रेगिस्तान में कृषि पर्यटन (एग्रोटूरिज्म) पार्ट-2

           


     राजस्थान में बड़ी संख्या में पूरे विश्व के पर्यटक आते रहते है। राजस्थान सरकार ने पर्यटन व्यवसाय को उद्योग का दर्जा देकर बहुत ही सराहनीय कार्य किया है। पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिये राज्य सरकार दूसरे उद्योगों की तरह ऋण और अनुदान देने की नीतियों की घोषणा कर रखी है। राजस्थान में पर्यटन उद्योग को स्थापित करने के लिये बड़े औद्योगिक घराने आ गये है। होटल इण्डस्ट्री, टूर ऑपरेटर्स और इंवेट मैनेजर्स इस व्यवसाय में लगकर बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे है।

                    पश्चिमी राजस्थान के किसान भी पर्यटन इण्डस्ट्री में जुड़कर देश के लिये बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकते है। विदेश से आने वाले मेहमान, परंपरागत टूरिस्ट पांइट्स के अतिरिक्त भी बहुत कुछ देखना चाहते है। भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ के 70 प्रतिशत लोगों की आजीविका कृषि पर आधारित है। भारत की कृषि इस समय नवीन वैज्ञानिक तकनीक के साथ-साथ परंपरागत तकनीकों के समावेश से हो रही है। विदेशी मेहमान यह देखना चाहते है कि भारतीय किसानों के पास उस समय ऐसी क्या कृषि विद्या थी कि भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। धन-सम्पदा का भण्डार भारत में उस समय भरा पड़ा था, जिस समय पश्चिम के देश सभी मामलों में भारत से कम विकसित थे।

                    रेगिस्तान का किसान जिसके पास केवल वर्षा आधारित खेती है, सिंचाई के लिये वर्षा के अतिरिक्त कोई अन्य साधन नहीं है, वर्षा भी कम और अनिश्चित होती है। यहाँ के लोग शत् प्रतिशत जैविक खेती ही करते थे। सर्दियों में अधिक सर्दी और गर्मीयों में अधिक गर्मी पड़ती थी। रहने के लिये पक्के मकानों की कमी थी। ऐसी कठिन परिस्थितियों में इन किसानों का जीवन निर्वाह कैसे होता था? अपनी आवश्यकताएँ पूरी करने के बाद भी उनके पास अन्न का पर्याप्त भण्डारण रहता था। आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत थी कि उस जमाने में बड़े-बड़े मंदिर, बावडियाँ व झालरे बनवाये गये थे। इतना ही नहीं यहाँ के किसानों के पास उच्चतम नस्ल के पशुधन बड़ी मात्रा में होते थे, इस कारण इनके घरों में दूध, दही, घी, मक्खन आदि सदैव बड़ी मात्रा में उपलब्ध रहते थे।

                    वर्तमान समय में पर्यटकों की युवा पीढ़ी पुराने इतिहास को पढ़कर राजस्थान के ग्रामीण जीवन को समझने के लिये सुदूर गाँवों और ढाणियों में अपने टूर एजेन्ट के द्वारा विलेज सफारी के नाम से पहुँच रहे है। ढाणी में रहने वाले किसान उनको बहुत अधिक आकर्षित करने के लिये अपने आप को तैयार कर सकते है। हर ढाणी में पीने के पानी के लिये जमीन में पका टांका बना हो जिसमें बरसात के पानी की एक-एक बूंद संग्रहित की जाए। हर ढाणी में दो तीन दुधारू गाय और तीन-चार बकरियाँ हो जो हर समय दूध देती है, उपलब्ध रहे। गाय व बकरी के बच्चें ढाणी के प्रांगण में विचरण करते रहे। यह दृश्य सब के मन को भाता है। मेहमानों के बैठने के लिये स्थानीय सामाग्री से बने हुए खाट, खटोले और मुड्डे होने चाहिये, जो बैठने में आरामदायक हो। घर, बरामदे, रसोई, स्नानागार, शौचालय, पूजा स्थल, बैठक आदि मिट्टी की ईटें, स्थानीय वनस्पतियों द्वारा ढके हुये और कम ऊँचाई के बने होने चाहिये। रोशनी के लिये सौर ऊर्जा के संयंत्र लगे होने चाहिये। घरों की दीवारों और आंगन को हर 15 दिन में गाय के गोबर से लीपा हुआ होना चाहिये। उनके ऊपर रंगीन चित्रकारी, माण्डने और रंगोली आदि होना चाहिये। रसोई में मिट्टी के बर्तनों में खाना बना हुआ अति स्वादिष्ट और पोषक होता है। ज्यादातर पर्यटक सितम्बर से मार्च तक राजस्थान में आते है। वैसे इक्का-दुक्का पर्यटक किसी भी समय आते रहते है। सर्दियों के मौसम में किसान के खेतों में ऑर्गेनिक फल और सब्जियाँ वर्षा आधारित पैदा होती रहती है। बाजरा, ज्वार और मक्का खाद्यान्न का मुख्य स्रोत है। इनकी रोटी मिट्टी के तवे पर बहुत बढ़िया सिकती है। आये हुये मेहमानों को अपनी परंपरागत भोजन सामग्री सादर प्रस्तुत करनी चाहिये। लंच या डीनर में दो-तीन सब्जियाँ, कढ़ी-दाल, दो-तीन तरह की रोटी, खट्टी-मीठी चटनियाँ और दूध, दही, घी, मक्खन उनके अनुसार परोसना चाहिये। पीने के पानी के लिये उबलते पानी में थोड़ा सा जीरा डालकर उसको गुनगुना करके मिट्टी के हुण्डे में परोसना स्वास्थ्य के लिये सुरक्षित, लाभकारी एवं स्वादिष्ट होता है। पश्चिमी देशों में मिर्ची कम खाते है। इसका विशेष ध्यान रखें। जमीन पर बैठाकर पाटे के ऊपर थाली रखकर भोजन करा सकते है। लेकिन विशेष परिस्थिति में उन्हें देशी टेबल कुर्सी पर बैठाकर भी भोजन परोस सकते है।

                    भोजन शुरू करने से पूर्व हाथ पैर धोना और भोजन के सामने बैठकर भोजन मंत्र का उच्चारण कराना उनको बहुत अच्छा लगेगा। जो भी सामग्री आप परोस रहे है उसकी रेसिपी, उसके पोषक तत्त्वों का वर्णन और स्वास्थ्य में कैसे लाभप्रद होती है, यह पूर्णरूप से जैविक है और सब कुछ हमारे इस खेत में ही पैदा होती है ऐसा जिक्र उनकों बातों-बातों में करते रहना चाहिये। अपनी बातों में कोई अतिशयोक्ति या असत्य नहीं होना चाहिये। खाद्यान्न, सब्जियाँ, मसालें, तिलहन और डेयरी प्रोड्क्ट सब हमारे यहाँ घर का ही उपलब्ध है।

        इस प्रकार का भोजन उनको स्वादिष्ट तो लगेगा ही साथ ही जिज्ञासा भी बनी रहेगी। घर का वातावरण स्वच्छ व हाइजनिक होना चाहिये। घर के बच्चे भी खेलते-कूदते रहने चाहिये। घर की महिलायें अपनी पारंपारिक वेशभूषा से सजी होनी चाहिये।

                    मेहमानों को हर्बल चाय बहुत अच्छी लगती है। उनका स्वागत हर्बल चाय के साथ करना चाहिये। पानी उबालकर उसमें कुछ ताजी तुलसी की पत्तियाँ, थोड़ी सी पीसी हुई सोंठ और काली मिर्च डालकर उसको छानकर मिट्टी के हुण्डे में थोड़ी-थोड़ी चाय देनी चाहिये और मिठाई के लिये आवश्यकतानुसार शुगर क्यूब या शुगर पाउच प्लेट में अलग से देने चाहिये। उनको हिलाने के लिये लकड़ी के चम्मच काम में लेने चाहिये। ये चाय उनको बहुत अच्छी लगेगी। इस चाय को और स्वादिष्ट बनाने के लिये दालचीनी, इलायची, लौंग का भी कम मात्रा में प्रयोग कर सकते है।

        उपरोक्त भोजन में विदेशी मेहमान को पूछकर उसकी इच्छा अनुसार फेरबदल भी कर सकते है। भोजन के उपरांत ताजे दही की लस्सी या नमक, जीरा डालकर छाछ भी परोस सकते है। खाना खिलाते समय साफ-सफाई और हाईजीन का पूरा ध्यान रखें। पेपर नेपकीन और मिनी टॉवेल भी दें। भोजन कराने में चाहे, दो घण्टे लग जाये लेकिन जल्दबाजी नहीं करनी चाहिये। इस प्रकार की आवभगत मेहमान के साथ आये हुये गाईड की भी करनी चाहिये। भोजन के पहले व भोजन के बीच-बीच में गाईड की मदद से वार्तालाप करते रहना चाहिए। हर मेहमान को समान रूप से एटेण्ड करना चाहिये। बातें सदैव धीमी आवाज में करें। भोजन परोसते समय परिवार के सभी सदस्यों का सहयोग होना चाहिये। यह तो हो गई आवभगत की बात। अगले ब्लॉग में विदेशी मेहमान खेत में क्या-क्या देखना चाहते है? उसकी चर्चा करेगें।

Comments

  1. Sir, found very useful tips.
    Thank you sir.

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  2. ऐसा लगा जैसे मैं किसी देसी परिवार के साथ समय व्यतीत कर रही हूँ 🙂🙂

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  3. Agrotourism in Rajasthan has a lot of growth potential.

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