रेगिस्तान का खजुराहो किराडू मन्दिर

          




रेगिस्तान के रेतीले धोरों में बाड़मेर जिला मुख्यालय से 35 किमी. और जैसलमेर से 157 किमी. दूर किराडू  मन्दिर के भग्नावेश स्थित है। इस गाँव का नाम किराडू इस मन्दिर के नाम पर ही पड़ा है। ग्यारहवीं शतीब्दी में किराडू परमार वंश की राजधानी हुआ करती थी। लेकिन किसी साधु-सन्यासी के श्राप से यह गाँव सुनसान हो गया। ऐसा कहा जाता है कि ये ऐतिहासिक मन्दिर श्रापित हैं।

                    इस मन्दिर में शाम होते-होते सन्नाटा पसर जाता है। सारी वास्तुकलाओं पर तालें लगा दिए जाते है। ऐसा माना जाता है कि शाम के बाद यहाँ जो भी रूकता है वह पत्थर का बन जाता है। यहाँ पर जितनी भी मूर्तियाँ पत्थर की बनी हुई है ऐसा माना जाता है कि वे इन्सान हुआ करते थे।

                    उन्नीसवीं शताब्दी में यहाँ भूकम्प आया था। जिसकी वजह से इस मन्दिर को बहुत नुकसान पहुँचा। किराडू  में सैकड़ों मन्दिर धराशायी हो गये। इन वीरान मन्दिरों का कोई रख-रखाव भी नहीं हो पाया। अभी भी सैकड़ों मन्दिर के भग्नावेश मौजूद है। बड़े मन्दिरों में पाँच मन्दिर थे। आज सिर्फ विष्णु और सोमेश्वर भगवान का मन्दिर ही सही हालत में है। सोमेश्वर मन्दिर सभी मन्दिरों में बड़ा है।

                    किराडु मन्दिर राजस्थान के ऐतिहासिक स्थलों में प्रसिद्ध है। अपने रहस्यमयी इतिहास और शिल्प सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध है। यह मन्दिर मारवाड़ का सबसे श्रेष्ठ किला हुआ करता था। आजकल इसे रहस्यमय किला माना जाता है। खजुराहों की कलाकृतियों के समरूप यहाँ की कलाकृतियाँ देखने के लिए पर्यटकों का तांता लगा रहता है। आजकल किराडू के सभी मन्दिरों की कलाकारी खण्डहर में बदल गयी है। इस मन्दिर की सौन्दर्यता के कारण मुगलों ने इस पर कई बार आक्रमण किये। इस मन्दिर में बनी हुई हस्तशिल्प की प्रतिमाएँ देखने में वास्तविक लगती है। 1161 के शिलालेख के अनुरूप इस गाँव पर परमारों का शासन था। परमारों की राजधानी तीर्थकूप नाम रखा गया। इन मन्दिरों का निमार्ण किसने और कब करवाया? इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं।

                    राजस्थान की खजुराहों की उपाधि से प्रसिद्ध किराडु के मन्दिर एक समय में खजुराहों हुआ करता था। यह मन्दिर अपनी कलाशैली तथा लोकप्रियता के लिए प्रसिद्ध किला था। यहाँ लोगों की भीड़ हमेशा जमा रहती थी।

                    आजकल पुरातत्व विभाग (राजस्थान सरकार) इसकी देखभाल कर रहा है। जगह-जगह बिखरे मन्दिरों के खण्डहर लम्बी दूर तक दिखाई देते है। आज इस किले की स्थिति बहुत खराब है। इस किले से आज भी अनेक आवाजें सुनाई पड़ती है। जिस कारण इस किले को डरावना किला माना जा रहा है। सूर्यास्त के बाद इस किले में प्रवेश मना है। इस किले में बने हुए सभी मन्दिर एक से बढ़कर एक है। इस किले में अनेक जानवरों और लोगों की प्रतिमाएँ है जो देखते ही लगता है मानों हकीकत में वहाँ खड़ा है। यह एक अद्भुत कला थी। भय के कारण लोग इस गाँव में नहीं आते है। दिन के समय यात्री इस विरान जगह पर आते है। माना जाता है कि इस किले के निर्माण में प्राचीन गुजराती संस्कृति का प्रयोग किया गया है। जो भी रात में इस मन्दिर में गया वापिस लौटकर नहीं आया।

                    किराडू मन्दिर के आस-पास वर्षो पुराने औषधीय वृक्ष गुगल के हजारों पेड़ हैं। जिनको काटना दण्डनीय अपराध है। इसके अलावा किराडु के मन्दिरों में खेजड़ी, रोहिड़ा, केर, कुमठ आदि के पेड़ भी बहुत मात्रा में खड़े है। रेगिस्तान में पनपने वाली झाड़ियाँ जैसेः-खीप, भुईबावली, सीनिया, बुई, बूरग्रास (लेमन ग्रास) आदि पायी जाती है। देवस्थान विभाग द्वारा कुछ फुलवारी भी लगायी गयी है। जो कम पानी से और भयंकर गर्मी में भी सुंदर-सुंदर फूल देती रहती है। इस फुलवारी से खण्डहरों की शोभा निखरती है। किसी भी मौसम में यहाँ पर आकर दर्शन किये जा सकते है। यहाँ पर कोई शुल्क नहीं लगता है।

Comments

  1. बहुत खूब सा 🙏 शानदार लेखन राजस्थान का

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