आयुर्वेद व ज्योतिष

      



          डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय जोधपुर के कुलपति प्रोफेसर (वैद्य) प्रदीप कुमार प्रजापति ने बताया कि इस विश्वविद्यालय में आयुर्वेद के छात्रां को ज्योतिष की पढ़ाई भी अनिवार्य रूप से करायी जायेगी। ज्योतिष का प्रारंभिक ज्ञान आयुर्वेद के पाठ्यक्रम में जोड़ा जायेगा। ज्योतिष सीखकर आयुर्वेद के छात्र और अच्छे तरीक से समाज को स्वस्थ रखने में अपना योगदान दे सकेंगें।

               ज्योतिष और आयुर्वेद एक दूसरे के सहयोगी है। पुराने जमाने में वैद्य लोग अपने दैनिक जीवन में ज्योतिष का पूरा-पूरा सदुपयोग करते थे। औषधि को संग्रह करना मूहूर्त देखकर किया जाता था। जंगल से औषधि लाने का नक्षत्र, वार, पक्ष महीना ऋतु आदि का विवरण आयुर्वेद के निघण्टुओं में विस्तार से किया गया है। इसी तरह औषधि का रोपण करना भी मूहूर्त देखकर किया जाता था। औषधि निर्माण का भी मुहूर्त देखा जाता था। रोगी का उपचार कब शुरू करना है? इसका भी विचार गंभीरता से किया जाता था। जिस समय रोगी वैद्य के पास आता था, वैद्य उसकी प्रश्न कुण्डली बनाकर यह निर्णय ले लेता था कि इसको कौनसा रोग है, रोग की अवस्था कौनसी है, इसका उपचार कब से शुरू किया जाये और इसमें कितनी सफलता कितने समय में मिलेगी? इन सारे प्रश्नों के उत्तर वैद्य प्रश्न कुण्डली बनाकर मालूम कर लेते थे। रोगी के आने का समय, उसके साथ कौन-कौन आया है, रोगी के बोलने का तरीका उसका हाव-भाव आदि से भी वैद्य को रोगी की अवस्था का पूरा पता चल जाता था।

               इन सब विषयों की जानकारी डॉ. मायाराम उनियाल की पुस्तकों और लेखों को पढ़ने से प्राप्त होती है। डॉ. उनियाल ने जड़ी-बुटियों के कृषिकरण संग्रह, स्थान, काल आदि का विस्तार से वर्णन किया है। ज्योतिषाचार्य पण्डित श्री भरत श्रीमाली ने बताया कि आयुर्वेद से इलाज करने में ज्योतिष बहुत सहयोग करता है। उदाहरण देते हुए उन्होनें बताया कि वातकारक ग्रह मूत्र संस्थान में वातकुपित करते है, पित्तकारक ग्रह पित्तदोष उत्पन्न करते है और कफ कारक ग्रह कफदोष उत्पन्न करते है। गुरू और शुक्र कफकारी रोग देते है व सूर्य उष्णता-दाता ग्रह है।

                ज्योतिष के कई ग्रन्थों में पंचतत्त्वों का उनका व किस-किस राशि पर क्या-क्या प्रभाव पड़ता है? विस्तार से वर्णन किया गया है। 12 राशियों का तात्त्विक विचार ज्योतिष शास्त्रीय पद्धति के अनुसार चार विभागों में किया गया हैं। जैसे-मेष, सिंह और धनु राशि अग्नि तत्त्व कारक होती है। इसी प्रकार अलग-अलग राशियों का शरीर के अंगों पर रोग के प्रभाव का विवेचन किया गया है। 27 नक्षत्र शरीर के विभिन्न अंगो पर किस प्रकार का रोग आक्रमण करते है? इसका विस्तार से वर्णन ज्योतिष में किया गया है।

               प्रश्न कुण्डली के प्रथम से द्वादश भाव किस-किस अंग को प्रभावित करते है। जैसेः- प्रथम भाव मस्तिष्क, द्वितीय भाव गर्दन, तृतीय भाव भुजायें, चतुर्थ भाव फेफडे़, पंचम भाव आमाशय, षष्ट्म भाव लीवर, किडनी, सप्तम भाव मूत्र संस्थान, अष्टम भाव जांघ प्रदेश, नवम भाग घुटने, दशम भाग पिण्डलियां, ग्यारहवां भाव, पैर के पंजे व बाहरवां भाव पैर की अंगुलियां व तलवे को प्रभावित करते है।

               आयुर्वेद एवं ज्योतिष का मिश्रण चिकित्सा पद्धति को और अधिक प्रभावकारी बनायेंगें। अच्छी गुणवत्ता की औषधि बनाने व शीघ्र स्वास्थ्य लाभ में ज्योतिष मददगार होती है। आयुर्वेद के वैद्यों को पहले ज्योतिष का गहरा ज्ञान होता था वैसे ज्ञान की आज भी आवश्यकता है।

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