पर्यावरण शहीदी मेला - खेजड़ली

          


   पूरे विश्व में पर्यावरण के लिये लगने वाला एकमात्र वृक्षमेला शहीदों की याद में जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में भादवा सुदी दशम् को प्रतिवर्ष लगता है। खेजड़ी राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया है। खेजड़ी का वृक्ष रेगिस्तान के लोगों के लिए कल्पवृक्ष है। यहाँ के लोगों के जीवन में खेजड़ी का अत्यंत महत्त्व है।

        संवत् 1787 में जोधपुर के राजा अभयसिंह के सैनिक खेजड़ली गांव में खेजडी के वृक्षों को काटने के लिये गए। राजा के सैनिक दिवान गिरधर भण्डारी के नेतृत्व में खेजडी के पेड़ काटने लगे। यह देखकर वहाँ पर विश्नोई समाज के लोग खेजड़ी को बचाने के लिये आगे आए। अमृता देवी विश्नोई ने अपने प्राणों का बलिदान खेजड़ी को बचाने के लिए दिया था। उनके साथ 300 से अधिक लोगों ने वृक्षों को बचाने के लिये अपने प्राण दे दिए। यह खबर आग की तरह पूरे क्षेत्र में फैल गयी। आसपास के विश्नोई समाज के लोगों की अपार भीड़ वहाँ इक्ट्ठी हो गई। बात राजा तक पहुँची। राजा के आदेश से सारे सैनिकों को वापस बुला लिया गया।

                यह मेला उन्हीं शहीदों की याद में प्रतिवर्ष जोधपुर से 28 किलोमीटर दूर खेजड़ली गांव में अपने जीवन का बलिदान देने वाले 363 शहीदों की याद में मनाया जाता है। इस मेले में पूरे देश से विश्नोई समाज के लोग भाग लेते है। विशाल यज्ञ का आयोजन होता है। मेले की पूर्व संध्या पर विशाल भक्ति जागरण का आयोजन किया जाता है। पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिये विशाल हवन कुण्ड में घी, नारियल व अन्य हवन सामग्री से विष्णु यज्ञ सम्पन्न किया जाता है। आने वाला हर तीर्थ यात्री विष्णुकुण्ड में अपनी और से पर्यावरण सुरक्षा के लिये आहुति देता है। विश्नोई समाज के धर्मगुरू और संत महात्मा इस मेलें में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते है। विश्नोई समाज की महिलायें सजधज कर गहनों से लदी हुई इस मेले को देखने के लिये आती है। एक-एक महिला के शरीर पर लाखों रूपयें के स्वर्ण आभूषण लदें होते है। ऐसा लगता है कि इन माताओं बहनों में अच्छे से अच्छा और अधिक से अधिक स्वर्ण आभूषण पहनकर जैसे प्रतिस्पर्धा हो रही हो। खेजड़ली गांव के शांत वातावरण में इस प्रकार महिलाओं का गहनों के साथ सजधज कर निकलना भी डर का कोई कारण नहीं रहता। पूरी दुनिया से पर्यावरण प्रेमी पत्रकार इस मेले की रिपोर्ट को कलेक्ट करके प्रकाशित करते है। उत्तराखण्ड के पर्यावरणविद् एवं चिपको आंदोलन के प्रणेता श्री सुन्दरलाल बहुगुणा भी इस मेले को देखने को आये थे।

                पर्यावरण  बचाने के संदर्भ में यह मेला विश्व में अपने तरीके का एकमात्र मेला है। खेजड़ी के वृक्ष को बचाने के लिये 363 महिला और पुरूषों का बलिदान विश्व में एक अनोखी मिशाल है। खेजड़ली के आसपास चिंकारे और काले हिरण जैसे वन्य जीव बहुतायत में पाये जाते है। विदेशी पर्यटक इनको देखने के लिये वर्षपर्यन्त आते रहते है। इतने विशाल मेले में यह मेला सिंगलयूज प्लास्टिक से मुक्त  रहता है। किसी भी प्रकार के पॉलीथिन, प्लास्टिक गिलास, कप और प्लेटों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा है। पर्यावरण प्रेमी खमुराम विश्नोई मेलें को प्लास्टिक मुक्त करने में अपनी टीम के साथ लगे रहते है। 

               363 शहीदों की याद में 363 द्वीप जलाकर शहीदों को श्रदांजली दी जाती है। इस मेलें में बीस से पच्चीस हजार महिलायें हिस्सा लेती है। हर महिला के शरीर पर 100 से 150 तोला स्वर्ण आभूषण लदे रहते है। यह महिलायें अपने आभुषणों को छिपाती नहीं है। अपितु अधिक से अधिक प्रदर्शन करती है। इस अनूखे पर्यावरण सुरक्षा मेलें में पूरे विश्नोई समाज को एकसूत्र मे बांधकर रखा हुआ है। इस मेलें में पहुंचने के लिये जोधपुर शहर से बस सेवा उपलब्ध है।

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