हर्बल मीट
दुनिया की आबादी तेजी से बढ़ रही है। पूरे विश्व में 34 करोड़ टन मांस का उत्पादन किया जा रहा है। 1960 में मांस का उत्पादन मात्र 7 करोड़ टन था। मांस के उत्पादन में पशु-पक्षियों की बलि दी जाती है। पशु-पक्षियों से प्राप्त होने वाले मांस का उत्पादन काफी मंहगा पड़ता है। उदाहरण के लिए 1 किलो चिकन का उत्पादन करने के लिए 4.30 किलो खाद्यान्न का उपयोग उनके फीड के रूप में किया जाता है। 1 किलो पोरक के लिए 9.4 किलो और 1 किलो बीफ के लिए 25 किलो खाद्यान्न पशुओं को खिलाया जाता है। इतना सारा खाद्यान्न सीधा मनुष्य के उपयोग में लाया जा सकता है। लेकिन इस खाद्यान्न को पशुओं को खिलाकर इन्हें बड़ा करके इनका मांस खाया जाता है। पशुओं के पालन-पोषण से भी ग्रीन हाऊस गैस का उत्सर्जन काफी होता है। 14.5 प्रतिशत जी.एच.जी. का योगदान और इसमें 44 प्रतिशत मिथेन होती है। ग्लोबल वार्मिंग पर मिथेन का दुष्प्रभाव कार्बन डाई ऑक्साइड की तुलना में 80 गुणा अधिक होता हैं। यूनाईटेड मिशन एनवायरमेंट प्रोग्राम के अनुसार पशुओं के द्वारा किये गये उर्त्सजन से होने वाली मिथेन गैस में कटौती करना आवश्यक है। जलवायु परिर्वतन से खेती में पड़ने वाले दुष्प्रभावों से बचना एक बड़ी चुनौती है।
बढ़ती जनसंख्या एवं जलवायु परिवर्तन के
दुष्प्रभाव से इतना खाद्यान्न उत्पादन नहीं होगा जितना आवश्यक होगा। अतः मांसाहार
भी खाद्यान्न की कमी लायेगा। इसके लिए इस प्रकार की प्रोटीन से भरपूर डिश बनायी
गयी है जो देखने में, खाने में,
स्वाद में बिल्कुल मांसाहार जैसी ही लगती है।
लेकिन वह शत् प्रतिशत वैजीटेबल्स से तैयार की जाती है। इस डिश से मांसाहारी लोगां
को जीभ का स्वाद तो मिलता ही है साथ ही पोषक तत्त्व भी मांसाहार से ज्यादा मिलते
है। मांसाहार के सेवन से होने वाले दुष्प्रभाव से भी हर्बल मीट खाने से बचा जा सकता है।
हर्बल मीट बनाने में कई प्रकार की सब्जियों,
हर्बस और मसालों का उपयोग किया जाता है। खाना
बनाने के एक्सपर्ट हर्बल मीट बनाने के एक्सपर्ट होते है। इस प्रकार के हर्बल मीट
को खाने के बाद भी पता ही नहीं चलता कि हमने क्या खाया?
पशु
पालन एग्रीकल्चर अर्थात मीट के लिए एनीमल हस्बेण्डरी को कम करके हम मिथेन गैस के
उत्सर्जन में 92 प्रतिशत की कमी
ला सकते है। साथ ही पशुपालन के लिए की जाने वाली भूमि को खाद्यान्न के पैदा करने
में कर सकते है। पूरे विश्व में इसका प्रचलन धीमी गति से बढ़ रहा है। अनेक देशों
में हर्बल मीट और वैकल्पिक प्रोटीन से भरपूर खाद्य्र पदार्थ को अलग-अलग नाम से
जाना जा रहा है। लोगों में इस प्रकार के शाकाहारी भोजन करने की रूचि बढ़ रही है।
भारत
में बहुत समय पहले से ही खाना बनाने के निपूर्ण लोग इस प्रकार के भोजन बनाने में
पारंगत थे। कई राजा-महाराजा अपने यहाँ ऐसा शाकाहारी भोजन बनवाते थे जो देखने में,
स्वाद में, गुणों में, मांसाहार से कहीं
ज्यादा अच्छा होता था। अण्डा, मछली, चिकन, मीट आदि अनेक प्रकार के व्यंजन पूर्ण शाकाहारी बनाये जाते थे। विशेष मेहमान
आने पर इस प्रकार के व्यंजन आदर के साथ परोसे जाते थे। मेहमानों को भोजन के बाद भी
पता नहीं लगता था कि यह भोजन शाकाहारी था या मांसाहारी।
Comments
Post a Comment