बौना होता जंगल
पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव से पीड़ित है। हर ईको सिस्टम में बदलते जलवायु का प्रभाव पड़ रहा है। पश्चिमी राजस्थान के रेतीले भू-भाग में हालांकि वन क्षेत्र बहुत कम है लेकिन ओरण और गोचर में पेड़-पौधों के काटने पर शत् प्रतिशत रोक लगी हुई थी। यहाँ के स्थानीय पेड़-पौधे केवल ओरण और गोचर में सुरक्षित रह पाये थे। हर ओरण में किसी न किसी देवी-देवता का स्थान या छोटा-मोटा मंदिर भी बना दिया जाता था। समाज में यह प्रचलन था कि यदि इस क्षेत्र में किसी भी पेड़-पौधे को नुकसान पहुंचाने की चेष्टा की गई तो इस ओरण में विराजमान देवी-देवता आपका नुकसान करेंगें। इतना भय था कि लोग ओरण से दातुन तक तोड़ना भी अपराध समझते थे। इस वजह से ओरण में स्थानीय पेड़-पौधे व झाड़ियाँ बड़ी मात्रा में पनपते रहते थे।
देशनोक के पास करणी माता
का मन्दिर है। वहाँ पर हजारों बीघा जमीन ओरण के रूप में आज भी विद्यमान है। वहाँ
पर बेर, केर, खेजड़ी, रोहिड़ा आदि के पेड़
बहुतायत में पाये जाते है। इनका किसी ने प्लांटेशन नहीं किया है। यह प्राकृतिक रूप
से ही उगते है। देचू के पास कोलू में पाबूजी महाराज का मन्दिर बना हुआ है। उसके
आस-पास भी हजारों बीघा जमीन गोड फोरेस्ट के रूप में विद्यमान है। प्रत्येक गांव
में मामाजी भगवान का ओरण सुरक्षित है। मामाजी की तरह जोगमाया, नागदेवता व विभिन्न देवी
देवताओं के नाम से ओरण की हजारों बीघा जमीन रिजर्व रखी जाती थी। पशुओं के चरने के
अतिरिक्त इनका कोई उपयोग नहीं होता था। इनमें जाल, रोहिड़ा, खेजड़ी, केर,
कुमठ, कंकेड़ा, मोराली, गूंदी, आक इन्द्रोक आदि स्थानीय
पेड़-पौधे बहुतायत से पाये जाते है। कुछ वर्ष पहले तक ओरण में घने जंगल हुआ करते
थे। जिसमें जाते हुए भी डर लगता था। पिछले कुछ वर्षो में इन जंगलों में विलायती
बबूल अर्थात ज्यूलीफ्लोरा ने अत्यधिक अतिक्रमण किया और स्थानीय प्रजातियां
धीरे-धीरे कम होती गई। पशुधन एवं जनसंख्या का दबाव भी इन जंगलों पर पड़ा और
पेड़-पौधों का घनत्व कम हो गया।
हिमालय में 2500 मीटर की ऊंचाई पर देवदार
के वृक्ष 40-50 मीटर ऊंचे होते
है और इनकी उम्र 500 से 600 वर्ष तक होती है। देवदार
के पेड़ से कई औषधीयाँ बनायी जाती है। इसके तने, पत्तियां और लकड़ी में कई ऐरोमेटिक कैमिकल पाये जाते है।
जिनका उपयोग बाम एवं दर्द निवारक औषधियाँ बनाने में लिया जाता है। देवदार का पेड़
वातावरण के कार्बन को सोखने का बहुत अच्छा काम करता है।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण देवदार के पेड़ों की ऊंचाई घट रही
है। ऐसा रिसर्च गोविन्द वल्लभपन्त वन अनुसंधान संस्थान, हिमालय के वैज्ञानिकों ने
उत्तराखण्ड, हिमालय और जम्मू
कश्मीर के जंगलो में किया। तीनों राज्यों के 17 स्थानों पर अध्ययन करके यह चिंता जाहिर की कि कभी अधिक
बारिश और अधिक बर्फबारी तो कभी अत्यधिक गर्मी से पौधां का पोषणक्रम गड़बड़ा गया।
इसका पहला असर पेड़ो की लम्बाई पर देखा गया। अध्ययन के दौरान ऊंचाई वाले क्षेत्रां
में कई देवदार के वृक्ष ऐसे मिले जो अपनी सामान्य लम्बाई की तुलना में 14 से 22 मीटर तक कम थे। इस
प्रकार देवदार के पेड़ों की लम्बाई दिनोदिन घटती जा रही है। ग्लोबल वार्मिंग जंगलों
के स्वास्थ्य को बिगाड़ रही है
ग्लोबल वार्मिंग का
नुकसान सभी प्रकार के जंगलों में देखा जा रहा है। पूरे विश्व में सभी वन
क्षे़त्रों में वैज्ञानिक अपने-अपने स्तर पर रिसर्च का काम तेज गति से कर रहे है। उनके
अध्ययन के आंकडे़ तीव्र गति से आ रहे है। प्रत्येक सेमीनार में वैज्ञानिक इन खतरों
से अवगत कराते आ रहे हैं। जिस गति से इसमें सुधार लाने के लिए कार्य होना चाहिए उस
गति से नहीं हो पा रहा है। आने वाले समय में स्थिति और भी भयावह होनी है।
बीमारियाँ बढे़गी, कृषि उत्पादन कम
होगा, उत्पादन में
गुणवत्ता का अभाव होगा और मनुष्यों के स्वभाव में चिड़चिड़ापन बढ़ता रहेगा। अतः अभी
से तीव्र गति से ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के सारे उपाय प्रत्येक नागरिक को करने
हांगे।
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