संत शिरोमणी मीरा बाई

   


             संत शिरोमणी मीरा बाई का जन्म सन् 1498 मे राजपूताना के मेड़ता शहर के कुड़की गाँव मे हुआ था। मीरा बाई एक अच्छी गायिका, कवि व संत भी थी। बचपन से ही मीरा बाई को भगवान कृष्ण के प्रति मोह हो गया था। इनकी माता का नाम वीर कुमारी एवं पिता का नाम रतन सिंह राठोड़ था। इनका विवाह मेवाड़ के महाराणा सांगा के बड़े पुत्र राणा भोजराज सिंह सीसोदिया के साथ हुआ। मीरा बाई का पालन पोषण उसके दादा- दादी ने किया था। उसकी दादी कृष्ण भक्त थी। उसी के प्रभाव से मीरा बाई कृष्ण भक्ति मे लीन हो गई। एक बार एक बारात दूल्हे सहित जा रही थी, बालिका मीरा ने अपनी दादी से पूछा मेरा दूल्हा कोन है? दादी के मुह से तुरंत निकला गिरधर गोपाल तुम्हारा दूल्हा है। उसी दिन से मीरा ने गिरधर गोपाल को अपना वर मान लिया।

                 सन् 1516 मे मीरा बाई का विवाह मेवाड़ के रन भोजराज सिंह के साथ हुआ। विवाह के दो वर्ष बाद महाराणा सांगा और भोजराज सिंह को मुग़लों के खिलाफ युद्ध मे जाना पड़ा। सन् 1521 मे महाराणा सांगा और राणा भोजराह सिंह का मुग़ल शासक बाबर के बीच युद्ध हुआ जिसे खनवा के युद्ध के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध मे राणा सांगा और उनके पुत्र  भोजराज सिंह की मृत्यु हो गई। अपने पति की मृत्यु के बाद मीरा बाई अकेली पड़ गई और वह भगवान श्री कृष्ण की भक्ति मे डूब गई। मीरा बाई ने साधु संतों के साथ आना जाना और भजन गाना शुरू कर दिया। राजपूत समाज मे किसी महिला का इस प्रकार घर से निकलकर स्वतंत्र रूप से घूमने का रीवाज नहीं था। मीरा बाई के देवर विक्रम सिंह ने उनको यह सब कार्य करने के लिए मना किया लेकिन मीरा बाई ने उनकी सारी बाते अनसुनी कर दी।

                 विक्रमआदित्य ने मीरा को मारने के लिए एक कटोरा भरके ज़हर भेजा और एक सांप उनको डसवाने के लिए भी भेजा। वह सांप भगवान कृष्ण की कृपा से फूलों का हार बन गया और  ज़हर का कटोरा अमृत समजकर मीरा बाई पी गई। इस प्रकार की कई घटनाए मीरा बाई को मारने के लिये हुई। मीरा बाई दु:खी होकर अपना शेष जीवन कृष्ण भक्ति मे बिताने के लिए घर छोड़कर चली गई।

                 मीरा बाई ने कई रचनाओ का निर्माण किया जिसमे राग़ गोविंद, गीत गोविंद, नरसी जी का मायरा, मीरा पद्मावली, राग सोरठा और गोविंग टीका आदि की रचना की। मीरा बाई के भजन राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि प्रांतों मे प्रतिदिन गाए जाते है। इतना ही नहीं भारत के सभी प्रांतों मे वहा की स्थानीय भाषायों मे भजनों को गाया जाता है। ज्ञातव्य हो की हिन्दी की छटी कक्षा से लेकर एम.ए तक की पाठ्य पुस्तकों मे भी मीरा बाई के भजन पढ़ाए जाते है। मीरा बाई के कुछ भजन बहुत मशहूर हुए जैसे "मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई रे", "आली रे मे तो प्रेम दीवानी", "बसों मेरे नैनो मे नंदलाल", "गुरु मिलया रैदास दिन्ही ज्ञान की गुटकी", "फागुन के दिन चार होली खेल मना रे"आदि।

                 मीरा बाई के गुरु रवि दास जी थे। मीरा बाई का तुलसीदास जी के साथ भी पत्रव्यवहार होता रहता था। सन् 1547 मे मीरा बाई रणछोड मंदिर डाकोर और द्वारिका गई। ऐसा माना जाता है की मीरा बाई अपने जीवन के अंतिम वर्षों मे द्वारका मे रहती थी। वहा से मीरा बाई रणछोड मंदिर डाकोर (गुजरात) गई और वही पर उनकी मृत्यु हो गई। लोगों ने मीरा बाई को मंदिर के अंदर जाते हुए तो देखा किन्तु बाहर वापस आते हुए किसी ने नहीं देखा।  मीरा बाई रणछोड मंदिर मे सन् 1547 मे विलीन हो गई।

Comments

Popular posts from this blog

जल संरक्षण की जीवंत परिपाटी

बाजरी का धमाका: जी-20 सम्मेलन मे

लुप्त होती महत्त्वपूर्ण पागी कला