रेगिस्तान मे चमत्कारी तनोट माता का मंदिर

         


            तनोट माता का मंदिर भारत - पाकिस्तान सीमावर्ती जिले जैसलमेर से 130 किमी की दूरी पर तनोट नामक गाँव मे स्थित है। चारण साहित्य के अनुसार तनोट माता, हिंगलाज  माता का रूप है। हिंगलाज माता का मंदिर बलूचिस्तान मे है। भाटी राजपूत राजा तणुराव ने विक्रम संवत 828 मे तनोट माता का मंदिर बनवाया था।

        तनोट माता राजपूत भाटियों की कुलदेवी है। संतान का सुख प्राप्त करने के लिए चारण मामड़िया ने हिंगलाज माता की आराधना की। मामड़िया चारण ने पूरी श्रद्धा के साथ पैदल यात्रा बलूचिस्तान तक की। उसकी यात्रा से प्रसन्न हो कर हिंगलाज माता ने उससे पूछा कि तुम्हें बेटी चाहिए या बेटा।  मामड़िया चारण ने कहा की आप ही मेरे घर मे जन्म ले लीजिए।  इस घटना के बाद मामड़िया जी के घर चार पुत्रियाँ और एक पुत्र का जन्म हुआ। पहली संतान के रूप मे माता श्री आवड़ देवी का जन्म हुआ, जो आगे चल कर तनोट माता के नाम से प्रसिद्ध हुए। ऐसा माना जाता है की एक सैनिक के सपने मे आकर माता ने उसे यह आशीर्वाद दिया कि मै युद्ध क्षेत्र मे तुम्हारी रक्षा करूंगी। 

        माना जाता है कि, 1965 के भारत -पाक युद्ध मे पाकिस्तान की सेना द्वारा इस गाँव पर 3000 बमों कि वर्षा की गई लेकिन तनोट माता की कृपा से कोई क्षति नहीं हुई। करीब 450 बम मंदिर के प्रांगण मे गिराए गए थे, उनमे से एक भी बम नहीं फटा, उसी समय से काफी जिंदा बम (450) प्रदर्शनी के रूप मे मंदिर मे दर्शनार्थ रखे हुए है।4 दिसम्बर 1971 की रात मे पाकिस्तानी फौज ने टैंकों द्वारा समीप चौकी लौंगएवाला पर 6000 सैनिकों के साथ हमला किया।  भारतीय फौज के जवानों ने पाकिस्तानी फौज को धूल चटा दी। इस युद्ध की विजय के बाद तनोट माता मंदिर के परिसर मे विजय स्तंभ का निर्माण कराया गया। प्रतिवर्ष 16 दिसम्बर को सैनिकों द्वारा एक विशेष समारोह यहाँ मना कर शहीदों को भाव पूर्ण श्रद्धांजलि दी जाती है। तनोट माता का चमत्कार देख के ब्रिगेडियर शाह नवाज़ खान यहाँ दर्शन करने आया था, और माता जी को चांदी को छत्र  चढ़ाया था।

        तनोट माता मंदिर जाने के लिए जैसलमेर से अपने साधन से जा सकते है। जोधपुर से रोडवेज की बस भी तनोट जाती है। वहाँ पर दर्शन कर कर वापस लाती है। अंतर्राष्ट्रीय सीमा से अत्यधिक नजदीक इस मंदिर की पूजा पाठ, व्यवस्था और देखभाल सीमा सुरक्षा बल के जवान करते है। वहाँ रहने के लिए धर्मशाला व भोजन हेतु भोजनशाला भी है, जिसका संचालन बीएसएफ़ के जवानों द्वारा किया जाता है। माता जी की साँयकाल आरती देखने लायक होती है। आरती काफी लंबे समय तक विभिन्न वाद्य यंत्रों को बजा कर की जाती है। आरती के समय सर्वाधिक भीड़ रहती है। तनोट माता देवी को रक्षा की देवी भी कहा जाता है। 1965 और 1971 की लड़ाई से पहले यह मंदिर भारत के साथ-साथ पाकिस्तान के फौजियों के लिए भी आस्था का केंद्र रहा है।

 

 

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