़ों, फूल के पौधों व
सब्जीयों की सिंचाई के लिये पर्याप्त पानी वर्षा जल को संरक्षित करके काम में लिया
जाता है। इसके लिये खेत में वाटर पौण्ड बनाने के लिये राज्य सरकार अनुदान भी देती
है। इस प्रकार के फलों, फूलों और
सब्जियों की समवित खेती को देखकर पर्यटक प्रसन्न हो जाता है। अपने लिये और
पर्यटकों के लिये भी खेत में उत्पादित भोज्य सामग्री ही परोसी जाती है।
गाय और बकरी हर ढ़ाणी में
मिल जाती है। वर्ष पर्यन्त उनके ताजे दूध से बना हुआ घी, मक्खन, दही आदि उपलब्ध रहता है।
छाछ से बनी हुई राबड़ी और कढ़ी रोज के भोजन में सम्मिलित होती है। उन पशुओं के
छोटे-छोटे बच्चे प्रांगण में खेलते-कूदते शोभा देते है। अगले ब्लॉग में कुछ
महत्त्वपूर्ण बातों की चर्चा विस्तार से करेंगें।
बेहतरीन लेख श्रृंखला । वर्तमान समय में पर्यटकों एवं उपभोक्ताओं का रूझान कृषि एवं खाने में प्रयुक्त वस्तुओं की ओर बढ़ रहा है। यही कारण है कि इन वस्तुओं के उत्पादन स्थलों को वास्तविक रूप में देखने के लिए वे उत्सुक होते हैं। यह उत्सुकता उन्हें एग्रो टूरिज्म की ओर ले जाती है जो किसानों की आय का अतिरिक्त साधन बनता है।आपने जिस सरलता के साथ इसे बताया है वह निश्चित ही संग्रहणीय है । आशा है भविष्य में हम सिर्फ "एग्रो टूरिज्म" यानी कृषि पर्यटन पर आपके विचार एक छोटी पुस्तक के रूप में देखेंगे । यह पुस्तक कृषि विश्वविद्यालय आदि में भी एक सब्जेक्ट के रूप में पढ़ाई जा सकती है । विभिन्न लाइब्रेरी भी इसे अपने यंहा रखना चाहेंगे
ReplyDeleteA good culture knowledge
ReplyDeleteAgrotourism is providing a lot of income and employment in Rajasthan.
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