मयूर पंख

          


      मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है। इसके पंख सभी पक्षियों के पंखों से सुन्दर होते है। वैसे तो वर्षपर्यन्त मोर अपने पंखों को थोड़ा-थोड़ा गिराता रहता है लेकिन कार्तिक व चैत्र मास में जब ऋतु परिवर्तन होता है। उस समय कुछ अधिक ही पंखों को गिराता है। गाँव के बच्चे इन पंखों को इकठ्ठा करते रहते है। प्रत्येक गाँव में कुछ लोग घूम-घूम कर मोर के पंख खरीदते है। उसके बदले में बच्चों को खाने-पीने की चीजें जैसेः- मूंगफली, चॉकलेट, बिस्कुट आदि देते रहते है। कुछ लोग मोर के पंखों के बदले में पैसा भी देते है। इसी लालच में बच्चे मोर पंख ढूंढ-ढूंढ कर इकठ्ठा करके बेचते है। फेरी लगाने वाले छोटे व्यापारी बहुत सारे मोर पंख इकठ्ठा करके शहरों में इनके बड़े व्यापारी को बेच देते है। बड़े व्यापारी इनके प्रोड्क्ट बनाकर दुकानदारों को देते है। विशेषकर हर तीर्थ स्थान में मोर पंख के प्रोड्क्ट बिकते दिखाई दे जाते है। वैसे मोर पंख के निर्यात पर रोक लगी हुई है।

        ऐसी मान्यता है कि घर में इसे रखने से कई तरह के वास्तुदोष दूर होते है। यह घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत करता है और घर से नकारात्त्मक ऊर्जा दूर करता है तथा घर में खुशहाली और समृद्धि लाता है। मोर पंख को देवताओं का प्रिय आभूषण माना जाता है। विशेषकर भगवान श्री कृष्ण को यह जरूर अर्पित किया जाता है। माना जाता है कि मोर पंख में सभी देवी-देवीताओं और नवग्रहों का वास होता है। इसलिए इसे घर में रखना बहुत शुभ माना जाता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार मोर पंख को हमेशा घर की दक्षिण पूर्व दिशा में रखना चाहिए। इसको घर के सारे संकट दूर हो जाते है और घर में शांति बनी रहती है। घर में वातावरण भी अच्छा रहता है।

        जिन के हाथ में पैसे नहीं टिकते है अथवा फिजूलखर्ची की आदत है वे लोग इसको अपने पूजा स्थल पर रखते है। पूजा स्थल पर रखने से यह घर में बरकत लाता है और परिवार के सदस्यों के बीच में संबंध मधुर होते है। ऐसा माना जाता है कि जिनकी कुण्डली में कालसर्प दोष हो उसे अपने तकिये के नीचे सात मोर पंख रखकर सोना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि मोर पंख का यह उपाय कालसर्प दोष से छुटकारा दिला देता है।

        विश्व के सभी धर्मोंं में मोर और मोर के पंखों का वर्णन किया जाता गया है। बौद्ध धर्म के अनुसार मोर अपने सारे पंखों को खोल देता है। इसलिए उसके पंख विचारों और मान्यताओं में प्रियजन का प्रतीक है। इसाई धर्म में मोर के पंख अमरता पुर्नजीवन और आध्यात्मिक शिक्षा से संबंध रखते है। इस्लाम धर्म में मोर के पंख जन्नत के दरवाजे के बाहर अद्भुत शाही बगीचे का प्रतीक माने जाते है। हिन्दु धर्म में मोर और मोर पंख की कई कथाऐं प्रचलित है। ज्योतिषशास्त्र में मोर पंखों का विशेष महत्त्व बताया गया है। यदि विधिपूर्वक मोर पंख को स्थापित किया जाए तो घर के वास्तुदोष दूर होते है और कुण्डली के सभी नवग्रहों के दोष भी शांत हो जाते है। घर का मुख्य द्वार यदि वास्तुशास्त्र के विरूद्ध हो तो द्वार पर तीन मोर पंख स्थापित करें। सभी ग्रहों की शांति के लिए ज्योतिषशास्त्र में मोर पंख के अलग-अलग प्रकार के टोटके और विधि विधान बताए गए है।

        आयुर्वेद में मोर पंख का विशेष महत्त्व है। भयंकर हिचकी की बीमारी अर्थात् हिक्का रोग में मोर के पंख की भस्म शहद के साथ चटाई जाती है। कई आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली कम्पनियाँ मोर के पंख की भस्म बनाती है। जो बाजार में उपलब्ध है। आयुर्वेद में कई बीमारियों का इलाज जानकार वैद्य लोग करते है। वे अपने-अपने अनुभव के आधार पर बवासीर, नाक के रोग, बिच्छु का जहर दूर करने के लिये, अस्थमा, दमा, संग्रहणी आदि बीमारियों का सफलतापूर्वक इलाज करते है। गाँवों में छोटे बच्चे बीमार नहीं पडे़ या यदि बीमार हो तो जल्दी ठीक हो जाए इसके लिए उनके गले या हाथ में मयूर पंख बांधकर रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे बच्चों को नजर भी नहीं लगती है। बहुत से झाड़ फूंक करने वाले लोग मयूर पंख झाडू बनाकर अपने पास हमेशा रखते है। इसी झाडू के द्वारा मंत्रोच्चारण करके झाड़ा डालते है। पूजा गृह में साफ सफाई  करने एवं भगवान को हवा करने के लिए भी मयूर पंख का झाडू बनाया जाता है। इतना ही नहीं गाय और बेल के गले में भी मोर पंख बांधने की परिपाटी है। इससे उनकी रक्षा होती है। कुछ लोग मोर पंख हमेशा अपने साथ रखते है। भाग्य हमेशा उनका साथ देता है।

        प्राचीनकाल में मोर के पंख की तथा ढेलड़ी (मोरनी) के पंख को कलम के रूप में इस्तेमाल करके बड़े-बड़े ग्रंथ लिखे जाते थे। इस प्रकार मयूर पंख प्राचीनकाल में तो महत्त्व रखता ही था आज के समय में भी उसका बहुत महत्त्व है। अपने-अपने घरों में मोर पंख के छोटे-छोटे बण्डल बनाकर व्यवस्थित रूप से रखने चाहिए।

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