स्वर्णप्राशन
घर में जब बच्चे का जन्म होता है तो परिवार में खुशियाँ मनाई जाती है। माता-पिता बच्चे के बेहतर स्वास्थ्य के लिए और बीमारियों से बचाने के लिए कुछ प्राचीन संस्कार अपनाते है। ताकि बच्चे में रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास हो सके। हिन्दु धर्म के विभिन्न संस्कारों में स्वर्ण प्राशन संस्कार भी किया जाता हैं। बच्चों के लिए आयुर्वेद में स्वर्ण प्राशन संस्कार बच्चों को बलवान, बुद्धिमान और स्वस्थ रखने के लिए किया जाता है। स्वर्ण प्राशन संस्कार सोना के साथ शहद, ब्रह्यमी, अश्वगंधा, गिलोय, शंखपुष्पी, वचा आदि जड़ी बूटियों से एक रसायन निर्माण किया जाता है। जिसका सेवन पुष्य नक्षत्र के दौरान कराया जाता है। स्वर्ण-प्राशन संस्कार से बच्चों की शारीरिक और मानसिक शक्ति में अच्छा सुधार होता है। इसके सेवन से इम्युनिटी बुस्ट होती है जो बच्चों में रोगों से लड़ने की क्षमता पैदा करती है।
आयुर्वेद के क्षेत्र से जुड़े हमारे ऋषि मुनियों एवं आचार्यों ने हजारों वर्षों पूर्व वायरस और बैक्टीरिया जनित बीमारियों से लड़ने के लिए ऐसा रसायन निर्माण किया जिसे स्वर्ण प्राशन कहा जाता है। स्वर्ण-प्राशन का अर्थ होता है स्वर्ण का सेवन हिन्दु परंपरा के अनुसार जब किसी बालक का जन्म होता है। तो नवजात शिशु को सोने या चाँदी की सलाइ्र्र (सली) से बच्चे की जीभ पर शहद चटाने या ऊँ लिखने की प्राचीन परंपरा है। लेकिन आजकल माता-पिता को इसका ज्ञान नहीं है। जन्म से लेकर 16 वर्ष की आयु तक के सभी स्वस्थ्य और अस्वस्थ बच्चे स्वर्ण प्राशन का रसपान कर सकते है। स्वर्ण प्राशन का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। यह पूरी तरह से नेचुरल और सुरक्षित है।
स्वर्ण धातु सभी धातुओं में सबसे श्रेष्ठ धातु मानी जाती है। स्वर्ण धातु शरीर के लिए भी महत्त्वपूर्ण होती है। यह बच्चों के विकास तथा रोग-प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ाने में सबसे अच्छा योगदान देती है। इन सभी कारणों से ही हजारों वर्षो के बाद भी आज स्वर्ण प्राशन का महत्त्व बना हुआ है। आयुर्वेद के महान ऋषियों की मान्यता है कि मानव शरीर में स्वर्ण की विशेष आवश्यकता होती है। स्वर्ण प्राशन संस्कार से बच्चे के मानसिक और बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। इसके द्वारा बालक के शरीर, मन, बुद्धि और वाणी का उत्तम विकास होता है।
आयुर्वेद आचार्य डॉ. (श्रीमती) अनिता शर्मा के अनुसार स्वर्ण प्राशन के सेवन से बालक की बुद्धि, मन, बल, पाचन शक्ति एवं तेजस्व की वृद्धि होती है। छः मास तक नियमित सेवन करने से बच्चे में स्मरण शक्ति की बढ़ोतरी होती है। नियमित सेवन करने से बच्चे में स्मरण शक्ति की बढ़ोतरी होती है। बच्चा जो भी सुनता है उसे वह हमेशा याद रहता है। इसके सेवन से मानसिक और शारिरिक विकास होने के साथ-साथ बालक होशियार और बुद्धिमान बनता है। पाचन संस्थान मजबूत होता है। स्वर्ण प्राशन के सेवन से बैक्टीरिया और वायरस संक्रमण से आसानी से बचा जा सकता है। महामारी और मौसमी बीमारियों से बच्चों के स्वास्थ्य का ख्याल रखता है। बालक सुन्दर और बलशाली बनता है।
सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय जोधपुर के द्वारा प्रत्येक पुष्य नक्षत्र में स्वर्ण प्राशन का निःशुल्क सेवन हजारों बालकों को कराया जाता है। यह औषधि विश्व विद्यालय की फार्मेसी में अनुभवी वैद्यों की देखरेख एवं नियमानुसार बनायी जाती है। राजस्थान सरकार के आयुर्वेद विभाग के द्वारा भी उनकी रसायन शालाओं में इस औषधि का निमार्ण करके आयुर्वेद चिकित्सालयों और स्वंयसेवी संस्थानों के सहयोग से प्रत्येक पुष्य नक्षत्र को स्वर्ण प्राशन का सेवन बच्चों को कराया जाता है। सेल्फ-हेल्थ गु्रप, एन जी ओ एवं समाज सेवी संस्थाएँ सरकार और विश्व विद्यालय के साथ मिलकर स्वर्ण प्राशन सेवन का कार्यक्रम बनाकर प्रत्येक पुष्य नक्षत्र को बड़े पैमाने पर कर सकते है। जिस प्रकार पोलियो का टीकाकरण घोषित कार्यक्रम के अनुसार निश्चित दिनाँकों पर किया जाता है। उसी प्रकार स्वर्ण प्राशन का कार्यक्रम भी निर्धारित समय पर नियमित किया जा सकता है।
हमारे देश में बहुत सारी आयुर्वेदिक औषधि बनाने वाली कम्पनियाँ स्वर्ण प्राशन का निर्माण करती है और अलग-अलग नामों से बाजार में बेचती है। स्वर्ण प्राशन नियम के अनुसार बच्चों को पिलाने से बच्चे स्वस्थ रहेंगे, बीमार नहीं पड़ेंगे और सुन्दर व सुडोल बनेंगे। हजारों वर्ष पुराना संस्कार आज के युग में भी वैसा ही कारगर है।
Thank you nice information but suvrn prasan ki jagah hum mudh ko sone ke chamach se pilaye to chalega ya ayu store se suvarn prasan Lena padega or isko kab Pina saru kare prushya nakshatra ke baad ke six month!
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